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( ९७ ) (४) दिल्ली के सुरत्राण मोजदीन की सेना को वस्तुपाल ने जो शिकस्त दी, वह सन्देहास्पद है। राजशेखर वस्तुपाल का यश-वर्णन सत्य का दांव लगाकर करता है। मजुमदार महोदय उदाहरण देते हुए कहते हैं कि मेरुतुङ्ग ने एक श्लोक तेजपाल के मुख से कहलवाया है जिसे राजशेखर उद्धृत करता है और कहता है कि वीरधवल के निधन के उपरान्त वस्तुपाल ने उस श्लोक को पढ़ा।
"आयान्ति यान्ति च परे ऋतवः क्रमेण. . ." जहाँ तक अर्णोराज का सवाल है राजशेखर ने अपने समूचे ग्रन्थ में उसका केवल एक बार उल्लेख किया है। राजशेखर सही कहता है कि वह अर्णोराज चौलुक्यवंशीय था न कि चाहमानवंशीय । राजशेखर ने अर्णोराज को न किसी का उत्तराधिकारी कहा है और न बनाया है। प्रबन्धकोश से यह स्पष्ट है-"तदनु मूलराजचामुण्डराज-वल्लभराज-दुर्लभराज-भीम-कर्ण-जयसिंहदेव-कुमारपाल-अजयपाल-लघुभीम-अर्णोराजैः चौलुक्यः सनाथीकृतः ।" ___ "सनाथीकृतः" का तात्पर्य किसी भी स्थिति में उत्तराधिकृत नहीं हो सकता है। "सनाथीकृत" का अर्थ हुआ कि इन चौलुक्यों ने (गुर्जरधरा को) सुरक्षा प्रदान की। अतः राजशेखर की कालक्रमीय सटीकता की प्रशंसा करनी चाहिये। जिस तारतम्य से उसने इन बौलुक्यों का उल्लेख किया है वह कालक्रम की दृष्टि से सही है। मजुमदार ने दूसरी भूल यह की है कि वे अर्णोराज के निधन को भीम (द्वितीय) के शासनारंभ में रखते हैं। परन्तु प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार अर्णोराज ने कुमारपाल से भीम (द्वितीय) तक चौलुक्यों के सामन्त के रूप में शासन किया। मजूमदार के मत के विपरीत समकालिक वसन्तविलास में उल्लेख है कि अर्णोराज ने राजा के पक्ष में रहते हुए राज्य की रक्षा की। अतः राजशेखर द्वारा अर्णोराज को चौलुक्य कहना और उसके द्वारा गुजरात की सुरक्षा करने के कथन की पुष्टि हो जाती है। मजुमदार का यह कथन कि राजशेखर को वाघेलों के प्रारंभिक इतिहास का कम ज्ञान था, भ्रान्तिपूर्ण है। राजशेखर की इतिहासप्रियता और तथ्यों के प्रति ईमानदारी का प्रमाण उसका यह कथन है :
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