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मुड़, महुआ आदि के संयोग से मदशक्ति उत्पन्न हो जाती है । उसी प्रकार इन भूतों के संयोग से चैतन्य उत्पन्न हो जाता है। चूंकि ये भौतिकवादी प्रत्यक्ष के अतिरिक्त अन्य कोई प्रमाण नहीं मानते, इसलिये दूसरे मतवादियों द्वारा मान्य इन पंचमहाभूतों से भिन्न परलोकगामी और सुख-दुःख के भोक्ता किसी आत्मा संज्ञक पदार्थ को नहीं मानते । इस अनात्मवाद से ही-शरीरात्मवाद, इन्द्रियात्मवाद, मनसात्मवाद, प्राणात्मवाद एवं विषयचैतन्यवाद फलित है, जिसे कतिपय चार्वाक दार्शनिक मानते हैं।
तज्जीवतच्छरीरवाद-तज्जीव-तच्छरीरवाद चार्वाकों के अनात्मवाद का फलित रूप है। ये मानते हैं कि वही जीव है, वही शरीर है। पंचमहाभूतवादीमत में पंचमहाभूत ही शरीर के रूप में परिणित होकर दौड़नेवाला, बोलनेवाला आदि सभी क्रियायें करते हैं जबकि तज्जीवतच्छरीरवादी पंचभूतों से परिणित शरीर से ही चैतन्यशक्ति की उत्पत्ति मानता है। शरीर से आत्मा को वह अभिन्न मानता है । इस मत में शरीर के रहने तक ही अस्तित्व है। शरीर के विनष्ट होते ही पंचमहाभूतों के बिखर जाने से आत्मा का भी नाश हो जाता है। शरीर के विनष्ट होने पर उससे बाहर निकलकर कहीं अन्यत्र जाता हआ चैतन्य प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता; इसलिए कहा गया है कि - ण ते संति-४ अर्थात् मरने के बाद आत्मायें परलोक में नहीं जाती।
___नियुक्तिकार दोनों मतों का खण्डन करते हुए कहते हैं कि पंचमहाभूतों से चैतन्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि इनमें से किसी का भी गुण चैतन्य नहीं है। अन्य गुण वाले पदार्थों के संयोग से अन्य
१. सर्वदर्शनसंग्रह-माधवाचार्य, पृ० १० (चौखम्भा संस्कृत सिरीज,
वाराणसी) २. सूत्रकृतांग-१।१।११-१२, पृ० २५ ३. वही, पृ० २६ ४. वही, पृ० २६
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