Book Title: So Param Maharas Chakhai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 11
________________ तो वह विश्वास ही नहीं कर पाएगा कि छोटे से बीज से मैं इतना विराट हो गया । वृक्ष विश्वास करे या न करे; बीज में आस्था जन्मे या न जन्मे लेकिन जितने भी बरगद हुए हैं, सब बीज के परिणाम हैं । महावीर की भी हमारे जैसी ही अस्थियां, वैसी ही काया, वैसा ही शरीर का ताना-बाना, वैसा ही ढांचा था। उन्होंने भी मां की कोख से ही जन्म लिया । बुद्ध, महावीर, राम, कृष्ण, जीसस भी ऐसे ही पैदा हुए। कोई न तो आसमान से टपका, न पाताल से पैदा होकर आया । जीवन के ताने-बाने में कहीं कोई अन्तर नहीं है । अन्तर केवल खिलने और न खिलने का है । अन्तर सिर्फ चेतना के संकुचित और विस्तृत होने का है। आत्म-विकास और आत्म-बोध का फर्क है । सिकुड़ा हुआ पानी मात्रा में कितना भी क्यों न हो, लेकिन वह गड्ढा कहलाता है। बहता हुआ पानी तो विराट होता है । बहता पानी निर्मल है । वह झरना है, नदी है । रुका पानी गड्ढा है। गंदला है । गड्ढे अपनी सीमाओं के पार झाँकें, दीवारें लांघें । अलग-अलग पड़े गड्ढे नये पानी का, नये बहाव का योग पाकर बह पड़ें, तो नाला - नहरनदी बन सकते हैं। सागर हो सकते हैं। एक पेड़ की लकड़ी से दस लाख तीलियाँ पैदा होती होंगी लेकिन दस लाख वृक्षों को जलाने के लिए एक तीली ही पर्याप्त है । एक तीली में इतनी क्षमता, ऐसी सम्भावना ? कंकर-कंकर में शंकर । कंकर में भी शंकर की सम्भावना है। एक अणु में इतनी क्षमता है कि लाख आदमियों की बस्ती राख हो सकती है। पूरा हिरोशिमा होम हो गया, नागासाकी का नाश हो गया, एक अणु बम से । मनुष्य छह फुट का इंसान है पर यह भी एक बीज का ही विस्तार है। अणु का ही विकास । बीज से मनुष्य जन्मा । मनुष्य से और मनुष्य । मनुष्य की काया में, अपने जीवन के दौरान हजारों बीज बनते हैं। हर बीज बरगद की यात्रा कर बैठे, तो सारी धरती को भीड़ से भरने में एक मनुष्य की भूमिका काफी होगी यानी यह संभावना है। जब बीज में बरगद होने की संभावना है, तो मनुष्य में चैतन्य होने की, उसके परम - विकास की संभावना तो होगी ही । मनुष्य को अपनी चेतना की क्षमता का कोई अनुभव नहीं है, Jain Education International सो परम महारस चाखै/११ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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