Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ स्तारे कहिये, सहस धनुष पहोलपणे लहियें ॥ए केके बारणे जोश, मंगप एकवीशज होश् ॥४६॥ श्म चिहुं दिशें चोराशी, मंगप रचिया मुप्रकाशी ॥ तिहां रयणमय तोरणमाल, दीसे अति काक जमाल ॥४॥ (वचे चिहुं दिशें मूल गंजारे, थाप) जिनप्रति मा चारे ॥ मणिमय मूरति सुखकंद, थापी श्री आदि जिणंद ॥४७॥ गणधर वर पुंगरीक केरी, थापी बीहूं पासें मूर्ति जलेरी ॥ आदिजिन मूरती काउस्सग्गि या, नमी वीनमी बे पासें ठवीया ॥४॥ मणी सोवन रूप प्रकार, रची समवसरण सुवीचार ॥ चहुंदीशे चल धर्म कहंत, थापी मूरती श्रीनगवंत ॥५॥ जरतेसर जोमी हाथ, मूरती बागल जगनाथ ॥रायण तलें जी मणे पासे, प्रज्जु पगलां थाप्यां उबासें ॥ ५१ ॥श्री नानी अने मरूदेवी, प्रासादशु मूर्ति करेवी ॥ गज वर खंधे लइ मुक्ती कधी आईनी मरति नक्ति ॥ ॥५५॥ सुनंदा सुमंगला माता, ब्राही सुंदरी बहे न विख्याता ॥ वली नाश् नवाणुं प्रसिद्ध, सवि मूर ति मणमिय कीध ॥ ५३ ॥ नीपाई तीरथमाल, सु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106