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७१ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७
। सप्तम सर्ग में ११३ श्लोक हैं जो स्वागता२४, रथोद्धता२५, मालिनी३६ और शार्दूलविक्रीडित३७ में निबद्ध है इसमें स्वागता सर्वाधिक प्रयुक्त छन्द है । नवीन छन्दोंस्वागता एवं मालिनी के लक्षण एवं उदाहरण इस प्रकार हैं:
स्वागता८- (स्वागता रनभगैर्गुरुणा च) के सभी चरणों में रगण, नगण, भगण और दो गुरु वर्ण होते हैं। .
पूर्वसूचितमनोज्ञजनान्ते
कौशलेति नगरी रमणीया । हेमनाभ इति नाम नरेन्द्रः
शास्ति तां दिवमिवामरनाथः ॥७१॥ मालिनी९.
- (ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकै:) प्रत्येक चरण में क्रमश: नगण, नगण, मगण, यगण और यगण तथा आठ और सात अक्षरों में यति होती है । इति नृपतिकरस्थो नारदस्तद्यथाव
न्मदनसहजवृत्तं सर्वमेव निशम्य । त्रिभुवनगुरुपादौ पूजयित्वातिभत्त्या
खचरनिलयमागाद्वालकालोकनाय ॥७/१११॥ अष्टम सर्ग में १९७ श्लोक हैं जो प्रमिताक्षरा', वैश्वदेवी १, शालिनी४२, वसंततिलक ३, स्वागता", रथोद्धता ५, शार्दूलविक्रीडित ६ और मालिनी छंदो में निबद्ध हैं । इसमें प्रमिताक्षरा छन्द का प्रयोग सबसे अधिक हुआ है । नूतन छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण इस प्रकार हैं -
प्रमिताक्षरा'८- (प्रमिताक्षरा स ज स सैः कथिता ।) अर्थात् जिसके प्रत्येक चरण में क्रमश: सगण, जगण, सगण और सगण हों, उस छन्द को प्रमिताक्षरा छन्द कहते
अथ कालसम्बरखगेन्द्रगहे
जननेत्रकैरवविकाशयिता । जनयन्प्रमोदमधिकं जगतो
ववृद्धे स बालकविधु: शनकै : 11८/१॥ वैश्वदेवी ९. (बाणाश्वैश्छिन्ना वैश्वदेवी ममौ यौ) प्रत्येक चरण में दो मगण तथा दो यगण होते हैं, पाँचवें तथा सातवें वर्ण पर यति होती है । वीरैः सद्योधैः पातिता योधमुख्या:
स्थूरीपृष्ठौघेः सादिनः सादिताश्च । नागैर्नागेन्द्रा वीरभूपैश्च भूपाः
सर्वे खेटौघा मायया सम्प्रयुध्य ॥४/८६॥
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