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श्रमण / जुलाई-सितम्बर/ १९९७
शती माना जा सकता है । प्रशस्ति में उल्लिखित गुर्वावली इस प्रकार है
बुद्धिसागरसूरि
विमलसूरि
गुणमाणिक्य
भावकवि (अबंडरास और हरिश्चन्द्ररास के रचनाकर)
बालावसही, शत्रुंजय में प्रतिष्ठापित धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि० सं० ० १५७६ के लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में विमलसूरि का नाम मिलता है जिन्हें समसामयिकता, नामसाम्य आदि के आधार पर उक्त दोनों प्रशस्तियों में उल्लिखित विमलसूरि से अभित्र मानने में कोई बाधा दिखाई नहीं देती ।
उक्त दोनों प्रशस्तियों के आधार पर विमलसूरि की शिष्य परम्परा की एक छोटी तालिका बनायी जा सकती है, जो इस प्रकार है :
तालिका- १
धु
वा० शिवसुन्दर
गुणमाणिक्य
भावकवि
(अंबडरास और हरिश्चन्द्र रास के कर्ता )
युगादिदेवस्तवनम् की वि० सं० १६१० / ई० स०
१५५४ में लिखी गयी प्रति
की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार ब्रह्माणगच्छीय नयकुंजर ने स्वयं को गुणसुन्दरसूरि का शिष्य बतलाया है ।
विमलसूरि (वि० सं० १५७६ / ई० स० १५२०)
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प्रतिमालेख
(वि० सं० १५९८ / ई० स० १५४२ में रसरत्नाकर के प्रतिलिपिकार)
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गुणसुन्दरसूरि
नयकुंजर (वि० सं० १६१० / ई० स० १५५४ में युगादिदेवस्तवन प्रतिलिपिकार) ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध १६वीं शताब्दी के प्रथम चरण का साक्ष्य होने से यह प्रशस्ति इस गच्छे के इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है ।
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