Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१००) दीगे आदिजिणंद ॥ आदि जिणंद हांजी मरु देवीनो नंद ॥ ना ॥१॥ मीठो लागे महाराज रूप तोदरो
आज, मुजरो जीयो माहारो सारोने काज ॥ दिवस घणे दोगे तुने नाथ मुने नेह, उपनो आनंद तेहनो कोण लहे बेह मी० ॥२॥ ताथेश ताथेश् तोन वाजे श्रीनगीन दों, मृदंग देव इंदुनि ते वाजे दोदों॥ शंख वाजे तालकंसाल, धप मप मादल धमके रसाल ॥ मी० ॥ ३ ॥ दंकिटि दंकिटि थेश थेश थाप, पधनी धपमधप थर अति व्याप ॥ घणणण घुघरा घमके रे पाय, नणणण लणकारा नेरीना थाय ॥ मी ॥ ॥४॥ नाची कूदी पाय दंदी नविजन नावे, जगतिशु जगवंतने शीश नमावे ॥ मुगतिनी मोज आपो मागु बे कर जोड, शयरतन कहे नवपुःख बोम ॥ मी० ॥५॥ इति श्री शत्रुजयस्तवनं समाप्तम् ॥
इतिश्रीशत्रुजय महातीर्थनारासनहा । रादिग्रंथोना संग्रहनंपुस्तक समाप्त.॥
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