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आधार रूप में उपन्यस्त किया है। इस प्रकार अनेकान्तवाद वैज्ञानिक शिक्षा में भी एक यन्त्र के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है जिससे वैज्ञानिकों में वैचारिक सामञ्जस्य, समन्वय और एक नई दृष्टि विकसित हो, तभी तत्त्व के यथार्थ स्वरूप का सर्वागीण अध्ययन हो सकेगा।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अनेकान्तवाद को सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक शिक्षा के एक यन्त्र के रूप में प्रयोग कर समाज का स्वस्थ एवं सर्वांगीण विकास किया जा सकता है।
शिक्षा के यन्त्र के रूप में अनेकान्तवाद का प्रयोग शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर किया जा सकता है। प्रारम्भिक शिक्षाओं में कहानियों एवं उदाहरणों के माध्यम से इसे समझाया जा सकता है, जैसे हाथी के उदाहरण द्वारा जैन साहित्य में अनेकान्तवाद को समझाया गया है। पूर्व उच्च और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में अनेकान्तवाद का निवेश कर इसकी शिक्षा दी जा सकती है। वर्तमान परिवेश में अनेकान्तवाद का ज्ञान जैन विद्या केन्द्रों या दर्शन के एक भाग जैन दर्शन के रूप में ही सीमित है । यदि समाजशास्त्रीय, धार्मिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों में स्थान देकर इसका अध्ययन, अध्यापन किया जाय तो अनेकान्तवाद अनेक मिथ्या अभिनिवेशों व आग्रहों को मिटाकर एक सामञ्जस्यपूर्ण समाज की संरचना करने में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकता हैं ।
सन्दर्भ :
१.
२.
जहाँ अहिंसा से आचरण संहिता बधी हुई है स्याद्वाद से वाणी की मंजुलता सधी हुई है। अनेकान्त का इन्द्रधनुष चिन्तन ने जहाँ छुआ है महावीर का जीवन दर्शन सार्थक वहीं हुआ है । ।
६.
अनन्तधर्मात्मकम् वस्तु- स्याद्वादमञ्जरी, श्लोक २२ की टीका.
डॉ० पुष्पमित्र, 'श्रमण संस्कृति का विकास एवं विस्तार', अमरभारती, मार्च-अप्रैल १९७१.
३.
रत्नाकरावतारिका, पृ० २९.
४. जैनेन्द्रसिद्धान्तकोष, भाग- ३, पृ० ५४१.
सप्तभंगीतरंगिणी, पृ० ३०. सदसन्नित्यानित्यादिसर्वर्थकान्तप्रतिक्षेपण लक्षणोनेकांतः, अष्टसहस्त्री, गाथा
१०३, पृ० २८६.
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