Book Title: Sramana 1990 04
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ ( ५७ ) गुण वाले पदार्थ की उत्पत्ति नहीं हो सकती।' शास्त्रवार्तासमुच्चय' में हरिभद्र एवं तत्त्वार्थवार्तिक में अकलंकदेव ने कहा है कि यदि सुखादि चैतन्य शरीर के धर्म हैं तो मृत शरीर में भी रूपादि गुणों की भाँति चेतना विद्यमान होनी चाहिए, पर ऐसा नहीं है। शरीरात्मवादियों के 'किण्वादिभ्योमशक्तिवत्' के दृष्टान्त की विषमता सिद्ध करते हुये कहा गया है कि मदिरा के घटक में ही मदिरा रहती है परन्तु किसी की भूत में चैतन्य नहीं रहता। अतः यह मत असंगत है। नियुकिकार का कथन है कि यदि देह के विनाश के साथ आत्मा का विना माना जाय तो मोक्षप्राप्ति के लिए किये जाने वाले ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम, व्रत, नियम, साधना आदि निष्फल हो जायेंगे। अतः पंचमहाभूतवाद का सिद्धान्त मिथ्याग्रस्त एवं अज्ञानमूलक है। एकात्मवाद -- वेदान्ती ब्रह्म के अतिरिक्त समस्त पदार्थों को अपत्य मानते हैं, दूसरे शब्दों में चेतन-अचेतन सब ब्रह्म ( आत्मा) रूप है। शास्त्र कार कहते हैं कि नाना रूप में भासित पदार्थों को भी एकात्मवादी दृष्टान्त द्वारा आत्मरूप सिद्ध करते हैं । जैसे -पृथ्वी समुदाय रूप पिण्ड एक होते हुये भी नदी, समुद्र, पर्वत, नगर, घट आदि के रूप में नाना प्रकार का दिखाई देता है, किन्तु इन सब भेदों के बावजूद इन में व्याप्त पृथ्वी तत्त्व का भेद नहीं होता । उसी प्रकार एक ज्ञान-पिण्ड आत्मा ही चेतन-अचेतन रूप समग्रलोक में पृथ्वी, जलं आदि भूतों के आकार में नानाविध दिखाई देता है. परन्तु आत्मा के स्वरूप में कोई भेद नहीं होता। ये प्राणातिपात हिंसा में आसक्त स्वयं पाप करके दुःख को आमंत्रित करता है क्योंकि कात्मवाद की कल्पना युक्ति रहित है । अनुभव से यह सिद्ध है कि सावध अनुष्ठान करने में १. प्रमेय रत्नमाल! ४८, पृ. २९६ (लघु अनन्तवीर्य, व्याख्याकार, सम्पा० हीरालाल जैन, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी-वि० सं० २०२०) २. शास्त्रवार्तासमुच्चय-१९६५-६६ हरिभद्रसूरि, भारतीयसंस्कृतविद्या मन्दिर (अहमदाबाद-१९६९) तत्त्वार्थवार्तिक २०७॥२७, पृ० ११७ । ३. सूत्रकृतांग १११५९-१० ४. सर्वमेतदिदं ब्रह्म-छा० उ. ३१४।१; ब्रह्मखल्विदं सर्वम्-मैत्रेयुपनिषद् ४,६।३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118