Book Title: Sramana 1997 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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सन्दर्भ ग्रन्थ
१. तुलनीय- विजयकुमार, अनेकान्तवाद और उसकी व्यावहारिकता, “श्रमण" सं०
सागरमल जैन, वर्ष १९९६, अंक १०-१२, वाराणसी, पृ. २२-२३ २. न्यायदीपिका, सं० पण्डित दरबारीलाल कोठिया, वीर सेवा मन्दिर ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक ४, सहारनपुर १९९५, अध्याय ३, श्लोक७६, “अनेके अन्ता धर्माः
सामान्य विशेष पर्यायाः गुणाः यस्येति सिद्धाऽनेकान्तः। ३. (i) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, ५.३८, “गुण पर्यायवद्र्व्य म्' .
(ii) भगवतीसूत्र, ७,२,५ ४. “अनेकश्चासो अन्तश्च इति अनेकान्त:" रत्नाकरावतारिका, पण्डित दलसुखभाई
मालवणिया, लालभाई दलपतभाई ग्रन्थमाला-१६, अहमदाबाद, पृ. ८९, सतीशचन्द्र चट्टोपाध्याय तथा धीरेन्द्रमोहन दत्त, भारतीयदर्शन, (हिन्दी अनुवाद)
पृ. ५५ । ६. “स्यादित्यव्ययमनेकान्तद्योतकं तत: स्याद्वादोऽनेकान्तवादः ।' स्याद्वादमञ्जरी ५। ७. "अनेकान्तात्मकार्थकथनं स्याद्वादः ।" लघीयस्त्रय टीका, ६२ ।। ८. तुलनीय, डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, इन्डियन फिलासाफी, जिल्द१,
पृ० ३०५-०६ । ६. बलदेव उपाध्याय, भारतीयदर्शन, १९७९, पृ० १७३ । १०. हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, भोपाल १९६२,
पृ० २४९ । १२. तुलनीय, महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, जैनदर्शन, १९८५, पृ० ५१८ आदि; मोहनलाल
मेहता, जैनधर्मदर्शन, १९७३, पृ०३४३ एवं ३५८. १३. मज्झिमनिकाय, राहुलोवादसुत्त । १४. “यथावस्थितार्थव्यवसायरूपं हि संवेदनं प्रमाणम् ।” प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ. ४१ १५. तुलनीय, मेहता, जैन धर्म दर्शन, ३९२ १६. बलेदव उपाध्याय, भारतीय दर्शन, पृ. ९१ १७. तुलनीय, महेन्द्र कुमार, जैन दर्शन, पृ. ५९-६०, ५५३-५४ १८. श्वेताश्वतरोपनिषद्, १.८ १९. वही, ३.२० २०. ईशावास्योपनिषद् , १.५ २१. मुण्डकोपनिषद् , २.२. १ १२. छान्दोग्योपनिषद्, ६.२.१
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