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जैनों में साध्वी प्रतिमा की प्रतिष्ठा, पूजा व वन्दन इतिहास व प्रामाणिकता के संदर्भ में
महेन्द्र कुमार जैन 'मस्त'
विजय वल्लभ स्मारक दिल्ली के प्रांगण में अभी कुछ मास पूर्व ही पूज्य महत्तरा साध्वी मृगावती श्री जी की भव्य प्रतिमा को शास्त्रीय विधि-विधान तथा धूमधाम से प्रतिष्ठापित किया गया है । पूरे भारत से जैनों की गणमान्य संस्थाओं के प्रतिनिधिप्रमुख तथा श्रावक भाई-बहन जो तीन दिन के इस समारोह में पधारे थे, वे सभी हार्दिक अभिनंदन व बधाई के पात्र हैं। प्रतिमा स्थापना के दृश्यों के जो चित्र उस समारोह में जीवंत संजोये गए, वे भावी पीढ़ियों के लिए बहुमूल्य विरासत बने रहेंगे।
जैन भारती महत्तरा साध्वी मृगावती श्री जी महाराज, जिन्हें कांगडा तीर्थउद्धारिका, लहरा गुरुधाम तीर्थ की स्रष्टा , जैन कालेज अंबाला की जीवनदात्री तथा विजय बल्लभ स्मारक की आदि प्रणेता जैसे सार्थक विशेषणों से भी याद किया जाता है, इस युग की महान साध्वी थीं । १८ जुलाई १९८६ को इसी स्मारक पर ही वे देवलोक सिधारी थीं।
इतिहास में साध्वी प्रतिमा
भारत के इस भाग में प्रतिष्ठापित की जाने वाली तपागच्छीय परम्परा की यह सर्वप्रथम साध्वी प्रतिमा है । यहां से आगे श्री नाकोड़ा तीर्थ पर दक्षिणवर्ती मंदिर में साध्वी सज्जनश्री जी के प्रतिमा की दर्शन होते हैं । दिल्ली के दादावाड़ी (महरौली) मंदिर में भी साध्वी-रत्न पूज्य विचक्षण श्री जी महाराज की ऐसी ही प्रतिमा है । जैन परम्परा में साध्वी जी की प्रतिमा को बनाना, प्रतिष्ठापित कराना व पूजना कोई नई बात नहीं है । करीब ९०० या १००० वर्ष पहले की प्रतिष्ठित साध्वी प्रतिमाएं अभी भी कई तीर्थों-मंदिरों में मिलती हैं । महान साध्वियों की अनुपम उपलब्धियों के प्रति यह कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है ।
४० वर्ष पहले बंबई से एक महाग्रंथ - “वल्लभ स्मारक ग्रंथ' प्रकाशित हुआ था। मुनिराज आगम-प्रभाकर श्री पुण्यविजय जी, डॉ. साण्डेसरा तथा प्रो. पृथ्वीराज जी ने इस ग्रंथ का संपादन किया था । इसी में एक लेख आचार्य यशोदेवविजयी
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