Book Title: Sramana 1997 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 124
________________ १२३ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ से रचित गीतों में रसोच्छल पदशय्या, संगीतिक माधुरी, कमनीय कल्पना और मनोरम बिम्बों से आपूरित आपातरमणीय भाषिक सौन्दर्य के सरस आस्वाद भूयिष्ठ भाव से उपलब्ध होते हैं । माधवमालती छन्द में “महाअर्घ्य' शीर्षक से रचित गीत की कुछ काव्यभाषिक मोहक पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं ; जिनमें हृदयावर्जक चाक्षुष बिम्बविधान हुआ है: रात जब ढलने लगी तो ज्ञान की बरसात आयी। मधुरिमा पारी उषा की प्रभाती नव किरण लायी । गान गाए भ्रमरदल ने कोकिला मृदु मुस्करायी। सलिल सरिता मदभरी अंगड़ाइयाँ लेती सुहायी । लालिमा स्वर्णाभ होने के लिए आतुर दिखायी । भान चित्र-विचित्र ऊगा उषा ने पायी विदायी । साम्य भावों की पवन चुपचाप आ निज में समायी । मौन सस्वर पाठ सुनकर आत्मा ने स्वछवि पायी ॥ इस गीतावतरण में काव्य और दर्शन का चित्तोलादक समाहरण हुआ है । इस मोक्षदायक ग्रन्थ के प्रस्तोता पवैयाजी ने समयसार की प्रत्येक मूलगाथा के काव्य-रूपान्तरण द्वारा गाथा की पारम्परिक व्याख्या की पुनर्व्याख्या तो की ही है, 'उसका पुनर्मूल्यांकन भी किया है । निश्चय ही, पवैयाजी का समग्र जैनशास्त्र के, कर्मकाण्डीय पुनः प्रस्तवन का यह सारस्वत प्रयास अनुपम, अभूतपूर्व और पुरस्करणीय है ; क्योंकि जैनागम या जैनशास्त्र के माध्यम से पूजन-विधि का अपना धार्मिक मूल्य तो है ही,सर्वसाधरण के बीच ज्ञानगम्य जैनशास्त्रों का धार्मिक भूमिका में साधारणीकरण जैनजगत् के लिए अभिनव श्लाघनीय उपलब्धि है । ___ समयसार की महिमा का समुद्भावक सम्पादकीय वक्तव्य अतिशय ज्ञानोन्मेषक है। सजिल्द और कलावरेण्य शुद्ध मुद्रण से संवलित एवं विशद काव्यात्मक व्याख्या-वैभव से विभूषित 'समयसार' जैसे दुर्लभ ग्रन्थ को स्वल्प मूल्य में सुलभ करने के निमित्त तारादेवी पवैया प्रकाशन को जितना भी साधुवाद दिया जायेगा, कम होगा । प्रकाशक का यह मन्तव्य कि प्रस्तुत कृति 'तारादेवी पवैया प्रकाशन की अद्भुत अपूर्व महिमामय भेंट है, बिलकुल सत्य है । श्री रंजन सूरिदेव, पी०एन० सिन्हा कालोनी , भिखनापहाड़ी, पटना -६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144