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.. ( १०९) प्रस्तुत कृति में देविदत्थओ (देवेंद्रस्तव) का शब्दानुसारी हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है और इसके साथ-साथ ग्रन्थ में प्रत्येक गाथा का व्याकरणिक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है जो अर्थबोध और प्राकृत भाषा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। देवेन्द्रस्तव श्वेताम्बर आगम साहित्य के प्राचीन ग्रन्थों में एक महत्त्वपूर्ण प्रकीर्णक ग्रन्थ है। यद्यपि नामकरण से ऐसा लगता है कि यह देवेन्द्र की स्तुति होगी, परन्तु वास्तविकता यह है कि यह देवेन्द्र को स्तुति न हो कर विभिन्न प्रकार के देवों के विभिन्न पक्षों का एक विस्तृत विवरण है । प्रस्तुत कृति की विशेषता यह है कि इसके प्रारम्भ में एक विस्तृत भूमिका दी गयी है जो ग्रन्थ के विभिन्न पक्षों को गम्भीरतापूर्वक प्रस्तुत करती है। विवेच्य ग्रन्थ की गाथायें अन्य आगमों में कहाँ और किस रूप में पायी जाती हैं-उनका विश्लेषणात्मक विवरण दिया गया है, जो महत्त्वपूर्ण है। ग्रन्थ पठनीय और संग्रहणीय है।
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x उपासकदशाङ्गः एक अध्ययन-डा० सुभाष कोठारी; मूल्य ५० रुपये; प्रथम संस्करण : नवम्बर १९८८ ई०; प्रकाशक-आगम अहिंसा समता और प्राकृत संस्थान, पद्मिनी मार्ग, उदयपुर (राजस्थान)।
प्रस्तुत कृति डा० सुभाष कोठारी द्वारा उदयपुर विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का मुद्रित रूप है । इस शोध प्रबन्ध पर उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा पी० एच० डी० की उपाधि प्रदान की गयी। विवेच्य कृति की विशेषता यह है कि यह न केवल उपासकदशाङ्ग में वर्णित श्रावकचार का विस्तृत और तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करती है अपितु इसके साथ ही उस ग्रन्थ का भाषाशास्त्रीय अध्ययन भी प्रस्तुत करती है। उपासकदशाङ्ग में जैन श्रावकाचार का प्राचीनतम् रूप सुरक्षित है अतः श्रावक आचार में रुचि रखने वालों के लिये यह ग्रन्थ उपादेय और पठनीय है। ग्रन्थ का मुद्रण और साज-सज्जा आकर्षक है । ग्रन्थ के प्रकाशन के लिये लेखक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। X X
X जम्बू गुणरत्नमाला एवं अन्य रचनायें : रचनाकार-श्री जेठमल चौरड़िया; पृ० १९+१३५; तृतीय संस्करण १९८९ ई०; मूल्य १८
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