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श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ : १२७
अध्यात्मपद पारिजात, संपादक - डा० कन्छेदी लाल जैन । प्रकाशक - श्री गणश वर्णी दिगम्बर जैन संस्थान, नरिया, वाराणसी -५ ___ 'अध्यात्मपद-पारिजात' एक संग्रह ग्रन्थ है, जिसमें १६वीं सदी से लेकर २०वीं सदी तक के प्रमुख हिन्दी जैन भक्त कवियों की रचनाएँ संकलित हैं । इन पदों के लेखक वे कवि हैं जिन्होंने पूर्ववर्ती प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत के मूल जैन साहित्य का गहन अध्ययन कर उनका दीर्घकाल तक मनन एवं चिन्तन किया है, तत्पश्चात् अपने चिंतन का विविध संगीतात्मक स्वर लहरी में चित्रण किया है ।
यद्यपि संग्रहीत पदों का समय वही है जो हिन्दी के काल विभाजन के अनुसार रीतिकाल के अन्तर्गत आता है, जिसमें महाकवि बिहारी देव, घनानन्द द्वारा श्रृंगाररस में सिक्त रचनाओं की प्रमुखता रही । पर इस संगृहीत पदों में कवियों ने आत्मगुणों के विकास, समस्त प्राणियों के कल्याण तथा सम्प्रदाय-भेद, जातिभेद, ऊँच-नीच, गरीब-अमीर तथा देशी-विदेशी के भेद-भाव से ऊपर उठकर समता एवं सर्वधर्मसमन्वय की भावना पर जोर दिया है । अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, स्याद्वाद एवं अनेकान्त के सिद्धान्तों को जीवन में उतारने पर विशेष बल दिया है । भाषा की दृष्टि से इन पदों पर ब्रज, राजस्थानी, मराठी, बुन्देली का प्रभाव अवश्य है, पर वे सभी हिन्दी पद हैं। प्रत्येक पद के फुटनोट में शब्दों के अर्थ होने से पदों को समझना अत्यन्त सरल व सुबोध हो गया है । इन पदों में अध्यात्म और संगीत का अनूठा समन्वय है । दर्शन के गढ़ से गढ़तर विषयों को भी सरल शब्दों में समझाने की अद्भुत शक्ति है । इनमें जिनस्तुति, गुरुस्तुति सम्यग्दर्शन, कर्मफल, बधाई-गीत, होली, संसार-असार व सप्त व्यसन आदि समस्त विषयों को लिया गया है । ये पद भक्ति, नीति, आचार और वैराग्य की शिक्षा के साथ-साथ मानव को सावधान कर आत्मलोचन प्रवृत्ति को जगाने का कार्य करते हैं ।
__ संगृहीत सभी पद गेय हैं, गीतिकाव्य की पद्धति पर आधारित हैं । इनके वर्ण विन्यास में जहाँ एक ओर कोमल कान्त पदावलि, स्वाभाविक और सरल भाषा शैली है वहीं दूसरी ओर वे संगीत की मधुरिमा से ओतप्रोत हैं । तुक, गति, यति और लय के साथ नाद सौंदर्य का सुन्दर समन्वय है।
प्रस्तुत संग्रह के प्राय: सभी कवि जैसे, बनारसीदास, भैया भगवतीदास, भूधर दास, दौलतराम, और भागचन्द्र संगीत के पारखी कवि हैं । इनके पद शास्त्रीय रागरागिनियों पर आधारित हैं, जैसे राग सारंग, बिलावल, यमन, रागकली, काफी, धनाश्री, केदार, आसावरी, पील, मल्हार आदि । पदों के ऊपर राग के नाम के साथ-साथ कहीं-कहीं ताल का उल्लेख भी है यथा-पृष्ठ ५ पर पद संख्या १२ में, राग सोरठ एक तालो
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