Book Title: Sramana 1997 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 112
________________ श्रमण जुलाई-सितम्बर/ १९९७ : १११ जिनागमों की मूल भाषा पर द्विदिवसीय विद्वान्- संगोष्ठी प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, प्राकृत विद्या मंडल और प्राकृत जैन विद्या विकास फंड नाम की तीन संस्थाओं के संयुक्त तत्त्वावधान में तथा जैनाचार्य श्री सूर्योदय सूरीश्वरजी और श्री शीलचन्द्रसूरिजी की पावन निश्रा में अहमदाबाद के शेठ हठीसिंह केसरीसिंह वाडी के भव्य जैन मंदिर के परिसर में " जैन आगमों की मूल भाषा" संबंधी एक विद्वत्-संगोष्ठी दिनांक २७-२८ अप्रैल, १९९७ को आयोजित की गयी । अभी-अभी दो एक वर्षों से जैन धर्म के कतिपय मुनिवरों और अमुक विद्वानों द्वारा ऐसा मत प्रस्थापित करने का जोरदार प्रयत्न किया जा रहा है कि महावीर और उनके आगमों की भाषा अर्धमागधी प्राकृत नहीं बल्कि शौरसेनी प्राकृत थी । इस नये अभिगम और मतभेद का प्रामाणिक मूल्यांकन तथा परीक्षण करना अनिवार्य बन गया था । इसीलिए आचार्य श्री की प्रेरणा से इस विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन हुआ । दो दिन की इस संगोष्ठी में स्थानीय और भारत के विविध स्थलों से आगत विद्वानों द्वारा १३ शोध-पत्र प्रस्तुत किये गये । इसमें जैन दर्शन के शीर्षस्थ विद्वान् पं. दलसुखभाई मालवणिया, डॉ. हरिवल्लभ भायाणी, डॉ. मधुसूदन ढाकी, डॉ. सागरमल जैन, डॉ. सत्यरंजन बनर्जी, डॉ. रामप्रकाश पोद्दार, डॉ. एन. एम. कंसारा, डॉ. के. ऋिषभचन्द्र, डॉ. रमणीक शाह, डॉ. भारती शैलत, डॉ० प्रेमसुमन "जैन, डॉ० जितेन्द्र शाह, डॉ. दीनानाथ शर्मा, समणी चिन्मयप्रज्ञा एवं कु. शोभना शाह ने भाग लिया । इसके अतिरिक्त अन्य लगभग चालीस विद्वानों ने भी संगोष्ठी की चर्चा में सक्रिय भाग लिया । दिनांक २६ अप्रैल को उद्घाटन समारोह में अतिथि विशेष के रूप में श्वेताम्बर जैन समाज के श्री श्रेणिकभाई कस्तूर भाई, श्री प्रताप भोगीलाल तथा श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन उपस्थित रहे । समारोह का संचालन डॉ. कुमारपाल देसाई ने किया । इस अवसर पर डॉ० के. आर. चन्द्र के द्वारा दस वर्ष के कठोर परिश्रम से भाषिक दृष्टि से पुनः सम्पादित "आचारांग प्रथम अध्ययन” का विमोचन ( लोकार्पण) पं. दलसुखभाई मालवणिया के करकमलों द्वारा किया गया तथा अन्य पांच ग्रन्थों का विमोचन भी विभिन्न महानुभावों द्वारा किया गया । संगोष्ठी की प्रथम बैठक की अध्यक्षता बहुश्रुत इतिहासविद् तथा स्थापत्यविद् प्रो० मधुसूदन ढांकी ने की। इस बैठक में चार विद्वानों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। संगोष्ठी के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता सुविख्यात भाषाशास्त्री डॉ० सत्यरंजन बनर्जी (कलकत्ता) ने की । इस बैठक में पाँच शोध-पत्र प्रस्तुत किये गये । जिसमें डॉ० सागरमल जैन, डॉ० पोद्दार, डॉ० बनर्जी आदि के व्यक्तव्य विशेष ध्यान आकर्षित करने वाले और मौलिक संशोधन थे I युक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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