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श्री राम
खम.१
॥१७॥
जीवती रहे, तिहां लगे पंचनी साखे परणेला जरि विना (अवर के० ) बीजा पुरुषने श्चे नहीं ॥ दोहा ॥ जिहां जीवे जी अप्पणा, तिहां जीवे सब कोय ॥ दीवे तेल घटी गयु, तव अंधियारा होय ॥१॥ इति ॥७॥
उदयाचल उपर चढ्यो रे लो, मानुं रवि परनात रे ॥ वाले ॥ मयणामुख जोवा नणी रे लो, शील अचल अवदात रे ॥ वाले ॥ वचन ॥७॥ चक्रवाक उःख चूरतो रे लो, करतो कमल विकास रे ॥ वाले ॥ जगलोचन जब उगीयो रे लो, पसयो पुदवी प्रकाश रे ॥ वाले० ॥ वचन ॥ए॥ आवो देव जुदारीए रे लो, रुपनदेव प्रासाद रे॥वाले०॥
आदीसरमुख देखतां रेलो,नासेउख विषवाद रे॥वाले०॥वचन ॥१॥ अर्थ-एम स्त्री जरिने पोतपोतामा वातो करतां रात्रि वीती गश्, श्रने प्रजातनो (रवि के०) सूर्य ते उदयाचल पर्वतनी उपर चढी श्राव्यो. इहां कवीश्वर उत्प्रेदा करे के सूर्य जे उद-18 याचल उपर चढ्यो, ते हुँ एम मार्नु बु के जेना चलायमान न थाय एवा अचल शीलनां (श्रवदात के ) वखाण एवी जे मयणासुंदरी, तेनुं मुखरूप जोवाने अर्थेज जाणे चढ्यो होय नहीं ?
॥ (चक्रवाक के०) चकवा चकवीना विरहःखने चूरतो अने सूर्यविकासी कमलने विक-18 स्वर करतो एवो जगतना लोचन सरखो सूर्य जे वारे उग्यो ते वारे पृथ्वीने विषे (प्रकाश के० ) अजवालु सर्वत्र पसखु ॥ ए ॥ त्यारे मयणासुंदरी जंबर राणाने कहेवा लागी के हे स्वामिन् ! तमे मारी साथे ( आवो के) चालो तो श्रापणे श्रीशषजदेवजीना प्रासादने विषे जश्ने देव जुहारीए. त्यां श्रीश्रादीश्वर नगवाननुं मुख देखता थकाज फुःख अने विषवाद सर्व नाश पामे ॥ यतः ॥ धर्मारने कणोदे, कन्यादाने धनागमे ॥ शत्रुघाताग्निरोगे च, काल देपं न कारयेत्॥१॥इति ॥१०॥
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