Book Title: Sramana 1990 04
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 82
________________ (८०) विश्वास अवश्य होता है कि सारनाथ स्थित बौद्ध स्तूप के समान ही यहाँ जैन स्तूपों का भी निर्माण अवश्य हुआ है। हो सकता है कि पार्श्वनाथ जन्म स्थान मन्दिर के स्थल पर पहले कोई स्तुप रहा हो और उसके पश्चात् ६-७वीं शताब्दी में वहाँ मन्दिर बना हो-क्योंकि नींव के उत्खनन में कुछ प्राचीन ईंटों के टुकड़े मिले हैं। 'काशिक पंचस्तूपनिकाय' -- यह नाम स्पष्ट रूप से यह संकेत करता है कि यहाँ जैन स्तूप रहे होगें, तथापि इस सम्बन्ध में हमें अभी तक कोई पुरातात्त्विक या साहित्यिक प्रमाण नहीं मिले हैं। राजघाट ( वाराणसी ) से उपलब्ध कुछ प्राचीन जैन प्रतिमाएं वाराणसी में राजघाट के उत्खनन से कुछ जैन प्रतिमायें भी मिली हैं जो लगभग छठी शताब्दी से १०वीं शताब्दी के बीच की हैं। उनमें ईसा की लगभग छठी शताब्दी की भगवान् महावीर की प्रतिमा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । यह प्रतिमा भारत कला भवन (क्रमांक-१६१) में संरक्षित है। राजघाट से ही प्राप्त नेमिनाथ की मूर्ति भी लगभग ७वीं शताब्दी की मानी जाती है। यह प्रतिमा भी भारत कला भवन में संरक्षित है। इसी प्रकार अजितनाथ की ७वीं शती की एक प्रतिमा जो वाराणसी से ही प्राप्त हुई है, आज राजकीय संग्रहालय, लखनऊ में संरक्षित है। पार्श्वनाथ की एक अन्य मूर्ति जो राजघाट से प्राप्त हुई थी, यह ८वीं शती की है और राजकीय संग्रहालय लखनऊ में संरक्षित है, किन्तु ये सभी प्रतिमायें वाराणसी के उत्तर-पूर्वी छोर राजघाट से मिली हैं।१४ । भेलूपुर स्थित पार्श्वनाथ जन्मस्थान मंदिर वर्तमान में वाराणसी और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में छोटे-बड़े २० से अधिक जैन मंदिर हैं, किन्तु इनमें कोई भी मदिर पुरातात्त्विक दृष्टि से ३०० वर्ष से अधिक प्राचीन नहीं है । वर्तमान में भेलपुर में जहाँ पार्श्वनाथ का जन्मस्थान मंदिर बना हुआ है, उसकी भी ऐतिहासिकता एवं पुरातात्त्विक महत्त्व के सन्दर्भ में यहाँ निर्मित हो रहे दिगम्बर जैन मंदिर की नींव के उत्खनन के पूर्व हमें विशेष कुछ भी ज्ञात नहीं था। क्योंकि वर्तमान श्वेताम्बर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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