Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 84
________________ (१) यण तासो जी॥ चैत्रीदिन शत्रुजय चमी, एक करे - पवासो जी ॥श ॥२॥ रत्नतणी चोरी करी, सात आंबिल शुद्ध थाय जी ॥ काती सात दिन तप कीयां रत्नहरण पाप जाय जी ॥ ॥३॥ कांसा पीतल त्रांबां रजतनी, चोरी कीधी जेण जी ॥ सात दिवस पुरिम करे, तो लूटे गिरि एण जी ॥श ॥४॥ मोती प्रवालां मुगीया, जेणें चोरयां नर नारो जी॥याबिल करी पुजा करे, त्रण टंक शुद्ध आचारो जी ॥ ॥श० ॥५॥ धान्य पाणी रस चोरीयां, जे नेटे सिक खेत्रो जी ॥ शत्रुज तलहटी साधुने, पमिलाने शुज चित्तो जी ॥श ॥६॥ वस्त्राचरण जेणें हरयां, ते बूटे इणे मेलो जी॥ आदिनाथनी पूजा करे, प्रह उठी बहु वहेलो जी ॥ श० ॥७॥ देवगुरु- धन जे हरे ते शुद्ध थाये एमो जी ॥ अधिकुं द्रव्य खरचे तिहां; पाले पोषे बहु प्रेमो जी ॥ श० ॥॥ गाय नेश गोधा मही, गज ग्रह चोरणहारो जी ॥ बूटे ते तप तीरथें, अरिहंत ध्यान प्रकारो जी ॥ शण ॥ ए॥ पुस्तक देहरा पारकां, तिहां लखे आपणां नामो जी बूटे ॥ बमासी तप कीयां, जामायिक तिण गमो जी ॥श ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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