Book Title: Sramana 1990 04
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 83
________________ (८१) और दिगम्बर मंदिरों में कुछ जिन प्रतिमाओं को छोड़कर १७-१८वीं शती के पूर्व के कोई अवशेष उपलब्ध नहीं हैं। साहित्यिक साक्ष्यों की दृष्टि से १४वीं शताब्दी में जिनप्रभसूरि एक ओर देव वाराणसी में स्थित विश्वनाथ मंदिर में २४ तीर्थंकरों के एक आयाग-पट्ट होने की सूचना देते हैं तो दूसरी ओर वे यह भी कहते हैं कि यहाँ दन्तखात तालाब के किनारे पाश्वनाथ का जन्मस्थान मंदिर है।५ जिनप्रभसूरि ने तालाब के किनारे जिस मंदिर की चर्चा की है वह निश्चित रूप से भेलपुर क्षेत्र में स्थित पार्श्वनाथ का जन्मस्थान मंदिर ही है। क्योंकि कुछ वर्ष पूर्व तक भी इसके आस-पास अनेक विशाल तालाब थे, जो अब छोटेरूप में नाम मात्र के रह गये हैं, जैसे-रेवड़ी तालाब, मानसरोवर आदि। ये गंगा की उसी मृतधारा के अवशेष माने जा जा सकते हैं जिसका उल्लेख हमें ज्ञाताधर्मकथा में मिलता है। अभी तक हम कल्पप्रदीप के साहित्यिक प्रमाण से यह कह सकते थे कि जिनप्रभसूरि ने पार्श्वनाथ के जिस मंदिर के होने का उल्लेख किया है, वह भेलपुर का पार्श्वनाथ जैन मंदिर ही रहा होगा। किन्तु सौभाग्य से हाल ही में उस स्थल से कुछ ऐसे पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध हो सके हैं, जिनके आधार पर जिनप्रभ द्वारा उल्लिखित इस पार्श्वनाथ के जन्मस्थान मंदिर की प्राचीनता को सुनिश्चित किया जा सकता है । इस क्षेत्र का जो भेलपुर नामकरण हुआ है वह भी अर्थपूर्ण है। संस्कृत कोश में भेलू' का अर्थ 'बुद्ध' दिया गया है ।१६ प्राचीन जैन आगमों में जिन या तीर्थंकर के लिए 'बुद्ध' शब्द का प्रयोग भी प्रचुरता से हुआ है। उत्तराध्ययनसूत्र के १८वें और ३६वें अध्याय में तीर्थंकरों के लिए 'बुद्ध' शब्द का प्रयोग हुआ है। ऐसा लगता है कि पार्श्व से सम्बन्धित होने के कारण ही इस क्षेत्र को भेलूपुर (बुद्धपुर) ऐसा नाम मिला होगा। भेलूपुर पार्श्वनाथ मंदिर को प्राचीनता का प्रश्न यहाँ जो श्वेताम्बर-दिगम्बर मंदिर स्थित हैं, वे १७वीं-१८वीं शती से प्राचीन नहीं हैं । यद्यपि दिगम्बर मंदिर में तीन-चार प्रतिमाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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