Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 105
________________ ( १०२ ) काम विटंबण शीकहुंजी, पडीस हुं दुरगति कुपरे जीनजी || मुज ॥ ११ ॥ किश्या कहुं गुण माहराजी, किश्या कहुं अपवाद ॥ जेम संभारु हैये जी, तेम तेम वाधे विखवादरे जीनजी ॥ मुज० ॥ १२ ॥ गिरुआ ते नवी लेखवे जी, निगुण सेवकनी वात || निचतणे पण मंदिरे जी, चंद्र न टाले ज्योतरे जीनजी || मुज० ॥ १३ ॥ निगुणो तोपण ताहरोजी, नाम धराव्यं दास ।। कृपा करी संभारजोजी, पुरजो मुज मन आसरे जीनजी || मुज० ॥ १४ ॥ पापी जांणी मुज भणीजी मतमुको वीसार । विख हलाहल आदर्यो जी, ईश्वर न तजे तासरे जीनजी || मुज० ॥। १५ उत्तम गुणकारी हुए जी, स्वार्थ वीना सुजाण || करण सिंचे सरभरेजी, मेह न मागे दाणरे जीनजी || मुज० ॥ १६ ॥ तुं उपगारी गुण नीलोजी, तुं सेवक प्रतीपाल || तुं समर्थ सुख पुरवाजी, कर महारी संभालरे जीनजी || मुज० ॥ तुजने शुं क ही घणुं जी, तुं सौ वाते जाण || मुजने थाजो तुं साहीबाजी, भव भव ताहरी आणरे जीनजी || मुज० ॥ १८ ॥ नाभीराया कुलचंद लोजी, मारुदेवीना नंद ॥ कहे जीन हरख निवाजज्योजी, देजो परमानंदरे जीनजी || मुज० ॥ १९ ॥ · உள்வெர்.ை Printed by Manakji Bhanji Dharamsey at The New Laxmi Printing Press, and Published by Heerji Ghellabhai Padamsi J. P. for Bhimsi Manek Trust 18-20 Kazi sayad street Mandvi Bombay 3. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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