Book Title: Sramana 1990 04
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 85
________________ ( ८३ ) पद्मासन प्रतिमा लगभग ५ फुट की रही होगी किन्तु वर्तमान में गर्दन के ऊपरी भाग और छत्र के टूट जाने से इसकी ऊँचाई ३९ इंच और चौड़ाई ३१ इंच है। प्रतिमा अत्यन्त भव्य और सुडौल रही है। सम्भवतः प्राचीन मंदिर में यही मूलनायक की प्रतिमा रही है। प्रो० मधुसूदन ढाकी, प्रो० अवध किशोर नारायण और प्रो० कृष्णदेव ने इस प्रतिमा को लगभग ५वीं-६ठीं शताब्दी का बताया है। (चित्र क्रमांक-१) अन्य प्रतिमाएं उपरोक्त प्रतिमा के अतिरिक्त यहाँ से एक स्तम्भ का शिरोभाग भी प्राप्त हुआ है । इसके चारों ओर महावीर ( चित्र सं० २) पार्व ( चित्र सं०-३ ) ऋषभ ( चित्र सं०-४) और सम्भवतः अरिष्टनेमि (चित्र सं०-५ ) की प्रतिमाएं हैं। ये प्रतिमाएँ अत्यन्त सौम्य हैं। इनकी शैली के आधार पर उक्त विद्वानों ने इन्हें उत्तर कुषाण और पूर्व गुप्त काल अर्थात् लगभग चतुर्थं शती ई० सन् का बतलाया है। सभी प्रतिमाएँ ७ इंच चौड़ी और लगभग ९ इंच ऊँची हैं। एक अन्य प्रतिमा जो लगभग ऊँचाई में २२ इंच की रही होगी, खण्डित अवस्था में प्राप्त हुई। वर्तमान में धड़ के ऊपर का भाग अनुपलब्ध है। यह प्रतिमा भी उत्तर गुप्तकाल की प्रतीत होती है । वर्तमान में अवशिष्ट भाग १२ इंच है। प्रतिमा के नीचे अस्पष्ट मृग का चिह्न होने से यह प्रतिमा शान्तिनाथ की होगी, ऐसा माना जा सकता है (चित्र सं०.६) परिकर से युक्त एक अन्य खड्गासन प्रतिमा भी यहीं से प्राप्त हुई है। इस प्रतिमा के चरणों के आस-पास स्त्री और पुरुष वंदन की मुद्रा में उत्कीर्ण हैं । परिकर में चार जिन खड्गासन में हैं। शिरोभाग के ऊपर एक जिन प्रतिमा पद्मासन में है। मुखमण्डल के दोनों ओर हाथी उत्कीर्ण हैं। इस प्रतिमाफलक की ऊँचाई लगभग पादपीठ और छत्र सहित २ फीट है। मुख्य प्रतिमा १६ इंच ऊँची और अत्यन्त सुन्दर हैं। (चित्र सं०-७) विद्वानों ने इस प्रतिमा का काल लगभग १०वीं शताब्दी माना है। प्राप्त अभिलेख इन प्रतिमाओं के अतिरिक्त पार्श्वनाथ की खण्डित फणावली भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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