Book Title: Sramana 1990 04
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 52
________________ ( ५० ) - हुंडक और कुब्जक संस्थानों की चर्चा हमें आधुनिक मनोवैज्ञानिक शेल्डन द्वारा की गयी वर्गीकरण में नहीं प्राप्त होती है । इसका कारण यह है कि आधुनिक मनोवैज्ञानिक साधारणतया सामान्य व्यक्तियों को ध्यान में रखकर, उनका अध्ययन तथ' वर्गीकरण प्रस्तुत करते हैं। अगर इन व्यक्तियों के भी स्वभावों का अध्ययन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से किया जाय तो बहुत कुछ सत्य प्राप्त हो सकती है। जहाँ तक 'अष्टावक्र ऋषि' के शारीरिक बनावट और बौद्धिक सामर्थ्य का प्रश्न है. उन्हें तो अपवाद ही मानना होगा। शरीर-संरचना मानव व्यक्तित्व के लिए एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है । जैन परम्पराके साथ-साथ आधुनिक मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि शारीरिक संरचना का प्रभाव व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर भी पड़ता है । यद्यपि जै धर्म में आध्यात्मिक दृष्टि से संस्थान को विशेष महत्त्व नहीं दिया गया है, क्योंकि उनके अनुसार छहों संस्थानों के व्यक्ति निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त कर सकते हैं। शारीरिक संरचना, व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में तो बाधक नहीं किन्तु व्यावहारिक जीवन का महत्त्वपूर्ण तथ्य है। शोध सहायक पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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