Book Title: Sramana 2001 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 13
________________ विचारधारा एकान्तिक है तो अधिनायकवाद विष हो सकता है और सम्पूर्ण राष्ट्र विनष्ट हो सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में अन्य देशों की विचारधाराओं का भी सम्मान करना पड़ता है, अत: यदि अनेकान्त दृष्टिकोण है तो अधिनायकवाद के निरंकुश होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है। भारतीय प्रजातान्त्रिक परिवेश में एकान्तवादता को कोई स्थान नहीं है। न वहाँ दुराग्रह, हठवाद, पक्ष-प्रतिबद्धता, अधिनायकवाद आदि को कोई स्थान है। आज के वर्तमान राजनीतिक परिवेश पर निगाह डालें तो भ्रष्टाचार, राजनीति की आड़ में वर्ग संघर्ष को प्रोत्साहन, स्वसत्ता की दीर्घायुता के लिए मानवीय मूल्यों का शोषण आम हो गया है। उसका कारण है- समन्वय, सामञ्जस्य का अभाव एवं एकान्तिक दृष्टिकोण। पारस्परिक विरोध एवं मतभेद के शमन के मार्ग को आज के राजनेता अपनाना नहीं चाहते। जिसके बिना प्रजातन्त्र दिन वे दिन कमजोर होता जा रहा है। महावीर ने कहा था कि विरोधियों द्वारा स्वीकृत सत्य भी सत्य है, विरोधियों के सत्य में भी सृजनात्मक तत्त्व विद्यमान रहते हैं। स्वसत्य से तालमेल न बैठने के कारण उनकी उपेक्षा विध्वंसात्मक भावों को जन्म देती है। अनेकान्तवाद को राष्ट्रीय नीतियों के स्वीकृति के साथ अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों में जो ग्रहण करने योग्य हो उसे भी अपनाना चाहिए और विरोध पक्ष को भी उतना ही सम्मान देना चाहिए। महात्मा गांधी२१ ने लिखा है कि पहले मैं मानता था कि मेरे विरोधी अज्ञान में हैं। आज मैं विरोधियों को प्यार करता हूँ क्योंकि अब मैं अपने को विरोधियों की दृष्टि से देख सकता हूँ। मेरा अनेकान्तवाद सत्य और अहिंसा के युगल सिद्धान्तों का ही परिणाम है। इस प्रकार यदि राजनैतिक शिक्षा में अनेकान्तमूलक समन्वय दृष्टि का समावेश किया जाय तो राजनीतिक एकान्तवाद, दुराग्रह, हठवादिता एवं पक्ष-प्रतिबद्धता से दूर होगी और स्वस्थ प्रजातन्त्र का स्वप्न साकार होगा। ४. साहित्य कला और सांस्कृतिक शिक्षा में साहित्य और कला सामाजिक सृजन के आयाम हैं और संस्कृति समाज का आईना होती है। साहित्य के सन्दर्भ में अगर एकान्तवादी विचारधारा का प्रवेश हुआ तो साहित्य अपनी गरिमा खो बैठेगा और बद्धमूल तथा आग्रही विचारों के कारण वह वितण्डावाद के सिकंजे में कस जाएगा। परिणाम स्वरूप साहित्य और कला का विकास अवरुद्ध हो जाएगा। आज ऐसी विचारधाराओं के साहित्यकारों की कमी नहीं है जो साहित्य में स्वस्थापित मत से सूचकाग्रह भी इधर-उधर नहीं होना चाहते। आधुनिकतावादी, प्रयोगवादी, नवनवीन प्रज्ञाउन्मेष अनुयायी अधिक उदार होंगे ऐसी आशा थी पर वे स्व के अहं से कोई समझौता करने को तैयार नहीं दीखते। डॉ. प्रभाकर माचवे२२ ने लिखा है कि आग्रही वृत्ति साहित्य कला और संस्कृति कला के विकास के लिए हानिकारक है। मनोविश्लेषक यह जानते हैं कि पूर्वाग्रह एक प्रकार का मनोरोग है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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