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आज बीज है उसे कभी न कभी, कोई न कोई संयोग तो ऐसा बनेगा ही, कोई न कोई निमित्त तो ऐसा उपलब्ध होगा ही कि जमीन में धंसेगा वह बीज फूटेगा और अंकुरित होगा। उसमें से पौधा लहलहाएगा, पत्तियां उगेंगी, कांटे लगेंगे और एक दिन वही बीज कली बनेगा।
____ फूलों के प्रस्फुटित होने में बगीचे के लिए यह महत्व नहीं होता कि माटी काली है अथवा पीली है। वह माटी अमेरिकन है या भारतीय है। बीज को खिलने के लिए तो केवल माटी चाहिये। बीज तो किसी भी वर्ण की माटी में खिल सकता है। यदि उसके जीवन में विकास की नियति की कोई रेखा ही नहीं है, तो वह माटी उसे उपलब्ध नहीं होगी। यदि किसी बीज को फूल बनना है, तो उसे जमीन में धंसना होगा। बीज अगर सोचे कि वह बनिये की दुकान में पड़ा रहे या किसी की कोमल हथेली पर जम जाए, तो वह बीज कभी भी फूल नहीं बन सकता।
कुछ होने के लिए कुछ खोना पड़ता है और फूल खिलाने के लिए तो संपूर्णतः खोना पड़ता है। और जो खोना पड़ता है, वह तो पहले कदम में ही, पर जो उपलब्ध होगा, वह आहिस्ते-आहिस्ते। बीज को तो पूरा ही भूमिसात होना पड़ता है। ऐसा नहीं कि आधा बचाये, आधा जमीन में जाये। यह तो पूरा समर्पण है। यह तो पूरा तदाकार हो जाना हुआ। या तो इस पार या उस पार, सटोरियों के सट्टे की तरह। उपलब्धि हाथों हाथ हो, ऐसा नहीं है। माली बीज बोता है, पानी सींचता है, अंकुरण होता है, फिर तो भूल ही जाता है कि उसने बीज बोया। उसका काम रोजाना सींचना है, पानी देना है, कीड़े-मकोड़ों से बचाना है। फूल तो बीज से जन्मा चमत्कार है। अनहद की तरह, कुण्डलिनी-जागरण की तरह, बोधि-लाभ की तरह, कैवल्य की तरह । अचानक कलियां लग जाती हैं। फूल खिल आते हैं। सूरज एक-एक पंखुरी खोल डालता है। सारा वातावरण महक उठता है। कांटे पीछे रह जाते हैं, गुलाब हवा में लहलहा उठता है। पर अगर बीज चाहे कि मैं बीज बना रहकर ही वृक्ष बन जाऊँ-यह संभव नहीं है। बीज को टूटना ही होगा। बिना टूटे बीज कभी अपनी ही संभावना को प्रकट नहीं कर सकता, नहीं पहचान सकता। हर बीज को यही अहसास होता है कि मैं कभी महावीर, बुद्ध, राम या कृष्ण नहीं हो सकता। बीज फूटे, उसमें से बरगद प्रकट हो और वह अपने अतीत के बारे में सोचे,
सो परम महारस चाखै/१०
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