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श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ : ६०
द्वादशांग वानी अवैजी, बोले वचन रसाल । अर्थ कहै सूत्रन सबैजी, सिखवै धर्म विशाल ।।७४।।जती० - दुरजन तै सज्जन करें जी, बोले मीठे बोल । जैसी कला न और 4 जी, कान आंख किह तौल' ॥७५।।जतीश्वर० जीभ हीतैं सब जीतियै जी जीभ ही” सब हार । जीभ हीतैं सब जीव कौ जी, कीजतु हैं उपगार ।।७६।। जती० जीभ होतें गनधर भए जी, भव्यन पंथ दिखाय । आपन वै सिवपुर गए जी, कर्म कलंक खपाय ।।७७।। जतीश्वर० जीभ होतें उवझाय भए जी, पावै पद परधान । जीभ हीरौं समकित लह्यौ जी, परदेशी परधान ।।७८।। जती० मथुरा नगरी में हुवौ जी, जंबू नाम कुमार ।। कहिकै कथा सुहावनी, प्रतिबोध्यो परवान' ।।७९।। जती० नारी वनसौ३ विरचै भलैजी, बाल महामुनि बाल ।
अष्टापद मुगतेम गए जी, देखहुं ग्रंथ निहाल ।।८०।। जती० मेटै उरझ उर की सवै जी, पूछौ पदम' प्रतछ । प्रगट लहै परमात्मा जी, विनसै भ्रमको पक्ष ।।८१।। जती० तीन लोक मै जीभ मैं, जूष दूर करै अपराध । तौ प्रतिक्रमण क्रिया करे जी, पढि समझावहि साध ।।८२।। जती० जीभ हीतै सब गाइयै जी, सातुं सुर के भेद । जीभ हीतै जसु जपियै जी, जीभ पढहि सब वेद ।। ८३।। जती० नाम ज जीभहि लीजीयै जी, उत्तर जीभही होइ। जीभ ही जीव खिमाइयैजी, जीभ समो नहि कोइ ।।८४॥ जती० केते जीव मुकतै गए जी, जीभ ही के प्रसाद ।
नाम कहा लग लीजीयै जी, 'भैया' बात अनाद ।।८५।। जती० ५. स्पर्श (फरस) इन्द्रिय द्वारा जीभ की आलोचना
दोहरा फरस कहै रे जीभ तूं, एतौ गर्व करंत । तौ लागै झूठो कहैं, तौहु नाहि लजंत ॥८६॥ १. ब प्रति- पै लोल
५. ब प्रति - प्रश्न २. ब प्रति - परिवार
६. ब प्रति - ही जी ३. ब प्रति - रावनसों
७. ब प्रति सिझाये ४. ब प्रति - मुक्ते
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