________________
नरसिंह 'प्रथम' (११४१-७३ ई०) के चार मुख्य सेनापतियों में हुल्ल जैनधर्म का अनन्य भक्त था। हुल्ल ने श्रवण-बेल्गोल में चतुर्विशति जिनालय का निर्माण (संभवतः ११५९ ई० में) तथा तीन जैन केन्द्रों का जीर्णोद्धार कराया था। संभवतः उसने उत्तर में भी जिनालयों का निर्माण कराया और उनी के नाम पर कश्मीर में एक नया नगर "नवनगर बसाया गया जो "नवहुल्लनगर" के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
प्रबन्धकोश में पारस्परिक संघर्ष, असन्तोष, वर्ग-संघर्ष आदि के वर्णन मुख्यता नो प्रबन्धों में आते हैं । जैन होते हुए भी राजशेखर ने वर्ग-संघर्ष सामूहिक हत्याकाण्ड, युद्ध, हिंसा आदि का वर्णन किया है। ये वर्ग-संघर्ष भौतिकवादी कम और आध्यात्मिक अधिक हैं। तुगलक साम्राज्य के हृदय-प्रदेश दिल्ली में रहते हुए राजशेखर ने जिन वर्ग संघर्षों का वर्णन किया हैं वे उसके सत्यानुराग और इतिहास-प्रियता के प्रतीक हैं।
यद्यपि प्रबन्धकोश की कतिपय तिथियाँ सुक्ष्म-गणना में किंचित त्रुटिपूर्ण हैं तथापि यह स्पष्ट है कि राजशेखर ने कालक्रम को इतिहास का एक अभिन्न अंग माना है और उसका प्रायः निर्वाह किया है। उसने जैन-प्रबन्धों को साहित्य से पृथक करके इतिहास का दर्जा प्रदान किया।
छठे अध्याय में इतिहास-दर्शन के प्रमुख तत्वों के आधार पर स्रोत, साक्ष्य, परंपरा, कारणत्व, कालक्रम आदि का विवेचन किया गया है। इसी में प्रबन्धकोश के गुण-दोषों का विवेचन करते हुए ग्रंथकार की सीमाओं का भी उल्लेख किया गया है ।
ए० के० मजुमदार ने राजशेखर को निकृष्टतम इतिवृत्तकार कहा है और वस्तुपाल-तेजपाल प्रबन्ध के कई दोष दर्शाये हैं :
(१) राजशेखर को वाघेलों के प्रारंभिक इतिहास का कम ज्ञान था और वह अर्णोराज को भीम (द्वितीय) का उत्तराधिकारी बना देता है।
(२) वह सोमेश्वर के विचारों का अनुकरण करता है। (३) वह त्रिभुवनपाल को पूर्णतया विस्मृत कर जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org