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श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ : ७४
द्विजवर निरुपम नो द्रुतमनय
प्रणति विनतशिरसो वयमपि ते ॥९/१६३।। - तूणक ९. (तूणकं समानिकापदद्वयं विनाऽन्तिमम् ।) द्विगुणित समानिका वृत्त के प्रत्येक चरण में से अन्तिम अक्षर घटा देने पर यह छन्द होता है ।
समानिका''- (ग्तौ रजौ समानिका तु) इस प्रकार तूणक नामक छन्द में क्रम से गुरु, लघु, रगण, जगण, गुरु लघु, रगण, लघु और गुरु, वर्ण होते है । भुंगसन्निभौश्चिता: कचैर्बभूवुरंगनाः
काश्चनायताक्षिका वरांगिका क्षणेन ता: कर्णपूरपूरिता: पराः कुचानतांगिका
मन्मथेन निर्मितास्सुशर्मलम्भबुद्धयः ॥९/१६५।। नर्दटक १- (यदि भवतौ नजौ भजजला गुरु नर्दटकम् ) इसके प्रत्येक चरण में नगण, जगण, भगण, जगण, जगण, लघु और गुरु वर्ण होते हैं ।
सुरपतिनीलरत्नचयसन्निभकेशभरं
जलचरनाभिकंठमरुणाधरपाणिपदम् । विकसित कुन्ददन्तमतिदीप्तिधरं वपुषा
समभिनिरीक्ष्य तोषमगमन्मदनो मनसा ।।९/१८१।। भजुङ्गप्रयात २- (भुजङ्गप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः ।) इसके चारों चरणों में चार यगण होते हैं।
अहो छद्मिता वै वयं विप्रकेण
विगुप्ताश्च सर्वं हतं चापि तोयम् । खलेनात्र कुर्मो वयं किं वराक्यः
स्फुटं चेति वाठू रुषां ताम्रनेत्राः ।।९/१६६।। मन्दाक्रान्ता ३- (मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्) इसके चारों चरणों में क्रमश: मगण, भगण, नगण, तगण, तगण और दो गुरु वर्ण होते हैं । इसमें चार, छ: और सात वर्णों पर यति होती है जैसेयस्यां मत्तभ्रमरमुखरा: पादपा नित्यरम्या:
पद्मिन्योपि प्रतिदिशमतं पुष्पमालाभिरामाः । वाप्यः प्रायो मरकतशिलाबद्धभित्तिप्रदेशाः ।
स्वर्गी स्वर्गं त्यजति बहुधा वीक्ष्यं यस्याश्च लक्ष्मीम् ॥९/८९।। पद्मनिधि या नन्दिनी१४- जिस वृत्त के प्रथम एवं तृतीय चरणों में क्रमश: तगण, तगण, जगण एवं रगण हो तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरणों में क्रमश: जगण, तगण,
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