Book Title: Sramana 2003 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 13
________________ जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों के आहार सम्बन्धी नियम : ७ के लिए जाये। यदि वर्षा हो रही हो, घना कुहरा पड़ रहा हो, आँधी चल रही हो या टिड्डी आदि जीव-जन्तु इधर-उधर घूम रहे हों तो ऐसे समय भिक्षा वृत्ति के लिए जाने का निषेध किया गया है। भिक्षुणी को कोयले, राख, भूसे और गोबर के ढेर पर से जाने का निषेध है।१० भिक्षुणी को अतिशीघ्रता से चलना चाहिए। चलते हुए हंसना या वार्तालाप करना भी वर्जित था। उसे भिक्षा के लिए आतुरता नहीं व्यक्त करनी चाहिए अपितु अपनी इन्द्रियों पर संयम रखना चाहिए।११ स्थानांग१२ में आहार सम्बन्धी चार नियम दिये गये हैं। (अ) असणे - अन्न से निर्मित खाद्य पदार्थ - (ब) पाणे - पेय पदार्थ (स) खाईमे - फल, मेवा आदि . (द) साइमे - ताम्बूल, लौंग, इलायची आदि जैन ग्रन्थों में उपयुक्त तथा अनुपयुक्त प्रकार के आहारों का सम्यक विवेचन मिलता है। साध्वी उपयुक्त प्रकार का आहार ग्रहण करे, यह निर्देश दिया गया है।१३ आहार सम्बन्धी दोषों को चार भागों में बाँटा गया है।१४ (क) उद्गम (ख) उत्पादन (ग) एषणा (घ) परिभोग जैन भिक्षुणी को आहार सम्बन्धी दोषों से रहित भोजन ग्रहण करना चाहिए। सूर्योदय से पूर्व तथा सूर्यास्त के बाद आहार लेना सर्वथा वर्जित हैं।५ रात्रि में सूक्ष्म प्राणी दिखायी नहीं देते हैं हिंसा की आशंका होती है इसलिए रात्रि के भोजन का सर्वथा निषेध किया गया है।१६ ।' उत्तराध्ययन में भोजन ग्रहण करने के छ: कारण बताये गये हैं। (१) वेयण - क्षुधा की शान्ति के लिए (२) वेयावच्चे - वेदावृत्य (सेवा) के लिए (३) इरियट्ठाये - ईर्या समिति के पालन के लिए (४) संजमट्ठाए - संयम पालन के लिए (५) पाणवृत्तियाए - प्राणों की रक्षा के लिए (६) धम्मचिन्ताए - धर्मचिन्तन के लिए जैन भिक्षुणियों को भिक्षा के लिए दूर तक जाने का विधान नहीं था। उत्तराध्ययन के अनुसार भिक्षुणी भिक्षा के लिए आधे योजन तक जा सकती थी। बृहत्कल्पसूत्र'७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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