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श्रमण / जुलाई-सितम्बर / १९९७
स्वभ्रातॄन्पितंर स्वमातरं
पौनः पुण्यमतीव सादरम् ।
स स्नेहमतिः प्रणम्य तान्
तद्देशाच्चलितः सनारदः ||९ / ३ ||
मत्तमयूर ४ ( वेदै रन्धैम्तौ यसगा मत्तमयूरम् ।) इसके चारों चरणों में मगण, तगण, यगण, सगण और एक गुरु वर्ण तथा चार और नौ अक्षरों में यति होती हैउत्फुल्लास्यं व्याततपक्षं कृतकेकं
नृत्यासक्तं मन्थरपादं वनगुञ्जे ।
गुञ्जन्मत्तैर्भृङ्गसमूहैः कृतगीतैः
पश्योत्कंठ मत्तमयूरं मदनेमम् ॥९/२७||
कालभारिणी ८५ (विषमे ससजा यदा गुरू चेत्, सभरा येन तु कालभारिणीयम् ) विषम चरणों में क्रमशः सगण, सगण, जगण और दो गुरु वर्ण तथा सम चरणों में सगण, भगण, रगण और यगण होते हैं ।
इति वाचमतीव गर्वसारां
हरिसूनुः प्रमदावहां निशम्य । निजभृत्यजनान् जगाद शक्ता
निममारोपयतेति कौतुकेन ॥९/१०८ ॥
दोधक - ( दोधकमिच्छति भत्रितयाद् गौ ) इसके प्रत्येक चरण में तीन भगण और अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं- जैसे :
कोपवशादभिपात्य समस्तं
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भूरुहवृन्दमसंवृतगात्रः ।
त्रोटितचारुलतानिकरोस्मा
त्प्राप पुरीं पुरुषोत्तमसूनुः ||९/१३७॥
विद्युन्माला' - ( मो मो गो गो विद्युन्माला ।) के चारों चरणों में क्रमश: दो मगण और दो गुरु वर्ण होते हैं । इस प्रकार इसमें आठों वर्ण गुरु होते हैं - पुत्र्यो दत्त स्नातुं मह्यं
वाप्यां नीरं शान्त्यर्थं च ।
कस्याप्येतद्दत्तं येन
भोक्तुं पुर्यां पाप्नोम्यस्याम् ||९ / १५० ॥
चण्डी“- (नयुगलसयुगलगैरिति चण्डी ।) चारों चरणों में क्रमशः नगण, नगण, सगण, सगण, और एक गुरु वर्ण होता है
कुरु पृथुकुचजघनस्थलरम्याः
श्रवणनयनवचनामृतयुक्ता: ।
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