Book Title: Sramana 1997 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 115
________________ ११४ : श्रमण/ / जुलाई-1 सतम्बर : प्रो० आर० के० पाण्डेय, प्रोफेसर, भौतिकी विभाग, का० हि० वि० वि० विद्यामनीषी प्रो. विद्यानिवास मिश्र ने विषय प्रवर्तन करते हुए काल के सनातन एवं कूटस्थ नित्य माना । उन्होंने अपने उद्बोधन में काल के संबंध में प्रचलित विभिन्न मान्यताओं की व्याख्या करते हुए तीन मत प्रस्तुत किए १. काल संबंधी रेखीय अवधारणा, २. काल संबंधी शंख वलयाकार अवधारणा एवं ३. काल संबंधी वृत्ताकार S अवधारणा | प्रो० रेवती रमण पाण्डेय ने काल को भारतीय चिन्तन का एक प्रमुख घटक माना । उन्होंने काल-संबंधी अवधारणा का ऐतिहासिक विमर्श प्रस्तुत किया । अपने पत्रवाचन में प्रो० पाण्डेय ने काल संबंधी भौतिकी वैज्ञानिक चिन्तन को तत्त्वमी मांसीय स्वरूप प्रदान किया । डॉ० आर० के० पाण्डेय ने काल संबंधी वैज्ञानिक चिन्तन को भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया । इन्होंने काल के संबंध में उठाए गए प्रश्न- 'काल निरपेक्ष अथवा सापेक्ष' का वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत किया । इन्होंने काल के त्रि-आयामी, चतुर्यामी एवं पंचआयामी स्वरूप पर भी प्रकाश डाला । सत्राध्यक्ष प्रो० त्रिपाठी ने काल संबंधी समस्याओं का निरसन जिस कुशलता से किया वह उनके गंभीर अध्ययन का परिचायक रहा । पत्रवाचक - द्वितीय सत्र : अपराह्न १.०० ५.०० सांय सत्राध्यक्ष Jain Education International : प्रो० रघुनाथ गिरि, पूर्व संकायाध्यक्ष, कला संकाय महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी । प्रो० आर. एस. शर्मा, पूर्व अध्यक्ष : अंग्रेजी विभाग, का० हि० वि० वि० । : डॉ० अशोक कुमार सिंह, वरिष्ठ प्रवक्ता पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी । : प्रो० रामजी सिंह, निदेशक गाँधी विद्या संस्थान, राजघाट (वाराणसी) मुख्य वक्ता धन्यवाद ज्ञापन : श्री इन्द्रभूति बरार, संयुक्त मंत्री, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी प्रो० शर्मा ने अपने पत्र वाचन में काल संबंधी प्लेटोनियन, कांटीयन, न्यूटोनियन एवं आइंस्टीनियन विचारों को आधार बनाकर भारतीय चिन्तन में इसकी प्रासंगिकता - विषय पर बल दिया । इन्होंने अपने पत्र में मुख्य रूप से काल एवं अन्य सत्तात्मक वस्तुओं में क्या संबंध हो सकता है अथवा होना चाहिए इस विषय पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए । विद्यापीठ के प्रवक्ता डॉ० अशोक कुमार सिंह ने 'जैन परम्परा में काल की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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