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श्रमण / / जुलाई-सितम्बर/ १९९७
१.
पद्मदेवसूरि
'सावदेवसूरि के पट्टधर बुद्धिसागरसूरि
लब्धिसागरसूरि देवचन्द्रसूरि
प्रद्युम्नसूरि के शिष्य
शीलगुणसूरि
देवेन्द्रसूरि
उदयप्रभसूरि
क्षमासूर
शीलगुणसूरि उदयप्रभसूरि के पट्टधर राजसुन्दरसूरि
(वि० सं० १३९३ / ई० स० १३३७)
(वि० सं०
(वि० सं०
(वि० सं०
१४२९ / ई० स०
१४११ / ई० स०
१४३२ / ई० स०
( वि० सं०
१४४१ / ई० स०
( वि० सं०
१४६५ / ई० स०
(वि० सं० १४८१-१५२८ / ई०स०
(वि० सं०
१४८९ / ई० स०
( वि० सं०
१५२० / ई० स०
( वि० सं० १५३० / ई० स० १५७४)
विक्रम संवत् की १८वीं शती के छठे दशक के पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध अद्यावधि कोई भी साक्ष्य प्राप्त न होने से यह अनुमान किया जा सकता है कि इस समय के पश्चात् यह गच्छ नामशेष हो गया होगा । संभवतः इसकी मुनिपरम्परा समाप्त हो गयी और इसके अनुयायी श्रावक-श्राविकायें किन्हीं अन्य गच्छों में सम्मिलित हो गये होंगे । यह गच्छ कब और किस कारण अस्तित्व में आया ? इसके आदिम आचार्य या प्रवर्तक कौन थे ? प्रमाणों के अभाव में ये सभी प्रश्न आज भी अनिर्णित ही रह जाते हैं ।
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१३६३)
१३५६ )
१३६६)
सन्दर्भ
मुनि जयन्तविजय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, (आबू - भाग ४ ), भावनगर वि०सं० २००४, पृष्ठ ८१-८७.
१३८५)
१४०९)
१४२५ - १४७२)
१४३३)
१४६४)
२. (१) संवत् ११९२ ज्येष्ठ सुदि
(२) (ति) अवंतीनाथ श्रीजयसिंहदेव कल्याण विजयराज्ये एवं काले प्रवर्तमाने । इहैव पा -- ग्रामे --
नवपदलघुवृत्ति-पूजाष्टकपुस्तिका श्राविका वाल्हवि
(३) लिषिते साधु साध्वी श्रावक श्राविकाचरणाकृते । श्रीब्रह्माणीयगच्छे श्रीविमलाचार्य शिष्य श्रावक आ टि श
(४) तिहई साढदेव आंबप्रसाद आंबवीर श्रावक
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-यक
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