Book Title: Sramana 1997 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 48
________________ ४५ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ ५. (श्री) मुनि तिलक सूरि श्रा० ............ ६. .......... वीर जिनालय, वरमाण से प्राप्त एक स्तम्भ लेख६ जो वि० सं० १४४६/ ई० स० १३९० का है, में ब्रह्माणगच्छीय कुछ मुनिजनों की गुर्वावली दी गयी है,जो इस प्रकार है : मदनप्रभसूरि भद्रेश्वरसूरि विजयसेनसूरि रत्नाकरसूरि हेमतिलकसूरि सादड़ी से प्राप्त उक्त लेख में भी हेमतिलकसूरि का नाम मिलता है । जैसा कि पूर्व में हम देख चुके हैं वि. सं० १४३२ से १४५४ तक के विभिन्न लेखों में हेमतिलकसरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में नाम मिलता है । ऐसा संभव है कि वि०सं० १५०१/ई० स० १४४५ के लेख में उल्लिखित हेमतिलकसूरि और अपाणगच्छीय हेमतिलकसरि एक ही व्यक्ति हों । ऐसा मान लेने पर ब्रह्माणगच्छ के तीन पश्चात्कालीन मुनिजनों के नाम उक्त अभिलेख ज्ञात हो जाते हैं जिन्हें तालिका के रूप में इस प्रकार रखा जा सकता है: तालिका-६ मदनप्रभसूरि (वि० सं० १३२७) प्रतिमालेख भद्रेश्वरसूरि (वि०सं० १३७०) ,, ,, ,, ,, विजयसेनसूरि (वि० सं० १३७५-१३८०) ,, ,, ,, रत्नाकरसूरि (वि० सं० १४१२-१४२९) ,, ,, ,, ,, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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