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श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ : ६४
इंद्रन की संगति कियै रे, जीव पडै जगमांहि । जनम-मरण बहु दुख सहै रे, कबहूं छूटे नांहि ।।१२५।। रे प्रा. भरम पस्यों रस नाक कै रे, कमल मुद्रित भए नैन । केतक कांटन वेधीयौ रे, कहूं बन पायौ चैन ।।१२६।। रे प्राणी० कांनन की संगत कीयै रे, मृग मारयौं वन माहि । अहि पकर्यो रस कांनकै रे, कितहूं छूटयौ नांहि ।।१२७।। रे प्राणी० आखिनि रूप निहरिकै रे, दीप परत है धाय । देखो प्रगट पतंग कौ रे, खोवत अपनी काय ।।१२८।। रे प्राणी० रसना रस मछ मारीयो रे, दुरिजन करि विसवास । जातै जगत विगूचीयो रे, सहै नरक दुख वास ॥१२९।।रे प्राणी० फरस हितै गज वस पस्यौरे, वांधों संकल तांनि । भूख प्यास बहु दुख सहै रे, किहि विध कहै वखान ।।१३०।। रे प्राणी० पांचौ इन्द्री प्रीति सौं रे, जीव सहै दुख घोर । काल अनंतौ जग फिरै रे, बहुरि न पावै ठौर ।।१३१॥ रे प्राणी० मन राजा कहिये बडो रे, इंद्रिन को सिरदार । आठ पहर प्रेरत रहै रे, उपजै कई विकार ।।१३२।। रे प्राणी० मन इंद्रिय संगति कियै रे, जीव पडै जग जोय । विषयनि की इच्छा बढ़े रे, कैसे शिवपुर होई रे ।।१३३।। रे प्राणी० इंद्रीय तै मन होई वस रे", जोरियै आतम मांहि । तौरियै नातो राग सौ रे, फोरियै, बल सौ थांहि ।।१३४।। रे प्राणी० इंद्रिन नेह निवारियै, टारियै क्रोध कषाय । धारियै संपत सासती रे, तारियै त्रिभुवन राय ।।१३५।। रे प्राणी० गन अनंत जामै लसै रे, केवल दरसन आदि ।। केवलज्ञान विराजतौ रे, चेतन चिन्ह अनादि ।।१३६।। रे प्राणी० फिरता काल अनादि लौ रे, राजै जिहि पद मांहि । सुख अनंत स्वामी बहै रे, दूजै कोऊ नांहि रे ।।१३७।। रे प्राणी० शक्ति अनंत विराजतौरे, दोष न जामै कोय ।
१. ब प्रति - परमान २. अ प्रति - तास म ३. अ प्रति - दिष्ट ६. ब प्रति- केतकी
४. ब प्रति-ढाल- कपूर हुवै अति उजलो रे मिरिया
सेती रंग ऐ देशी ।। ५. अ प्रति केवल ७. ब प्रति - मन मारिये रे
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