Book Title: Sramana 1997 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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५८ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/ १९९७
चक्षु इंद्रिय द्वारा आत्मप्रशंसा -
कानिनि की बात सुनी, सांची झूठी होइ । आंखनि देखी बात जौ, तामै फेर न होइ ।।५।। इन आंखनि सौ देखीय, तीर्थंकर को रूप । सख अनंत हिरदै बसै२, सो जानै चिद्रूप ।।५१।। आंखनि लखि रक्षा करै, उपजै पुन्य अपार । आंखनि के परसाद सौ, सुखी होत संसार ।।५२।। आंखनितै सब देखीयै, मात-पिता सुत-भ्रात ।
देव गुरु अरु ग्रंथ सब, आंखिन” विख्यात ॥५३॥ चौपाईनी
ढाल- वनमाली को बागि चंपा मौलि रह्यौ इह देसी आंखनि के परसाद, देखै लोक सवैरी । आवै निज पद याद, प्रतिमा पेखत बेरी ।।५४।। आख० देख्या छग संधान', ग्रन्थ अनेक कह्यारी । जे भाख्या भगवंत, दर्वित तेह लह्यौरी ।।५५।। आं०. समोसरन की रिद्धि, देखत हरष घनौरी । प्रभु दरसन फलसिद्धि, नाटक कौन गन्यौरी ॥५६।।आखं जिनमंदिर जैकार, प्रतिमा परम बनी री । देखत हर्ष अपार, थुति नही जाहि भनीरी ।।५७।। आ. ईर्या समति निहार, साधु चलै जु भलै री। तौ पावै शिवनारि, सुख की कीर्त्त फलैरी ।।५८।। आं० आंखनि विंब निहार, समकित सुद्ध लह्यौ री ।। गोत्र तीर्थंकर धार, रावण नाम कह्यौ री ।।५९।। आं० बाधनि साधु विधारि', दंतहि दिष्ट धरी री। पूरब भवहि निहार, त्यागनि देह करी री ।।६०।। आंख
चारौ परतेकबुद्ध, देखत भाव फिरेरी । . लही निजातम सुद्ध, भवजाल वेग तिरेरी ।।६१।।आंख १. ब प्रति- बेधिये
६. ब प्रति -गिनोरी २. ब प्रति- सुख असंख्य हिरदै लसे. ७. व प्रति विदार ३. अ प्रति-रिक्षा
८. ब प्रति ४. ब प्रति-तात मात
९. प्रत्येक बुद्ध ५. ब प्रति - सिद्धान्त
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