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: श्रमण / जुलाई-सितम्बर/ १९९७
एवं गण हो, उसे पद्मनिधि या नन्दिनी वृत्त कहते हैं । एवं करोम्यार्य ससंभ्रमो द्रुतं समारुरोहाश्वमतीव चञ्चलम् ।
अश्वोपि बभ्राम तथातिवेगतो
ऽनुरञ्जयामास यथास्य मानसम् ||९ / ९८ ॥
माल भारिणां १५ - (साज्गगाः स्भर्या मालभारिणी । ओजे ससजगगाः । समे सभरयाः । ) इस वृत्त के विषम चरणों में क्रमशः सगण, सगण, जगण और दो गुरु वर्ण तथा सम चरणों में क्रमशः सगण, भगण, रगण और यगण होते हैं ।
न हि वाहयितुं ममास्ति शक्ति
कामिनी" एवं रगण होते हैं
र्भवतस्तेन तुरङ्गमर्पयामि ।
अथवा धृतबाहुकं प्रयत्नात्
यदि मां रोपयितुं क्षमाः समस्ताः + ||९ / १०६ ॥ ( रज्रा: कामिनी ।) इस वृत्त के प्रत्येक चरण में क्रमश: रगण, जगण
।
हारिचक्रवाकसुस्तनी
अंगनेव बल्लभा नृणां
हंसवृन्दचारुगामिनी ।
भट्ट दुर्लभा हि पापिनाम् ।। ९/५२ ।।
दशम सर्ग में ८६ श्लोक हैं जो शालिनी ९७, वसन्ततिलक ९८, अनुष्टुप् ९९, प्रमिताक्षरा, द्रुतविलम्बित १०१, मालिनी १०२, स्वागता १०३, उपेन्द्रवज्रा १०४ एवं शार्दूलविक्रीडित १०५ छंदों में निबद्ध हैं । इनमें शालिनी छन्द का प्रयोग सबसे अधिक हुआ है । एकादश सर्ग में १०३ श्लोक हैं । इस सर्ग के सभी श्लोक द्रुतविलम्बित छन्द में प्रणीत हैं । द्वादश प्रश्नैर्याणां में ६४ श्लोक हैं जो अनुष्टुप् १०६, मन्दाक्रान्ता १० एवं स्रग्धरा १०८ में निबद्ध हैं । स्रग्धरा १०९ का लक्षण इस प्रकार है- प्रम्नैर्याणां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम् ।)
इसके चारों चरणों में क्रमश: मगण, रगण, भगण, नगण और तीन-तीन यगण होते हैं । इसमें सात, सात, वर्णों पर यति होती है ।
दोषाघातीद्धदीप्तिर्विमलगुणनिधिबोधयन्पद्मखण्डान्
पुण्यो धाम्नां निधानं हतपरमहिमा वंद्यपादो जनौघैः । श्रीमानस्तार्थमोहस्त्रिभुवनभवने दीप्रदीपोपि भानु
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र्भीतो दाहादिवोच्चैरुदयगिरिशिरो मन्दमागत्य तस्थौ ॥ १२ / ६४ ॥
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