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श्रमण)
पंचेन्द्रिय संवाद : एक आध्यात्मिक रूपक काव्य
__ संपादक -श्रीमती डॉ० मुन्नी जैन पुरानी हिन्दी में रचित ‘पंचेन्द्रिय संवाद' नामक प्रस्तुत लघुकाव्य कृति के रचनाकार कविवर भैया भगवतीदास जी हैं। इन्होंने इसकी रचना आगरा नगर में भाद्र शुक्ला द्वितीया वि० सं. १७९१ में की थी। जैसा कि रचनाकार ने इसकी प्रशस्ति में कहा भी है -
जिनवानी जो भगवती, तास-दास जो कोई । सो पावे सुख स्वासतो, परम-धरम पद होई ॥१४९।। सत्रह से इक्यानवे, नगर आगरे मांहि ।
भादौ सुदि शुभ दोज कौ, बाल ख्याल प्रगटांहि ।।१५०॥ जैनधर्म, दर्शन-अध्यात्म आदि लगभग ६७ विषयों पर प्राचीन विभिन्न एवं दुर्लभ राग-रागिनियों में निबद्ध पदों का संकलन रूप "ब्रह्मविलास' नामक बृहद् काव्य कृति के रचनाकार कविवर भैया भगवतीदास (वि० सं० की १८ वीं शती ) मूलत: आगरा निवासी कटारिया गोत्रीय ओसवाल जैन थे। इनके पिता का नाम लालजी और पितामह दशरथ साह थे । आपने भैया, भविक, दासकिशोर- इन उपनामों एवं भगोतीदास तथा भगवतीदास-अपने इन नामों का स्वरचित पदों में प्रयोग किया है। इन्होंने अपनी अनेक रचनाओं में उनके रचनाकाल का उल्लेख तो किया है, किन्तु न तो उन्होंने अपने जन्म की तिथि सूचित की और न ही परवर्ती लेखकों ने उनकी मृत्यु तिथि का कोई उल्लेख किया । अत: इनके जन्म और मृत्यु की तिथियों का सही उल्लेख उपलब्ध नहीं होता। किन्तु इनकी रचनाओं में वि० सं० १७३१ से १७५५ तक के समय के उल्लेख से आपका जन्म सत्रहवीं शती के अंत या अठारहवीं शती के प्रारम्भ का समय निश्चित होता है । आपने आगरा के तत्कालीन मुग़ल शासक औरंगजेब (वि० सं० १७१५ से १७६४) का भी उल्लेख किया है ।
जंबूद्वीप सु भारतवर्ष, तामें आर्य क्षेत्र उत्कर्ष । तहां उग्रसेनपुर थान, नगर आगरा नाम प्रधान ।। नृपति तहाँ राजै औरंग, जाकी आज्ञा बहै अभंग । तहाँ जाति उत्तम बहु बसै, तामै ओसवाल पुनि लसै । तिनके गोत बहुत विस्तार, नाम कहत नहिं आवै पार ।। सबतें छोटो गोत प्रसिद्ध, नाम कटारिया रिद्धि समृद्ध ।। दशरथ साहू पुण्य के धनी, तिनके रिद्धि वृद्धि अति घनी ।
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