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मना राजा बना । इस अध्याय में पारेत जनपद, चर्मण्वती नदी और रन्ति नदी का समीकरण किया गया है। ढींपुरी तीर्थ की पहचान मालवा की धमनार पहाड़ी से की गयी है । वहाँ अनेक जैन गुफाएँ हैं और बूंदी से कोटा के बीच वालौरी, धमनार की पहाड़ी, चम्बल नदी, झालरापाटन, चन्द्रावती आदि स्थान हैं ।
वङ्कचूल के उदाहरण "वक्कचूड़कहा" और गुजराती काव्यों में आते हैं । "रासमाला" में चूड़चन्द्र का उल्लेख है । फोर्बस उसे यदुवंशी बतलाता है । रूसी पौराणिक शौर्य कथा - साहित्य में वङ्क नामक विधवा-पुत्र के विषय में मिले गीत एक राजकुमारी की कथा पर आधारित हैं । किन्तु ध्वन्यात्मक साम्य के अतिरिक्त चूड़चन्द्र या रूसी वङ्क का वङ्कचूल से कोई भी सम्बन्ध नहीं है । वस्तुतः वङ्कचूल ढींपुरी के राजकुमार पुष्पचूल का विद्रूपित नाम था ।
राजशेखर ने वङ्कचूलप्रबन्ध को सातवाहनप्रबन्ध और विक्रमादित्यप्रबन्ध के बीच में स्थान दिया है । इसलिए वङ्कचूल सम्भवतः विक्रमादित्य के पहले अथवा वरिष्ठ समकालीन था । वङ्कचूल प्रथम शताब्दी के पहले का राजपुरुष था; क्योंकि उसे उज्जैनी के विद्वान् राजा का सामन्त और सुस्थिताचार्य का समकालीन कहा गया है । सुस्थिताचार्य का समकालीन चन्द्रगुप्त मौर्य साम्राज्य - संस्थापक चन्द्रगुप्त नहीं है, अपितु दशरथ मौर्य का भाई और उत्तराधिकारी सम्प्रति (२१६-२०७ ई० पू० ) हो सकता है क्योंकि कई इतिहासकार सम्प्रति को मौर्य वंश का द्वितीय चन्द्रगुप्त मानते हैं ।
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सम्प्रति ने अशोक, कुणाल और दशरथ तीनों के शासन-कार्यों में सहायता की थी । उसे पाटलिपुत्र और उज्जैन दोनों में शासन करते हुए दर्शाया गया है। अजमेर, कुम्भलमेर और गिरनार में उसके द्वारा निर्मित और महावीर को समर्पित मन्दिरों के अवशेष आज भी पाये जाते हैं। अभिलेख और मुद्राओं से जैन-धर्म की ओर उसकी रुझान ज्ञात होती है । सम्प्रति के एक सिक्के पर एक ओर ऊपर-नीचे सम्प्र और दी शब्द लिखा है और दूसरी ओर ऊपर-नीचे-और-चिह्न हैं। किसी-किसी सिक्के में के नीचे ( स्वस्तिक) चिन्ह बने हैं । - सामान्यतः मौर्य सिक्कों पर ऊपर से नीचे और चिन्ह हैं ।
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