Book Title: Sramana 1997 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 133
________________ १३२ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ इसके साथ ही साथ उनके सामान्य लक्षणों को भी विवेचित किया गया है । वनस्पति, के विविध रूपों को आयुर्वेदीय ग्रन्थों से सन्दर्भ लेकर उनके विभिन्न पर्यायों को भी उद्धृत किया गया है । आगमविज्ञ गणाधिपति तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ के निर्देशन ने इस कोश की प्रामाणिकता को बल प्रदान किया है। आयुर्वेदीय विद्या में रुचि रखने वाले श्रीमान् झूमरमल जी की दृष्टि ने इसे उपयोगी बनाया है। मुनि श्रीचन्द जी 'कमल' ने इस कोश को अत्यंत श्रमपूर्वक तैयार किया है । स्थान-स्थान पर चित्रों के कारण इस कोश ग्रन्थ की महत्ता द्विगुणित हो गयी है । यह एक उपयोगी कोश है। मुद्रण साफ और सुन्दर है । कवर की साज-सज्जा में अंतर्राष्ट्रीय मानकों के प्रयोग का प्रयत्न किया गया है । प्रयास सराहनीय है । विद्वत् जगत् में इस कोश का निश्चय ही स्वागत होगा। डॉ० रज्जन कुमार श्रीभिक्षु आगम विषयकोश- भाग एक वाचनाप्रमुख गणाधिपति तुलसी, प्र.सं.आचार्य महाप्रज्ञ, सं०- साध्वी विमलप्रज्ञा, साध्वी सिद्धप्रज्ञा, प्रका०- जैन विश्वभारती इंस्टीच्यूट, लाडनूं (राज०), १९९६, आकार-रायल आक्टो सजिल्द, पृ० ४३, ७५६; मूल्य ५००/- रुपये . प्रस्तुत कोश जैन विश्वभारती से जैन-विद्या के विविध पक्षों पर प्रकाशित-बहुमूल्य एवं अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थों की श्रृंखला में एक गौरवमयी कड़ी है । जैन विश्वभारती के तप: पूत पावन प्राङ्गण में परमपूज्य गणाधिपति तुलसीजी एवं आचार्य महाप्रज्ञाजी की प्रेरणादायी निश्रा में वहाँ के अन्तेवासी साधक-साधिका एवं विद्वान् जैन-विद्या के अध्ययन-अध्यापन एवं शोध के क्षेत्र में कार्यरत लोगों के कार्य को सरल बनाने हेतु पूर्ण मनोयोग एवं सोद्देश्यपूर्ण ढंग से प्रयत्नरत हैं । प्रस्तुत कोश में आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी और अनुयोगद्वार को तथा इन आगमग्रन्थों पर उपलब्ध व्याख्या साहित्य को आधार बनाकर चुने गये १७८ विषयों का, मूल और हिन्दी अनुवाद के साथ, प्रतिपादन है । परम्परागत विषयों के साथ-साथ इसमें आधुनिक विषयो जैसे- परामनोविज्ञान, जो अतीन्द्रिय ज्ञान पर आधारित है, का भी विस्तृत निरूपण है। सम्बद्ध आगमों की व्याख्याओं के मूल को हिन्दी अनुवाद सहित विषय-प्रतिपादन में प्रयोग करना इस ग्रन्थ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष है । व्याख्याग्रन्थों की सामग्री का यत्र-तत्र प्रयोग कोश ग्रन्थों में (जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, जैन लक्षणावली आदि) हुआ है। परन्तु पूर्णरूप से और हिन्दी अनुवाद के साथ सामग्री का प्रस्तुतीकरण इस ग्रन्थ को अत्यन्त उपादेय बना देता है । आगमिक व्याख्या साहित्य की भी,जो अभी अनुवादादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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