Book Title: Sramana 1997 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 132
________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/ १९९७ किया है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में दिया गया सम्पादकीय जहाँ इसके वैज्ञानिक दृष्टि से किए सम्पादन को स्पष्ट करता है वहीं भूमिका ग्रंथ की विषयवस्तु का संक्षिप्त रूप से परिचय करा देती है । अतः दोनों ही अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । ग्रन्थ के अन्त में गाथानुक्रम, विशिष्ट शब्दों की व्याख्यायें और ग्रन्थ में आयी हुई लगभग १३५ कथाओं का संक्षिप्त विवरण ग्रन्थ के महत्त्व में अभिवृद्धि करते हैं और सम्पादक की विषय में गहरी पैठ को सूचित करते हैं । परिशिष्ट क्रमांक १३ में उन्होंने व्यवहारभाष्य की गाथाओं का निशीथभाष्य, आवश्यकभाष्य, जीतकल्पभाष्य, बृहत्कल्पभाष्य, पंचकल्पभाष्य आदि के साथ एक तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया है जो निश्चय ही सम्पादिका का तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अवदान माना जा सकता है । गणाधिपति तुलसीजी आचार्य, महाप्रज्ञ जी और मुनि श्री दुलहराजजी भी निश्चित रूप से अभिवंदना के पात्र हैं जिनके निर्देशन में यह महत्त्वपूर्ण कार्य सम्यक् रूप से सम्पन्न हुआ है । : १३१ मुद्रण और साजसज्जा आकर्षक है । किन्तु ग्रन्थ का जो ७०० रु० मूल्य रखा गया है वह अधिक लगता है । इसके कारण यह ग्रन्थ विद्वानों और अध्येताओं के लिए दुलर्भ बन कर ही नहीं रह जाये । जैन विश्व भारती से अनुरोध है कि इस के. मूल्य में अध्येताओं और सामाजिक संस्थाओं के लिए कमी करे । डॉ० ० सागरमल जैन जैन आगम : वनस्पति कोश प्रवाचकः गणाधिपति तुलसी; प्रधान संपादक : आचार्य महाप्रज्ञ; सम्पादक : मुनि श्रीचन्द्र 'कमल', प्रकाशक: जैन विश्व भारती, लाडनूं (राजस्थान), प्रथम संस्करण १९९६, साइज - डबल क्राउन; जिल्द -हार्ड बैक ; पृ० ३४७ + ११ मूल्य - ३००रु० /- । वनस्पतियों का विचित्र संसार है । यह विविध रूपों में इस जगतीतल पर चारों तरफ फैला हुआ है । यह पृथ्वी, जल, वायु सभी जगह पाया जाता है । कभी यह तन्तु के रूप में दिखाई पड़ता है, तो कभी विशाल शाखाओं से युक्त विस्तृत भू-भाग पर फैले वृक्ष के रूप में। कभी फूलों के रूप में विविध रंगों की छटा बिखेरता है तो कभी विविध प्रकार के फल प्रदान कर अपनी विचित्रता का भान कराता है । जैनागमों में वनस्पति के इन विविध रूपों का उल्लेख हुआ है जिन्हें "जैन आगम: वनस्पति कोश" में संकलित करने का प्रयत्न किया गया है । इस कोश में आगमों में वर्णित वनस्पति के विविध रूपों के प्राकृत शब्दों को संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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