Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ ( ए) कुंती शत्रुजा तणी, जात्रा कियां पाप जायो जी ॥ शम् ॥ १३ ॥ पांचे पांमव संघ करी, शत्रुजय नेट्यो अपारो जी ॥ काष्ठ चैत्य बिंब लेपनो, ए बारमो उझारो जी श० ॥ १४ ॥ मम्माणी पाषाणनी, प्रतिमा सुंदर सरूपो जी ॥ श्रीशत्रुजनो संघ करी, थापी सकल सरूपो जी ॥ श० ॥ १५ ॥ अहोतर शो वरसां गयां, विक्रम नृपथी जिवारोजी ॥ पोरवाम जावम करावियो, ए तेरमो उझारो जी ॥श ॥ १६ ॥ संवत बार तेरो त्तरें, श्रीमाली सुविचारो जी ॥ बाहमदे मुहूर्त करावीयो, ए चौदमो उकारो जी ॥श ॥१७॥ संवत तेर एकोत्तरें, देश लहेर अधिकारो जी॥ समरेशाहें करावीयो, ए पंदरमो उधारो जी ॥श ॥ १७ ॥ संवत पन्नर सत्याशी थे, वैशाकशुदि शुन्न वारो जी ॥ करमे दीशी करावियो, ए शोलमो उछारो जी ॥ श० ॥१५॥ सांप्रतकाले शोलमो, ए वरते ने उझारो जी॥ (नत्य नित्य कीजें वंदनाने, पामीजें नवपारो जी॥श ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥ वली शत्रुज महातम कहुं, सांजलो जिम ते जेम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106