________________
५६
:
/ जुलाई-सितम्बर/ १९९७
श्रमण/
नाम
।
"
कहूं केता तणा, तस्या जग मांही रे । नाक तौ परसादथी, सिव संपत बिलसाही रे ||२४|| सुख विलसै संसारना, ते सब मुझ परसादै रे नाना वस्तु सुगंधता, नाक सकल आस्वादै रे ।। २५ ।। तीर्थंकर त्रिभुवन धनी, तेना तन निवासो रे । परम सुगंधो महा लसै ते सुख नाक निवासो रे ॥२६॥ और सुगंधो अनेक छै, ते सब नाकज जाणै रे । आनंदमां सुख भोगवै, 'भैया' एम बखाणै रे ॥२७॥ २. कर्णेन्द्रिय द्वारा घ्राणेन्द्रिय की आलोचना कान कहै रे नाक सुणि, तू कहा करै गुमांन । जौ चाकर आगे चलै, तो नहि भूप समान ॥ २८ ॥ नाक सुरनि पानी झरे, बहै सलेष्म अपार । गुंगनि करि पूरित रहै, लाजै नहीं गँवार ।। २९ ।। तेरी छीक सुनै जितै, करै न उत्तम काज । मूर्दै तोहि दुर्गंध मैं, तउ न आवै लाज ॥३०॥ वृषभ ऊँट नारी निरख, और जीव जग मांहि । जित तित तोकौ छेदीयै, तउ लज्जा तौ नांहि ||३१|| कर्णेन्द्रिय द्वारा आत्म- प्रशंसा
कान कहौ जिन बैन कौं, सुनै सदा चितलाय । जिस प्रताप इस जीव कौं, सम्यक् दरसन थाय ॥ ३२ ॥ कानन कुंडल झलकता, मणि मुकता फल सार । जगमग जगमग ह्वै रहै, देखै सब संसार ॥३३॥ सातौ सुर कौ गायवौ, अद्भुत सुख कौं स्वाद । इन कांनन करि परखिये-मीठे-मीठे नाद ॥ ३४॥ काननि सुनि श्रावक भये, कानिनि सुनि मुनिराज । कान सुनि गुन दर्व (द्रव्य) के, कान बड़ों सिरताज ॥३५॥ चौपाई, राग- काफी धमाल मैं
टेक- काननि ध्यान धाईए हौ चिनमूरति चेतन पाईए हौ - इह आंकनी' । कांन सरभर को करे हो, कान बड़े सिरदार । हो, जाने सकल विचार || ३६ || टेक
छहौ द्रव्य के गुण सुनै १. ब प्रति तेहना तनमा वासो २. ब प्रति - घणीं ३. ब प्रति- गूंघनि
Jain Education International
४. अ प्रति- काम कहैट नारी रखा ५. ब प्रति- काननि सुनि ध्यान धयाइये . हो, चिमूरति चेतन पाइये ही
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org