________________
साहित्य सत्कार
17
"संस्कृत शतक परम्परा और आचार्य विद्यासागर के शतक; ' लेखक : डॉ० आशालता मलैया ; प्रकाशक : जयश्री आयल मिल, दुर्ग, मूल्य : १२०.०० (एक सौ बीस रुपये)
प्रस्तुत कृति डॉ० आशालता मलैया के सागर विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत शोध-प्रबन्ध का मुद्रित रूप है । इसमें विद्वान लेखिका ने प्रथम दो सौ पचास पृष्ठों में संस्कृत साहित्य में रचित वैराग्य, नीति और शृङ्गार शतकों के साथ-साथ स्तुति शतकों का विवरण प्रस्तुत किया है और उसका यथाशक्ति मूल्यांकन भी किया है । इसमें ४६ शतकों का विवरण दिया गया है, शेष २५० पृष्ठों में आचार्य विद्यासागरजी के पांच शतकों के परिचय के साथ उनके व्यक्तित्व, कृतित्व एवं उनके शतकों के मूल्यांकन का प्रयत्न भी किया गया है । भाषा, प्रस्तुतिकरण की शैली आदि सभी दृष्टि से ग्रन्थ उत्तम और संग्रहणीय है । इस ग्रन्थ के माध्यम से उन्होंने न केवल आचार्य श्री विद्यासागरजी की विद्यासाधना को उजागर किया है, अपितु यह भी सिद्ध किया है कि जैनों में अद्यतन संस्कृत भाषा में लेखन की परम्परा जीवित है । आचार्य विद्यासागरजी का व्यक्तित्व निश्चित ही महान है । उनमें साधना के सौरभ और ज्ञानगांभीर्यं दोनों एक साथ उपलब्ध हैं। ऐसे महिमामयी व्यक्तित्व की साहित्यिक साधना को उजागर करने वाला ग्रन्थ निश्चय ही विद्वत् समाज में आदरणीय होगा । किन्तु ग्रन्थ में एक अभाव सबसे अधिक खटकता है वह यह है कि उन्होंने इस ग्रन्थ में विवेच्य शतकों में किसी भी श्वेताम्बर आचार्य की कृति का समावेश नहीं किया है, जबकि दिगम्बर जैन एवं जैनेतर आदि परम्पराओं के शतकों को स्थान दिया है । मैं नहीं मानता कि उन्होंने साम्प्रदायिक आग्रहवश ऐसा किया होगा किन्तु इस सम्बन्ध में उनका अज्ञान ही इसका कारण हो सकता है । श्वेताम्बर जैनाचार्यों की शतक कृतियों में हरिभद्र का योगशतक, सोमप्रभसूरि का सिन्दूरप्रकरण, धनद् के श्रृंगार, नीति और वैराग्यशतक, धनदेव का पद्मानन्द ( वैराग्य ) शतक, विजयसिंहसूरि का साम्यशतक, नरचन्द्र उपाध्याय का प्रश्नशतक तथा सोमसुन्दर का श्रृंगारवैराग्य
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org