Book Title: Sramana 2001 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ उनमें निहित मनुष्य की विनाशकारी प्रवृत्ति का इतिहास भी आज मानव की उसका बोध कराने में अक्षम है। वर्तमान समय में रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद, पुरी के मन्दिरों में शूद्रों का प्रवेश हिन्दू-मुस्लिम के साम्प्रदायिक दंगे जैसी अर्थहीन समस्याएँ धर्म के नाम पर पैदा कर मानव ही मानवता के शोषण में सन्नद्ध है। धर्म को मोहरा बनाकर व्यक्ति व व्यक्ति के बीच, सम्प्रदाय-सम्प्रदाय के बीच एवं मजहब-मजहब के बीच अविश्वास की खाईं ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज सम्पूर्ण मानवता अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए गुहार कर रही है। ऐसे में जैन दर्शन की अनेकान्तवादी विचारधारा धार्मिक कट्टरता एवं अन्धविश्वास को दूर कर धार्मिक सहिष्णुता को जन्म दे सकती है। धर्म के नाम पर विद्वेष तब होता है जब हम अपने ही धर्म को सच मान बैठते हैं। जब हम अपने धर्म की प्रशंसा और दूसरे के धर्म की बुराई १६ करते हुए यह मान बैठते हैं कि हमारा ही धर्म, हमारी ही साधना पद्धति एक मात्र व्यक्ति को अन्तिम साध्य तक पहुँचा सकती है और जिसे जैन दर्शन की परिभाषा में एकान्तवादी कहा गया है। एकान्तवाद आग्रह या संक्लिष्ट मनोदशा का परिणाम है। इसलिए एकान्तवादी दृष्टि या विचारधारा से लिए गये सभी निर्णय आग्रह पूर्वक होते हैं जो दूसरे के धर्म भी सच्चे हैं, लोक कल्याण हेतु हैं, सोचने के लिए अवकाश ही नहीं देते। अनेकान्तवाद से ही यह सम्भव है कि अपूर्ण और अपने से विरोधी होकर भी दूसरे की बात में यदि सत्य है तो इन दोनों का समन्वय करके पूर्ण और यथार्थ को ग्रहण किया जा सके। अनेकान्त की इस विचारधारा में अपूर्ण रूप से विचारित होकर भी पूर्णता गर्भित होती है। जैन परम्परा विचारों का सत्यलक्षी संग्रह होने के कारण किसी भी विचारसरणी की उपेक्षा नहीं करना चाहती। बल्कि प्रत्येक विचारधारा को अपने में समाहित कर लेती है। किसी एक या एकान्तिक दृष्टिकोण के विचार में आते ही अन्य समस्त सम्भावित दृष्टिकोण नेपथ्य में स्वत: उपस्थित हो जाते हैं। दूसरे के धर्म के प्रति समभाव समाप्त हो जाता है। आचारांग१७ में समभाव को ही धर्म कहा गया हैऔर यह समभाव तभी आएगा जब हम एकान्तवादी विचारधारा का परित्याग कर अनेकान्त को अपनायेंगे। इस प्रकार धार्मिक शिक्षा में धर्म के यथार्थ मर्म को समझाने के लिए अनेकान्तवाद को शिक्षा के एक यन्त्र के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है क्योंकि अनेकान्तवाद स्वस्थ चिन्तन प्रक्रिया के साथ-साथ स्वस्थ आचार की भी प्रथम भूमिका है। २. सामाजिक शिक्षा में ___ समाज व्यक्तियों का समूह है और व्यक्ति समाज की इकाई है। एक अच्छे और सुसंस्कृत समाज के लिए आवश्यक है कि समाज में भाईचारा और समानता का भाव सर्वत्र परिव्याप्त हो। वर्तमान समय में गिरते हुए सामाजिक मूल्यों के हेतुओं पर यदि निगाह डालें तो उनके मूल में भी एकान्तवादी दृष्टिकोण ही है जो सारी विषमताओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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