Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ ( १०१ ) श्री यादी जिन विनंती. सुण जीनवर सेजा धणीजी, दास तणीअर दास ॥ तुज आगल बालक परेजी, हुं तो करुं वेयासरे ॥ जीनजी मुख पापीने तार || तुं तो करुणा रस भर्यो जी, तुं सहुनो हितकाररे जीनजी ॥ ज० ||१|| हुं अवगुणनो ओरडोजी, गुण तो नही लवलेश || परगुण पेखी नवी सकुंजी, केम संसार तरेसरे जीनजी ॥ मुज० ॥ २ ॥ जीवतणा वधमें कर्या जी, बोल्या मववाद || कपट करी परधन हर्यां जी, सेव्या विषय संवादरे जीनजी || मुज० || ३ || हुं लंपट हुं लालचुजी, कर्म कीधां केई क्रोड || त्रण भुवनमां को नहीजी, जे आवे मुज जोडरे जीनजी ॥ मुज० ॥ ४ ॥ छीद्र परायां अहनीसे जी, जो तो रहुं जगनाथ || कुगति तणी करणी करीजो, जोड्यो तेहसु साथरे जीजी || मुज० ॥ ५ ॥ कुमती कुटील कदामही जी, वांकीगति मति मुज || वांकी करणी माहरीजी, शी संभलावं तुजरे जीनजी ॥ मुज० ॥ ६ ॥ पुन्यविना मुज प्राणीओजी, जाणे मेलुंरे आय ॥ उचां तरुवर मोरीयाजी, त्यांही पसारे हाथरे जीनजी || मुज० ||७|| वीण खाधावीण भोगव्याजी, फोगट कर्म बंधाय || आर्तध्यान मीटे नहींजी, कीजे कवण उपायरे जीनजी || मुज || ८ || काजलथी पण सामलांजी, मारा मन परणाम | सोणा मांही ताहरूंजो, संभारुं नही नामरे जीजी || मुज० ॥ ९ ॥ मुग्ध लोक उगवा भणीजी, करूं अनेक प्रपंच ॥ कुड कपट हुं केळवीजी, पाप तणो करूं संचरे जीनजी || मुज• ॥ १० ॥ मन चंचल न रहे कीमेजी, राचे रमणी रे रुप ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106