Book Title: Sramana 1990 04
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ ( २१) गया है, किन्तु भाषा पर अपभ्रंश के प्रभाव को देखते हुए इसे परवर्ती ही माना जायेगा। इसका काल दसवीं शताब्दी के लगभग होगा। इस प्रकीर्णक में इस तीर्थ पर दान, तप, साधना आदि के विशेष. फल की चर्चा हुई है। ग्रन्थ के अनुसार पुण्डरीक तीर्थ की महिमा और कथा अतिमुक्त नामक ऋषि ने नारद को सुनायी, जिसे सुनकर उसने दीक्षित होकर केवल ज्ञान और सिद्धि को प्राप्त किया। कथानुसार ऋषभदेव के पौत्र पुण्डरीक के निर्वाण के कारण यह तीर्थ पुण्ड रीक गिरि के नाम से प्रचलित हुआ। इस तीर्थ पर नमि, विनमि आदि दो करोड़ केवली सिद्ध हुए हैं। राम, भरत आदि तथा पंचपाण्डवों एवं प्रद्युम्न, शाम्ब भादि कृष्ण के पुत्रों के इसी पर्वत से सिद्ध होने की कथा भी प्रचलित है। इस प्रकार यह प्रकीर्णक पश्चिम भारत के सर्वविश्रुत जैन तीर्थ की महिमा का वर्णन करने वाला प्रथम ग्रन्थ माना जा सकता है। श्वेताम्बर परंपरा के प्राचीन आगमिक साहित्य में इसके अतिरिक्त अन्य कोई तीर्थ सम्बन्धी स्वतन्त्र रचना हमारी जानकारी में नहीं है। . इसके पश्चात् तीर्थ सम्बन्धी साहित्य में प्राचीनतम जो रचना उपलब्ध होती है, वह बप्पभट्टिसूरि की परम्परा के यशोदेवसूरि के गच्छ के सिद्धसेनसूरि का सकलतीर्थस्तोत्र है। यह रचना ई० सन् १०६७ अर्थात् ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध की है। इस रचना में सम्मेत शिखर, शत्रुञ्जय, उर्जयन्त, अर्बुद, चित्तौड़, जालपुर ( जालोर ) रणथम्भौर, गोपालगिरि ( ग्वालियर ) मथुरा, राजगृह, चम्पा, पावा, अयोध्या, काम्पिल्य, भद्दिलपुर, शौरीपुर, अंगइया ( अंगदिका), कन्नौज, श्रावस्ती, वाराणसी, राजपुर, कुण्डनी, गजपुर, तल. वाड़, देवराउ, खंडिल, डिण्डूवान (डिण्डवाना), नरान, हर्षपुर (षट्टउदेसे). नागपुर (नागौर-साम्भरदेश), पल्ली, सण्डेर, नाणक, कोरण्ट, 'भिन्नमाल, (गुर्जर देश), आहड़ (मेवाड़ देश)उपकेसनगर (किराडउए) जयपुर (मरुदेश) सत्यपुर (साचौर), गुहुयराय, पश्चिम वल्ली, थाराप्रद, वायण, जलिहर, नगर, खेड़, मोढेर, अनहिल्लवाड़ (चड्ढावल्लि), स्तम्भनपुर, कयंवास, भरुकच्छ (सौराष्ट्र),कुंकन, कलिकुण्ड, मानखेड़, दक्षिण भारत) धारा, उज्जैनी (मालवा) आदि तीर्थों का उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118