Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
Catalog link: https://jainqq.org/explore/005394/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न STATELAMMARDANAKAMADHADAANANAMAMANAND AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAORE t. ॥श्री॥ शत्रुजय तिर्थमाला, रास अने। नधारादिकनो संग्रह. NAINAANAANIAAJAANAAAAAAAAAAAJNAN তাভাস্তোভাঙাভাঙাভাঙাভাঙাভাঙাভাঙিস্ততাতোভাঙাভাজাভাজাভাজ प्रकाशक, श्रावक नीमसिंह माणेक. बना जैन पुस्तक वेचनार तथा प्रसिक करनार शाकगली मांडवी, मुंबई धी न्यु लक्ष्मी प्रेस, शाकगली मांडवी, मुंबई ३. OURCIRCIRCIRकमाल CATING in Educatbna hiterational Alibrary Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुंजय र्तीथेमाला, रास, अने नारादिकनो संग्रह ---- या पुस्तक समस्त जैन भाइओने कार्तिक तथा चैत्री पूर्णिमादिक दिवसोमां तथा श्री शत्रुंजय यात्रा जती वखत अवश्य पासें राखवा योग्य जाणी तेनी तृतीयावृत्तिमां यथामति संशोधन करीने प्रसिद्ध करनार, श्रावक भीमसिंह माणेक जैन पुस्तक वेचनार तथा प्रसिद्ध करनार शाकगली, मांडवी मुंबई ३, Jain Educationa International संवत् १९७९ चैत्री पुनम सने १९२३. MIHT------- SIMILI धी न्यू लक्ष्मी प्रेस शाकगली, मांडवी मुंबई ३. · For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१ ॥ एतत्पुस्तकगतग्रंथानुक्रमणिका ॥ अंग. ग्रंथनां नाम. पृष्ठ. १ श्रीसिद्धाचलजीनो उद्धार नयसुंदरजीकृत. १ २ श्रीसिद्धगिरिस्तुतिना दोहा. १० १७ ३ श्रादिनाथ विनंतिरूप शत्रंजयतुं महोटुंस्त० ४ श्री शजय तीर्थमाला अमृतविजयजी कृत ३० ५ श्री वीरविजयजीविरचित शत्रुजयनां एकवीश ___ खमासमण संबंधी जंगणचालीश दोहा. ५७ ६वमलकेवल ज्ञान कमलो चैत्यवंदन. ७ सिझाचल शिखरें चढो, चैत्यवंदन. ६२ ७ वीरजी आया रे विमलाचलके मेदान, स्तवन.६३ ए शत्रंजय मंगण झषनजिणंद दयाल, थोय, ६५ १० श्रीशजयगिरि तीरथ सार, थोय. ६६ ११ श्री शत्रुजयनां एकवीश नाम हेतुसहित. ६७ १५ श्री शत्रुजयनो रास, समयसुंदरजी कृत. १ १३ शेजो जोवान हो जोर जे जी राज स्तवन. ज्य १४ शाश्वत जिन चैत्योनां स्थानको. १५ चोवीश जिनना १२० कल्याणिकना दिवस. ए३ १६ दादा मोरा सासरीये वलाव्य. १७ नाजिराया वंशे गारु उदयौ दिणंद. ७६ एए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्रावीतरागाय नमः॥ ॥अथ ॥ ॥ श्री नयसुंदरजीकृत सिघाचलजीनो जहार प्रारंजः ॥ ॥ विमल गिरिवर विमल गिरिवर, मंमणो जिनरा य॥श्री रिसदेसर पाय नमि,धरिय ध्यान शारदादेवि य ॥श्री सिद्धाचल गायशु ए, हीये नाव निर्मल धरेवि य॥श्री शत्रुजगिरितीरथ वमो, सिझ अनंती कोमी ॥ जिहां मुनिवर मुक्तं गया, ते वंडं बे कर जोमी ॥१॥ ॥ ढाल पहेली ॥ श्रादनराय पुहतला ए ॥ ए देशी ॥ ॥ कर जोमीने जिन पाय लागुं, सरसती पासें वचन रस मागु ॥ श्री शत्रुजय गिरि तीरथ सार, थु णवा उलट थयो रे अपार ॥॥ तीरथ नहिं को शत्रुजय तोलें, अनंत तीर्थकर णी परें बोले ॥ गु रूमुख शास्त्रनो लहिय विचार, वर्णवं शत्रुजा ती र्थ उकार ॥३॥ सुरवरमांहे वमो जेम इंद्र, ग्रहग णमाहे वमो जेम चंद्र ॥ मंत्रमाहे जेम श्रीनवका र, जलदायक जेम जग जलधार ॥ ४ ॥ धर्ममाहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दयाधर्म वखाएं, व्रतमाहे जेम ब्रह्मवत जाणुं ॥ पर्वतमाहे वमो मेरू होश, तिम शत्रुजय सम तीर्थ न कोई ॥५॥ ॥ ढाल बीजी ॥ त्रएय पढ्योपम ए ॥ देशी ॥ ॥ आगे ए आदि जिनेसर, नानि नरिंद मलार ॥ शत्रुजय शिखर समोसरया, पूरव नवाणुं ए वार ॥६॥ केवलझान दिवाकर, स्वामी श्री ज्ञषन जिणंद ॥ साथें चोराशी गणधर, सहस्स चोराशी मुणिंद ॥७॥ बहु परिवार परवरया, श्री शत्रुजय एक वार ॥ षन जिणंद समोसरया, महिमा न लाचुं ए पार ॥॥ सुर नर कोमी मख्या तिहां, धर्म देशना जिन नाषे ॥ पुं मरिक गणधर आगलें, शत्रुजय महिमा प्रकाशे ॥॥ सांजलो घुमरिक गणधर, काल अनादि अनंत ॥ ए तोरथ ने शाश्वतुं, आगे असंख्य अरिहंत ॥ १० ॥ गणधर मुनिवर केवल, पाम्या अनंती ए कोमि।मुक्तं गया श्ण तीरथ वली, जाशे कर्म विठोमि ॥ ११ ॥ कर जिके जग जीवमा, तिर्यच पंखी कहीजें ॥ ए तीरथ सेव्याथकी, ते सीके लव त्रीजे ॥ १५ ॥ दी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गे मुर्गति वारे ए, सारे वांडित काज ॥ सेव्यो ए श श्रृंजय गिरिवर, आपे अविचल राज ॥ १३ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग धन्याश्री ॥ सहीय समाणी आवो वेगें ॥ ए देशी ॥ ॥ उत्सर्पिणी अवसर्पिणी आरो, बिहुं मलीने बार जी ॥ वीश कोमाकोमी सागर तेहy, मान का निरधार जी ॥ १४ ॥ पहेलो आरो सूसम सुसमा, सागर कोमाकोमी चार जी ॥ त्यारे ए श्री शत्रंजय गिरिवर, एंशी जोयण अवधार जी ॥ १५ ॥त्रण्य कोमाकोमी सागर आरो, बीजो सूसमनाम जी ॥ त दा कालें श्री सिहाचल, सीत्तेर जोयण अनिराम जी ॥ १६ ॥त्रीजो सूसम पूसम आरो, सागर को माकोमी दोय जी ॥ शाठ जोयण, मान शत्रुजय, त काल दातु जोय जी ॥ १७॥ चोथो इसम सूसम जाणो, पांचमो सम आरो जी ॥ हो सम सम कहिजे, ए त्रएय यश्य विचारो जी ॥ १७ ॥ एक को माकोमी सागर केरुं, एहनु कहियें मान जी ॥ चोथे आरे श्री शत्रुजय गिरि, पचास जोयण परधान जी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ॥ १७ ॥ पांचमे बठे एकवीश एकवीश, सहस्स वरस वखाणो जी ॥ बार जोयण ने सात हायनो, तदा वि मल गिरिजाणोजी ॥ २० ॥ तेह जणी सदा काल एती रथ, शाश्वतुं जिनवर बोले जी ॥ रुषजदेव कहे पुं मरिक निसुणो, नहिं कोई शत्रुंजय तोले जी ॥ २१ ॥ ज्ञान ने निर्वाण महाजस, लेहेशो तुमें इस में जी ॥ एह गिरितीरथ महिमा इ जगें, प्रगट हो शे तुम नामें जी ॥ २२ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ जिनवरशुं मेरो मन ली नो ए ॥ ए देशी ॥ ॥ सांगली जिनवर मुखथी साधुं, पुंमरिक गण धार रे | पंचकोनी मुनिवरशुं इणगिरि, अणस की ध उदार रे ॥ २३ ॥ नमो रे नमो श्री शत्रुंजय गिरि वर, सकल तीर्थमांहे सार रे ॥ दीवो दुर्गति दूर निवारे, ऊतारे जवपार रे ॥ २४ ॥ नमो० ॥ केवल लही चैत्री पूनम दिन; पाम्या मुक्ति सुगम रे ॥ तदा कालथी पुहवी प्रगटीयुं, पुंमरिक गिरिनाम रे ॥ २५ ॥ ॥ नमो० ॥ नयरी अयोध्याथी विहरता पहोता, ता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) तजी रुषन जिणंद रे || शाठ सहस्स लगें षट्संम साधी, श्राव्या जरत नरिंद रे ||२६|| नमो० ॥ घरे ज‍ मायने पाय लाग्या, जननी दीये आशीषरे ॥ विमला चल संघाधिप केरी, पहोंचजो पुत्र जगीश रे ॥ २७ ॥ || नमो० ॥ जरत विमासे साठ सहस्स सम, साध्या देश अनेक रे || हवे हुं तात प्रत्यें जइ पूढं संघति तिलक विवेक रे ॥ २८ ॥ नमो० ॥ समवसरणे पहोता जरतेसर, बंदी प्रजुना पाय रे ॥ इंद्रादिक सु र नर बहु मलिया, देशना दे जिनराय रे ॥ २७ ॥ ॥ नमो० ॥ शत्रजय संघाधिप यात्राफल, जांखे श्री जगवंत रे ॥ तव जरतेश्वर करे रे सजाइ, जाणी ला अनंत रे ॥ ३० ॥ नमो० ॥ ढाल पांचमी ॥ कनक कमल पगलां वे ए ए देशी ॥ राग धन्याश्री मारूणी ॥ ॥ नयरी अयोध्याथी संचरयाए, लेइ लेइ रुद्धि अशेष ॥ जरत नृप जावशुं ए ॥ शत्रुंजय यात्रा रंग नरेंए, वे वे ऊलट अंग ॥ ज० ॥३१ । यावे यावे रूषननो पुत्र, विमल गिरि यात्राये ए ॥ लावे लावे चक्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) वर्त्तीनी शुद्धि ॥ ज० ॥ ए आंकणी ॥ मंगलिक मुकुट वर्द्धन घणा ए, बत्रीश सहस नरेश ॥ ज० ॥ ३० ॥उम उम वाजे बंदशुं ए, लाख चोंराशी निशान ॥ ज० ॥ लाख चोराशी गज तुरी ए, तेहनां रत्ने जति पला ण ॥ ज० ॥ ३३ ॥ लाख चोराशी रथ जला ए, वृषन धोरी सुकुमाल ॥ ज० ॥ चरणे कांऊर सोना त ए, कोटे सोवन घूंघरमाल ॥ ज० ॥ ३४ ॥ (मो हन रूप दोसे जलां ए, सवाकोमी पुत्र जमाल ॥०॥ ) बत्रीस सहस नाटक सही ए, त्रण लाख मंत्री दक्ष ॥ ज० ॥ दीवीधरा पंच लख कह्या ए, शोल सहस सेवा करे यह ॥ ज० ॥ ३५ ॥ दश कोमी लंबध्वजा धरा ए, पायक व कोमी ॥ ज० ॥ चोशठ सहसते उरी ए, रूपे सरखी जोमी ॥ ज० ॥ ३६ ॥ एक लाख सहस डावीश ए, वारांगना रुपनी अलि ॥ ज०॥ शेष तुरंगम सवी मली ए. कोमी अढार निहालि ॥ ज० ॥ ॥ ३७ ॥ त्रण कोमी सायें व्यापारीया ए, बत्रीश कोमी सूखार || || शेठ सार्थवाह सामटा ए, रायराणानो नहिं पार ॥ ज० ॥ ३० ॥ नवनिधि चौद रयपशुं ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लीधो लीधो सवि परिवार ॥ ज० ॥ संघपति तिलक सोहामधुं ए, जालें धराव्यं सार ॥ ज० ॥ ३ ॥ पग पग कर्म निकंदता ए, आव्या श्राव्या आसन जाम ॥०॥ गिरि देखी लोचन ठख्यां ए, धन धन शत्रुंजय नाम ॥ ज० ॥ ४० ॥ सोवन फूल मुक्ताफलें ए, वधाव्या गिरिराज ॥ ज० ॥ दीये प्रदक्षिणा पाखती ए, सीधां संघल काज ॥ ज० ॥ ४१ ॥ ॥ ढाल बही ॥ जयमालानी ॥ प्रभु पासनुं मुखकुं जोतां ॥ ए देशी ॥ ॥ काज सीधां सकल हवे सार, गिरि दीठे हर्ष पार ॥ ए गिरिवर दरिसण जेह, यात्रा पण कहियें तेह ॥ ४२ ॥ सूरज कुंम नदी शेत्रंजी, तीरथ जलें नाह्मा जी || रायण तलें रुषन जिणंद, पहेला प गलां पूजे नरिंद ॥ ४३ ॥ वली इंद्रवचन मन आ णी, श्रीरुषजनुं तीरथ जाणी ॥ तव चक्री जरत न रेश, वार्मिंकने दीधो आदेश ॥ ४४ ॥ तेणे शत्रंजा ऊपर चंग, सोवन प्रासाद जंतुंग || नीपायो अति मनो हार, एक कोश जंचो चडबार ||४५ ॥ गाउ दोढ (व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तारे कहिये, सहस धनुष पहोलपणे लहियें ॥ए केके बारणे जोश, मंगप एकवीशज होश् ॥४६॥ श्म चिहुं दिशें चोराशी, मंगप रचिया मुप्रकाशी ॥ तिहां रयणमय तोरणमाल, दीसे अति काक जमाल ॥४॥ (वचे चिहुं दिशें मूल गंजारे, थाप) जिनप्रति मा चारे ॥ मणिमय मूरति सुखकंद, थापी श्री आदि जिणंद ॥४७॥ गणधर वर पुंगरीक केरी, थापी बीहूं पासें मूर्ति जलेरी ॥ आदिजिन मूरती काउस्सग्गि या, नमी वीनमी बे पासें ठवीया ॥४॥ मणी सोवन रूप प्रकार, रची समवसरण सुवीचार ॥ चहुंदीशे चल धर्म कहंत, थापी मूरती श्रीनगवंत ॥५॥ जरतेसर जोमी हाथ, मूरती बागल जगनाथ ॥रायण तलें जी मणे पासे, प्रज्जु पगलां थाप्यां उबासें ॥ ५१ ॥श्री नानी अने मरूदेवी, प्रासादशु मूर्ति करेवी ॥ गज वर खंधे लइ मुक्ती कधी आईनी मरति नक्ति ॥ ॥५५॥ सुनंदा सुमंगला माता, ब्राही सुंदरी बहे न विख्याता ॥ वली नाश् नवाणुं प्रसिद्ध, सवि मूर ति मणमिय कीध ॥ ५३ ॥ नीपाई तीरथमाल, सु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतीष्टा करावी वीशाल ॥ यद गोमुख चकेसरी देवी, तीरथ रखवाल ग्वेवी ॥ ५४ ॥ इम प्रथम उझारज कीधो, जरतें त्रीजुवन जस लीधो ॥ इंसादीक कीर्ति बोले, नहीं कोश् नरत नृप तोले ॥५५॥ शत्रुजय महातममांहि, अधिकार जो जो उत्साहिं ॥ जिन प्रतिमा जिनवर सरखी, सदहो सूत्र नववा निर खी॥ ५६ ॥वस्तु ॥ नरतें कीधो लरतें कीधो, प्र थम उझार, त्रीजुवन कीर्ति विस्तरी ॥ चंद्रसूरज लगें नाम राख्यु, तिणे समय संघपति केटला हवा ॥ सो श्म शास्त्रे नांख्यु, कोमी नवाणुं नरवरा, हुआ नेव्याशी लाख ॥ जरतसमय संघपति वली, सहस चोराशी नांख ॥ ५॥ ॥ ढाल सातमी ॥चोपाश्नी देशी ॥ ॥ जरतपाट हुया आदित्ययशा, तस पाटें तस सुत महायशा ॥ अतिबलना अने बलवीर्य, कीर्तिवीर्य अने जनवीर्य ॥ ॥ ए साते हुआ सरखी जोमि, जरतथकी गयां पूरव उ कोमि ॥ दंमवीर्य आठमें पाट हवो, तिणे उद्धार कराव्यो नवो ॥ ५॥ ॥ इंद्रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) सो प्रशंस्यो घणु, नाम अजवायुं पूर्वज तं ॥ जरत तणीपरें संघवी थयो, बीजो उद्धार ते एहनो कह्यो, ॥ ६० ॥ जरतपाटें ए आठे वली, नुवन खरी शामां केवली ॥ इणे आठे सवि राखी रीत, एक न लोपी पूर्वजरीत ॥ ६१ ॥ एकसो सागर वोल्या जि सें, ईशानेंद्र विदेहमां तिसें ॥ जिनमुख सिद्धगिरि सु णी विचार. तेणें कीधो त्रीजो उद्धार ॥ ६२ ॥ एक को मी सागर वोली गयां, दीगं चैत्य विसस्थल थयां ॥ माहिंड चोथो सुरलोकेंद्र, कीधो चोथो उद्धार गिरीज ||६३ ॥ सागर कोमी गया दश वली, श्री ब्रह्मेद्र घणुं मन स्ली ॥ श्री शत्रुंजये तीर्थ मनोहार, कीधो तेणें पांच मो उद्धार ॥ ६४ ॥ एक कोमी लाख सागर अंतरें, चमरेंद्रादिक जवन उद्धरे ॥ बहो इंद्र जवनपति तणो, ए उद्धार विमल गिरि जणो ॥ ६५ ॥ पचाश कोडी लाख सागर तणुं, आदि अजित विच्चें अंतर जणुं ॥ तेह विचें सूक्ष्म हुवा उद्धार, ते कहेतां नवि लाने पार, ॥ ६६ ॥ हवे अजित बीजो जिनदेव, श त्रुंजय सेवा मिष देव || सिद्धक्षेत्र देखी गह गह्या, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) अजितनाथ चोमासुं रह्या ॥ ६७ ॥ जाइ पितराइ अजित जिन तणो, सगर नामें बीजो चक्रवर्त्ती जणो ॥ पुत्रमरण पाम्मो वैराग, इं प्रीबवियो महानाग ॥६८॥ इंद्रवचन दियको माहे धरी, पुत्रमरण चिंता परिहरी ॥ जरत तणीपरें संघवी थया, श्रीशत्रुंजय गिरियात्रा गयो ॥ ६० ॥ जरत मणिमय बिंब वि शाल, करयां कनक प्रासाद ऊमाल ॥ ते देखी मन हरख्यो घणुं, नाम संजारयुं पूर्वज तणु ॥ ७० ॥ जाणी पतो काल विशेष, रखे विनाश ऊपजे रेख ॥ सो वनगुफा पश्चिमदिशि जिहां, रयणबिंब जंमारयां तिहां ||११|| करी प्रासाद सयल रूपना, सोबन विंब करी थापना || करयो जितप्रासाद उदार, एंह स गर सत्तम उद्धार ॥ ७२ ॥ पच्चास कोमी पंचाएं लाख, उपर सहस पंच्चोत्तेर जांख ॥ एटला संघवी नूपति थया, सगर चक्रवर्त्ती वारें कह्या ॥ ७३ ॥ त्रीस कोमी दश लाख कोमी सार, सागर अंतर करे उद्धार ॥ व्यंतरेंद्र मो सुचंग, । जनंदन उपदेश उत्तंग ॥ ७४ ॥ वारे श्रीचंद्रप्रन तणे, चंद्रशेखर सुत For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... (१२) आदर घणे ॥ चंयशा राजा मनरंज, नवमो उद्धार करयो शत्रुज ॥ ७५ ॥ श्रीशांतिनाथ शोलमा स्वामी, रह्या चोमासु विमल गिरि गम ॥ तस सुत चक्रायुध राजीयो, तिणे दशमो नकारज कियो ॥ १६ ॥ कीयो शांतिप्रासाद उदाम, हवे दशरथसत राजा राम ॥ एकादशमो करयो उद्धार, मुनिसुव्रतवारे मनोहार ॥ ७ ॥ नेमिनाथ वारे जोधार, पांमव पांच करे नकार ॥ शत्रुजय गिरि पूगी रली, ए द्वा शमो जाणो वली ॥॥ ॥ ढाल आठमी ॥ राग वैरामी ॥ ॥ पांमव पांच प्रगट हवा, खोइ अदोहिणी अढार रे ॥ पोतानी पृथिवी करी, मायने कीधो जुहाररे ॥ ए॥ कुंता रे माता श्म नणे, वत्स सांजलो याप रे ॥ गोत्र निकंदन तुमें करयो, ते केम बुटशो पोप रे. ॥ कुं० ॥ ७ ॥ पुत्र कहे सुणो मायमी, कहो अम सोय उपाय रे ॥ ते पातक किम जुटीयें, वलतुं पत्नणे माय रे ॥ कुं० ॥ ॥ श्रीशत्रुजे तीरथ जश् सूरजकुंमें स्नान रे ॥ झपन जिणंद पूजा करो, धरो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) जगवंतनुं ध्यान रे ॥ कुंग ॥ २ ॥ माता शिखामण मन धरी, पांडव पांचे तास रे ॥ हत्या पातक बुटवा, पहोता विमल गिरि गम रे कुं० ॥ ३ ॥ जिनवर नक्ति पूजा करी, कीधो बारमो उझार रे ॥ जवन नि पायो काष्टमय, खेपमय, प्रतिमा सार रे ॥ कुं० ॥ ४ ॥ पांमव वीर विचं आंतर, वरस चोराशी सहस्त रे॥ चिहुंसय सीतेर वर्षे हुवो, वीरश्री विक्रम नरेश रे ॥५॥ .. ॥ ढाल नवमी ॥ पूर्वली देशी ॥ ॥धन्य धन्य शत्रुजय गिरिवरू, जिहां हुवा सिक अनंत रे ॥ वली होशे इणे तीरथे, श्म नांखे नगवंत रे ॥ धन्य० ॥ ६ ॥ विक्रमथी एकसो आवे, व रसे हून जावमशाह रे ॥ तेरमो उद्धार शत्रुजे क रयो, थाप्या आदिजिन नाह रे॥ धन्य० ॥ ७ ॥ प्रतिमां जरावी रंगशु, नवा श्री आदि जिणंद रे॥श्री शत्रुज शिखरेंथापिया, प्रासादें नयनानंद रे ।। धन्य ॥ ७ ॥ पांमव जावम अांतरे, पचवीश कोमी म याल रे ॥ लाख पंचाj ऊपरे, पंच्चोत्तर सहस्स नूपा ल रे ॥ धन्य ॥ नए ॥ एटला संघवी हया हवे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) चउदशमो उकार विशाल रे॥ बारतेरोत्तरे सोय क रे, मंत्री बाहमदे श्रीमाल रे ॥ धन्य० ॥ए॥ (प्रति मा जरावी रंगशुं नवी श्री शषन जिणंदरेबीजे शिख रें थपावियो, प्रासाद नयणानंद रे ॥ धन्य॥ १ ॥) बार व्याशीये मंत्री वस्तुपालें, यात्रा शत्रुजय गिरिसा र रे ॥ तिसक तोरणशुं करे, श्री गिरनारे अवतार रे ॥ धन्य० ॥ ए५ ॥ संवत तेर एकोत्तरें,श्री उसवंश शणगार रे ॥ शाह समरो द्रव्य व्यय करे, पंचदश मो उद्धार रे ॥ धन्य० ॥ ए३ ॥ श्रीरत्नाकर सूरीश्वरू, वम तपगह शणगार रे ॥ स्वामी षनज थापीया, समरेशाहे उदार रे ॥ धन्य० ॥ ए४ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ उलालानी देशीमां ॥ ॥जावम समरा उकार, एह वच्चें त्रण लाख सार ॥ ऊपर सहस चोराशी, एटला समकेत वासी ॥ ए५ ॥ श्रावक संघपति हया, सत्तर सहस नावसार जूया ॥ क्षत्रीशोल सहस जाएं, पन्नर सहस विष वखाणुं ॥ ए६ ॥ कणबी बार सहस कहिये, ले खेया नव सहस लहियें ॥ पंच सहस पीस्तालीश, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) एटला कंसारा कहीश ॥ ए ॥ सवि जिनमति जा व्या, श्री शत्रुजय यात्रायें याव्या ॥ अवरनी संख्या न जाणुं, पुस्तक दीठे ते वखाणुं ॥ ए ॥ सात सह स मेहर संघवी, जात्रा तलहटी तस हवी ॥ बहु श्रुत वचनें ए राचुं, ए सवि मानजो साधु ॥ एए ॥ जरत समराशाह अंतर, संघवी असंख्यात णी प र ॥ केवली विण कुण जाणे, किम उमस्थ वखाणे ॥ १०० ॥ नवलाख बंधी बंध काप्या, नवलाख हेम टका तस बाप्या ॥ तो देशलहमियें अन्न चाख्यु, समरेशाहें नाम राख्युं ॥ १०१ ॥ पन्नर सत्याशीये प्रधान, बादशाहें बहुमान ॥ करमेशाहें जस लीधो, उकार शोलमो कीधो ॥ १० ॥ण चोवीशीयें विमल गिरि, विमलवाहन नृप आदरी ॥ प्रसह गुरु उप देशे, उद्धार बेहलो करेशे॥ १०३ ॥ एम वली जे गु णवंत, तीरथ उकार महंत ॥ लक्ष्मी लही व्यय करशे, तस बहुजवकारज सरशे ।। १०४ ॥ ॥ ढाल अग्यारमी ॥ माश् धन्य सुपनतुं ॥ ॥ ए देशी ॥ ॥ धन्य धन्य शत्रुजय गिरि, सिझक्षेत्र ए गम ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) कर्मक्षय करवा, घरे बेगं जपो नाम ॥ १५ ॥ चो वशीय ण गिरि, नेम विना त्रेवीश ॥ तीरथ नूर जाणी, समोसरया जगदीश ॥ १६ ॥ पुंमरिक पंच कोमीशु द्राविम वारिखिम्त जोम ॥ काति पूनम सी धा, मुनिवरशुं दश कोम ॥ १०७ ॥ नमि. विनमि वि द्याधर, दोय कोमि मुनि संयुत ॥ फागुण शुदि दश मी, णें गिरि मोद पहत ॥ १०७ ॥ श्री शश नवंशी नृप, जरत अमंख्याता पाट ॥ मुक्तं सर्वार्थ, एह गिरि शिवपुर वाट ॥ १०॥ ॥ राममुनि नरतादि क, मुनि त्रण कोमीशुं एम ॥ नारदशु एकाएं, लाख मुनीश्वर तेम ॥ ११० ॥ मुनि सांब प्रद्युम्नशुं, सामी आठ कोमी साध ॥ वीश कोमीशुं पांमव, मुगतें गया निराबाध ॥ १११ ॥ वली थावञ्चासुत, शुक मुनि वर श्णे गम ॥ एम सहस्स\ सिझा, पंचशत सै लंग नाम ॥ ११ ॥ श्म सिझा मुनिवर, कोमाकोमी अपार ॥ वली सीऊशे इणे गिरि, कुण कही जाणे पार ॥ ११३ ॥ सात ब5 दोय अहम, गणे एक लाख नव कार ॥ शत्रुजय गिरि सेवे, तेहने दोय अवतार ॥११४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ॥ ढाल बारमी ॥ वधावानी देशी ॥ ॥ मानव जव में जलें लह्यो, लह्यो ते आरज देश॥ श्रावक कुल लाधुं नबुं, जो पाम्यो रे वाहालो झषन जिनेश के ॥ ११५ ॥ नेट्यो रे गिरिराज, हवे सीधारेम हारां वांछित काज के, मुने जगे रे त्रिजुवनपति आज के॥नेट्यो॥११६॥ ए आंकणी॥धन्य धन्य वंश कुलगर तणो, धन्य धन्य नानिनरिंद ॥ धन्य धन्य मरुदेवामा वमी, जेणें जायो रे वहालो झषन जिणंद के॥ने॥११७ धन्यधन्य शत्रुजय तीरथ, रायण रूख धन्य धन्य॥धन्य पगला प्रज्जु तणां, जे पेखीरे मोद्यं मुफ मन के ॥२०॥ ११॥ धन्य धन्य ते जग जीवमा, जे रहे शत्रुजय पा साहो निश षन सेवा करे, वली पूजे रे मनने उवा स के॥ने ॥ ११ ॥ आज सखी मुऊ आंगणे, सुरतरु फलियो सार ॥षज जिनेसर वांदीयो, हवे तरियो रे जवजल निधि पार के॥नेट्यो ॥१२॥ शोल अमत्रीशे आशो मासे, शुदि तेरश कुज वार ॥ अहम्मदाबाद नयर माहे,में गायोरे शत्रुजय उझार केण्नेटयो॥११ वम तपगड गुरु गढपति, श्रधन्नरत्न सूरिंद ॥ तस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) शिष्य तस पट जयकरु, गुरु गजपति रे अमररत्न सूरिंद के ॥ नेव्यो० ॥ १२ ॥ विजयमान तस पटधरू, श्री देवरत्न सूरीश ॥ श्री धनरत्न सूरीशना, शिष्य पंमित रे नानुमेरु गणीश के ॥नेट्योग ॥१३॥ तसपद कमल ज्रमर नणे, नयनसुंदर दे आशीष ॥ त्रिभुवन नायक सेवतां,हवे पूगी रे श्रीसंघजगीश के ॥ नेव्योग ॥१२॥ ॥ कलश ॥ श्म त्रिजग नायक, मुक्ति दायक, वि मल गिरि, मंमण धणी ॥ उद्धा शत्रुजय, सार गायो, थुएयो जिन, नक्तं घणी ॥ नानु मेरु पंमित, शिष्य दो य कर, जोमो कहे, नसुंदरो ॥ प्रजु पाय सेवा, नित्य करेवा, देह॥ दरिसन, जय करो ॥ १२५ ॥ इति ॥ श्री गौतमाय नमः॥ ॥ अथ श्रीसिगिरिस्तुतिप्रारंनः ॥ ॥ श्री आदीश्वर अजर अमर, अव्याबाध अह नीश ॥ परमातम परमेसरू, प्रणमुं परम मुनीश ॥१॥ जय जय जगपति ज्ञाननान, नासित लोकालोक ॥ शुद्धस्वरूप समाधिमय नमित सुरासुर थोक ॥२॥ श्रीसिकाचल मंमणो, नानिनरेसर नंद ॥ मिथ्यामति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) मत जणो, नविकुमुदाकर चंद ॥ ३ ॥ पूर्व नवाणुं जस शिरें, समवसरया जगन्नाथ ॥ ते सिझाचल प्रण मिये, जक्ते जोमी हाथ ॥४॥ अनंत जीव श्ण गिरि वरें, पाम्या जवनो पार ॥ ते सिद्ध ॥ लहियें मंगल माल ॥ ५ ॥ जस शिर मुकुट मनोहरू, मरुदेवीनो नंद ॥ ते सिद्धा० ॥ छिसदा सुखवृंद ॥६॥ महिमा जेहनी दाखवा, सुरगुरु पण मतिमंद ॥ ते तीर्थेश्वर प्रणमीय, प्रगटे सहजानंद ॥ ॥ सत्ताधर्म समारवा, कारण जेहपमुर ॥ ते तीर्थे॥नासे अघसवि पूर ॥॥ कर्मकाट सवि टालवा, जेहनुं ध्यान हुताश ॥ ते तीर्थे ॥ पामीजें सुखवास ॥ ए ॥ परमानंद दशा ल हे, जस ध्याने मुनिराय ॥ ते ॥ पातक दूर पलाय ॥१०॥श्रझानासन रमणता, रत्नत्रयीनुं हेतु ॥ ते ॥ नव मकराकर सेतु ॥ ११ ॥ महापापी पण निस्तरया, जेहनुं ध्यान सुहाय ॥ ते ॥ सुर नर जस गुण गाय ॥१॥ पुंमरिक गणधर प्रमुख, सीधा साधु अनेक ॥ ते ॥ आणी हृदय विवेक ॥ १३ ॥ चंद्रशेखर स्वसा पति, जेहने संगेंसिक ॥ ते ॥ पामीजें निज इद्धि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) ॥ १४ ॥ जलचर खेचर तिरिय सवे, पाम्या आतम जाव || || नवजस तारण नाव ॥ १५ ॥ संघयात्रा जेणें करी, कीधा जेणें उद्धार || ते ॥ बेदीजें गति चार ||१६|| पुष्टिशुद्ध संवेग रस, जेहने ध्यानें थाय ॥ ते० ॥ मिथ्यामति सवि जाय ॥ १७ ॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवि, सुरघट सम जसध्याव || ते० ॥ प्रगटे शुद्ध स्वाव ॥ १८ ॥ सुरलोकें सुरसुंदरी, मलि मल थोकें थोक ॥ ते० ॥ गावे जेहना श्लोक ॥ १७ ॥ योगीश्वर जस दर्शनें, ध्यान समाधि लीन ॥ ते० ॥ हुआ अनु जव रस लीन ॥ २० ॥ मानुं गगनें सूर्य शशी, दिये प्रदक्षिणा नित्य || || महिमा देखण चित्त ॥ २१ ॥ सुरासुर नर किन्नरा, रहे बे जेहनी पास ॥ ते० ॥ पामे लील विलास ॥ २२ ॥ मंगलकारी जेहने, मृतका हरिनेट ॥ ० ॥ कुमति कदाग्रह मेट ||२३|| कुम ति कौशिक जेहने, देखी जांखा थाय ॥ ते० ॥ सवि तस महीमा गाय ॥ २४ ॥ सूरज कुंमना नीरथी, आ धि व्याधि पलाय ॥ ते० ॥ जस महिमा न कहाय ॥ २५ ॥ सुंदर टूक सोहामणी, मेरुसम प्रासाद ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १) ते ॥ दूर टसे विखवाद ॥ २६ ॥ द्रव्य नाव वैरी त णा, जिहां आवे होय शांत ॥ ते० ॥ जाये नवनी ब्रांत ॥ २७ ॥ जगहितकारी जिनवरा, आव्या एवं गम ॥ ते ॥ जस महिमा उद्दाम ॥ २० ॥ नदी श ध्रुजी स्नानश्री, मिथ्यामल धोवाय ॥ ते ॥ सवि जनने सुखदाय ॥ श्ए ॥ आठ कर्म जे सिझगिरें, न दीये तीव्र विपाक ॥ ते ॥ जिहां नवि आवे काक ॥३०॥ सिझशिला तपनीयमय, रत्नस्फाटिक खाण ॥ ते॥ पाम्या केवल नाण ॥३१॥ सोवन रूपा रत्ननी, औषधि जात अनेक ॥ ते ॥ न रहे पातक एक ॥ ३ ॥ संयमधारी संयमें, पावन होय जिण खेत्र ॥ ते॥ देवा निर्मल नेत्र ॥ ३३ ॥ श्रावक जिहां शुन द्रव्यश्री, उत्सव पूजा स्नात्र ॥ ते ॥ पोषे पात्र सुपात्र ॥३४॥ सहामिवत्सल पुण्य जिहां, अनंतगुणुं कहेवाय ॥ते॥ सोवन फूल वधाय ॥ ३५॥ सुंदर जात्रा जेहनी, देखी हरखे चित्त॥ते०॥ त्रिजुवनमांदे विदित्त ॥३६॥ पालीताणुं पुर जर्बु, सरोवर सुंदर पाल ॥ ते ॥ जाये सकल जंजाल ॥३७॥ मनमोहन पागे चढे, पग पग कर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) खपाय ॥ ते० ॥ गुण गुणि नाव लखाय ॥ ३० ॥ जेणे गिरि रूंख सोहामणा, कुंनें निर्मल नीर ॥ १० ॥ ऊतारे जवतीर ॥३॥ मुक्तिमंदिर सोपान सम, सुंदर गिरिवर पाज ॥ ते ॥ लहियें शिवपुर राज ॥ ४० ॥ कर्मकोटि अब विकटनट, देखी धुजे अंग ॥ ते ॥ दिन दिन चढते रंग॥४१॥गौरी गिरिवर उपरे, गावेजिनवर गीत ॥ ते ॥ सुखें शासनरीत ॥ ४२ ॥ कवम यद रखवाल जस, अहोनिश रहे हजूर ॥ ते ॥ असुरां राखे दूर ॥४३॥ चित्त चातुरी चकेंसरी, बिघ्न विनासणहार ॥ ते ॥ संघ तणी करे सार ॥ ४४ ॥ सुरवरमा मघवा यथा, ग्रहगणमां जिम चंद ॥ ते॥तिम सविती रथ इंद ॥ ४५ ॥ दी। पुर्गति वारणो, समरयो सारे काज ॥ ते ॥ सवि तीरथ शिरताज ॥४६॥ पुंग रिक पंच कोमीशु, पाम्या केवल नाण ॥ ते ॥ कर्म तणी होय हाण ॥ ४ ॥ मुनिवर कोमी दश सहित, द्रविम अने वारिखेण ॥ ते० ॥ चाढिया शिव निश्रेण ॥४॥ नमि विनमि विद्याधरा, दोय कोमी मुनिसाथ ॥ ते ॥पाम्या शिवपुरे याथ ॥४॥षनवंशीय नरपति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) घणा, इण गिरि पहोता मोद ॥ते॥ टाड्या घातिक दोष ॥ ५० ॥ राम जरत बिहुं बांधवा, त्रण कोमी मुनियुत ॥ ते ॥णे गिरि शिव संपत्त ॥५१॥ नारद मुनिवर निर्मलो, साधु एका| लाख ॥ ते० ॥ प्रवचन प्रगट ए नांख ॥ ५५ ॥ सांब प्रद्युम्न ऋषि कह्या, सामी आठे कोमि॥ ते ॥ पूर्वकर्म विहोमि ॥५३॥ थावचासुत सहसशु, अणसण रंगे कीध ॥ ते॥ वेगें शिवपद लीध ॥ ५५ ॥ शुक परमाचारज वली, एक सहस अणगार ॥ ते ॥ पाम्या शिवपुर हार ॥५५॥ शैले सूरि मुनि पाचशे, सहित हुआ शिवनाह ॥ते॥ अंगें धरी उत्साह ॥५६॥ श्म बहु सिफाणे गिरें, कहेतां नावे पार ॥ते॥ शास्त्रमांहे अधिकार ॥२७॥ बीज यहां समकित तणुं, रोपे आतम जोम ॥ ते ॥ टाले पातक स्तोम ॥ ५० ॥ ब्रह्म स्त्री चुणगोहत्या, पा जारित जेह ॥ ते ॥ पहोता शिवपुर बेह ॥५॥ जग जोतां तीरथसवे, ए सम अवरन दी ते॥ तीर्थ मांहे उकिक ॥६० ॥ धन धन सोरठ देश जिहां, तीरथमांहे सार ॥ तेण ॥ जनपदमां शिरदार ॥ ६१ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) हो। नश यावत ढुंकमा, ते पण जेहने संघ ॥०॥ पाम्या शिव वधू रंग ६२ ॥ विराधक जिएत्राणना, ते पण हुआ विशुद्ध ॥ ते० ॥ पाम्या निर्मल बुद्ध ॥ ६३ ॥ महाम्ले शासन रिपु, ते हुआ उपरांत ॥०॥ महिमा देखी अनंत ॥ ६४ ॥ मंत्र योग अंजन सवे, सिद्ध हुवे जिण ठाम ॥ ० ॥ पातकहारी नाम ॥ ६५ ॥ सुमति सुधारस वरसते, कर्मदावानल संत ॥ ते० ॥ उपशम तस उल्लसंत ॥ ६६ ॥ श्रुतधर नितु नितु उप दिशे, तत्त्वातत्त्व विचार || ते० ॥ ग्रहे गुणयुत श्रोता र ॥ ६७ ॥ प्रियमेलक गुणगण तपुं, कीर्त्तिकमला सिंधु ॥ ते० ॥ कलिकालें जगबंधु ॥ ६८ ॥ श्रीशांति तारणतरण, जेहनी नक्ति विशाल ॥ ते० ॥ दिन दिन मंगलमाल ॥ ६० ॥ श्वतध्वजा जस लड़कती, जांखे नविने एम ॥ ते० ॥ भ्रमण करो बो केम ॥ ७० ॥ साधक सिद्धदशा जणी, आराधे एक चित्त ॥ ते० ॥ साधन परम पवित्त ॥ ७१ ॥ संघपति थइ एहनी, जे करे जावें यात्र ॥ ते० ॥ तस होय निर्मल गात्र ॥ ७२ ॥ शुद्धतम गुण रमणता, प्रगटे जे हने संग ॥ ते० ॥ जेहनो जस अजंग ॥ ७३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) रायणवृक्ष सोहामणो, जिहां जिन राय ॥ ॥ सेवे सुरनरराय ॥ ७४ ॥ पगलां पूजी रूपननां, उपशम जेहने चंग ॥ ते० ॥ समता पावन अंग ॥ ७५ ॥ विद्याधरज मले बहु, विचरे गिरिवर भुंग ॥ ते० ॥ चढते नवरस रंग ॥ ७६ ॥ मालती मोघर केतकी, परिमल मोहे जंग || ते० ॥ पूजो नवि एकंग ॥ ७७ ॥ अजित जिनेसर जिहां रह्या, चोमासुं गुणगेह ॥ ॥ ते० ॥ आणी विहम नेह ॥ ७८ ॥ शांति जिनेसर शोलमा, शोल कषाय करि अंत ॥ ते० ॥ चतुर मास रहंत || || नेमि विना जिनवर सवे, श्राव्या बे जिए वाम ॥ ते० ॥ शुद्ध करे परिणाम ॥ ८० ॥ नमि नेम जिन अंतरें, अजित शांतिस्तव कीध ॥ ते ॥ नंदिषेण प्रसिद्ध || १ || गणधर मुनि उवज्जाय तिम, लाज लह्या केइ लाख ॥ ते० ॥ ज्ञानामृत रस चाख ॥ ॥ ८२॥ नित्य घंटा टंकारवें, रण ऊणे जलरी नाद ॥ ते॥ डुंडुनि मादल वाद ॥ ८३ ॥ जेणें गिरें जरत नरेश्वर, कीधी प्रथम उद्धार ॥ ते० ॥ मणिमय मूरति सार ॥ ८४ ॥ चौमुख चउगति इःख हरे, सोवनमय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) सुविहार ॥ ते० ॥ अक्षय सुख दातार ॥ ५ ॥ इत्यादिक महोटा कह्या, शोल कार सफार ॥ ते ॥ लघु असंख्य विचार ॥ ६॥ द्रव्यनाव वैरी तणो, जेदथी थाये अंत ॥ ते ॥ शत्रुजय समरंत ॥ ७ ॥ पुंमरिक गणधर हुआ, प्रथम सिह इणे गम ते ॥ पुमरिक गिरि नाम ॥ ७ ॥ कांकरे कांकरे णे गिरि, सिह हुआ सुपवित्त ॥ ते ॥ सिद्धक्षेत्र समचित्त ॥ नए ॥ मल द्रव्य नाव विशेषथी, जेहथी जाये धर ॥ ते ॥ विमलाचल सुखपूर ॥ एं० ॥ सुरवरा बहु जे गिरें, निवसे निर्मल गण ॥ ते ॥ सुरगिरि नाम प्रमाण ॥५१॥ पर्वत सहुमांहे वमो, महागिरि तेणें कहंत ॥ ते ॥ दर्शन लहे पुण्यवंत ॥ ए२ ॥ पुण्य अनर्गल जेहथी, थाये पाप विनाश ॥ ते ॥ नाम नबुं पुण्यराशि ॥ ए३ ॥ लक्ष्मीदेवी जे नएयो, कुंलें कमल निवास ॥ ते ॥ पद्मनाम सुवास ॥ ॥ ए४ ॥ सवि गिरिमां सुरपति समो, पातक पंक विलात ॥ तेण ॥ पर्वत इंद्र विख्यात ॥ ए५ ॥ त्रिजुवनमा तीरथ सवे, तेमां महोटो एह ॥ ते ॥ महा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 29 ) तीर्थ जस रेह ॥ ए६ ॥ यदि त नहिं जेहनी, कोइ कालें न विलाय ॥ ० ॥ शाश्वतगिरि कहेवाय || ७ || जद्र जला जे गिरिवरें, आव्या होय कापार ॥ ते० ॥ नाम सुजद्र संचार ॥ ए८ ॥ वीर्य वधे शुन साधुने. पामी तीरथ नक्ति ॥ ते ॥ नामें जे दृढशक्ति ॥ एए ॥ शिवगति साधे जे गिरे, तेमाटें अनिधान ॥ ते० ॥ मुक्तिनिलय गुणखाण ॥ १०० ॥ चंद सूरज समकित धरी, सेव करे शुज चित्त ॥ ते० ॥ पुष्पदंत विदित्त || ॥ १०१ ॥ जिन्न रहे जब जलथकी, जे गिरि लहे निवास ॥ ० ॥ महापद्म सुविलास ॥ १०२ ॥ नूमि धरीजें गिरिवरें, उदधि न लोपे लीह ॥ ० ॥ पृथिवीपीठ खनीह ॥ १०३ ॥ मंगल सवि मलवा तपुं, पीठ एह अजिराम ॥०॥ द्रपीठ जस नाम ॥ १०४ ॥ मूलजस पाताल में, रत्नमय मनोहार ॥ ते० ॥ पाताल मूल विचार ॥ १०५ ॥ कर्मदय होये जिहां, होय सिद्ध सुखकेल ॥ ते० ॥ - कर्म करे मन मेल ॥ १०६ ॥ कामित सवि पूरण होये, जेहनुं दरिस पाम ॥ ० ॥ सर्वकाम मन वाम ॥ १०७ ॥ इत्यादिक एकवीश जलां, निरुपम नाम उदार ॥ जे स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) मरथां पातक हरे, आतम शक्ति अनुहार ॥ १०८ ॥ ॥ कलश ॥ इम तीर्थ नायक, स्तवन लायक, संथुग्यो श्री, सिद्धगिरि ॥ श्रोत्तरसय, गाह स्तवनें, प्रेमनक्तें, मन धरी ॥ श्री कल्याणसागर, सूरि शिष्यें, शुभ जगीरों, सुख करी ॥ पुण्यमहोदय, सकल मंगल, वेलि सुज, जयसि ॥ १०५ ॥ इति सिद्धगिरिस्तुतिः ॥ अथ श्री आदिनाथ विनतिरूप श्री शत्रुंजय स्तवन ॥ || पणमविसयल जिणंद पाय, मनोवांचित कामी ॥ सयल तीरथनो राजीयो ए, प्रणमुं शिर नामी ॥ जस दरिसन दुर्गति टले ए, नासे सवि रोग ॥ स्वज न कुटुंब मेला मले, ए मनोवांबित जोग ॥ १ ॥ नाजि कुमर जग जाणीयें, ए मरुरेवीनो नंद ॥ वदनकमल दीपे यति लुं, ए जाणे पूनम चंद ॥ शत्रुंजा केरो राजीयो ए, सोवन मय काया ॥ उंचपणे लय धनुष पंच प्रणमे सुरराया ॥ २ ॥ चोशव इंद्र यादें द ए, सुर सेवा सारे ॥ त्रिभुवनतारण वीतराग, जव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) पार उतारे ॥ चालोने शत्रुजे जायें ए, हरखें कीजें जात्र ॥ सूरजकुंमें स्नान करी, कीजें निर्मल गात्र ।३॥ खीरोदक सम धोतीयां ए, उढण बादर चीर ॥ कनककलश साथें लश्, जरीय निर्मल नीर ॥ बावना चंदन घही घणुं ए, कचोलां जरीयें ॥ युगा दिदेव पूजा करी ए, नवसायर तरीयें ॥ ४ ॥ चंपक केतकी मालती ए, मांदे दमणो सोहे ॥ कुसुममाल कंठे उवा ए, नवियण मन मोहे ॥ कर जोमीने वीनवु ए, सुणो स्वामी वात ॥ धर्मविना नर जव गयो ए, नवि जाण्यो जात ॥ ५॥ काम क्रोध मद लोन वशे, जे में कीधां पाप ॥ प्रेम घरीने मुक्ति यो, आदीश्वर बाप ॥ शांतिनाथ मरुदेवी जुवन, बेहु जमणां सोहे ॥ आगल अत वंदतां ए, नवि जन मन मोहे ॥६॥ परव एक वमहेठ अडे, पास पांच देहरी । ऊ थंन आगे निरखतां ए, टाले नव फेरी ॥ कुंतासर कोमें करी ए, ललिता सर जोम॥ नीर विना शोने नहीं ए, एतो महोटी खोम ॥७॥ते आगल रामपोल बे, दीसे अनि राम ॥ पासे वाघण तप तपे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) ए, तस सीधां काम ॥ खरतर वसहीने विमलवसही, बेहु पहिली यादीश्वर देखो ॥ ८ ॥ माबेपासें, जिमणे पार्से, प्रतिमा अति दीपे ॥ पुंमरिक बिंब अति जनुं ए, रूपें त्रिभुवन कीपे ॥ महोटी प्रदक्षिया देहरे ए, एकसो एक जाएं ॥ तेम नान्ही हरखें कहुं ए, पच्चास वखाएं ॥ ए ॥ कवक यक्ष गोमुख जलाए, चक्केंसरी देवी ॥ शत्रुंजय सान्निध करे ए, संघ विघ्न हरेवी ॥ रायण देवें पगलां अबे, दीश्वर केरां ॥ जावें जवि पूजा करो ए, टालो जव फेरा ॥ १० ॥ शशत्रुंजय बिंब संख्या सुपो ए, पन्नरों ने पांस ॥ न्हानां महोटां देहरां देहरी, त्र बारा ॥ सीत्तरिसय जिनवर तथा ए. रूप पाटीयें दीसे ॥ खरतरवसहीमां पेसतां ए, जोतां मन ह्रींसे ॥ ११ ॥ एकावन उरसा जलाए, जेणे सुखम घसीयें ॥ यदिदेव पूजा करी ए, ज‍ शिवपुर वसीयें ॥ देहरा उपर गोमटी ए, संख्या सुणो वात ॥ एकसो एकशठ में गणी ए, मूकी परनी तांत ॥ १२ ॥ जिन जुवन शिर उपरें ए पांच चोमुख शोहे ॥ सुर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) नरनारी सहु तणुं ए, दीठे मन मोहे ॥ त्रण कोट अति मनोहरु ए, जाणे त्रिग दीसे ॥ खरतरवसही माहे जला ए, जोतां मनहुं हीसे ॥ १३ ॥ पांच मूरति पांव तणी ए, जोतां अनिराम ॥ चौमुख प्रतिमा शोमती ए, सुर करे गुणग्राम ॥ ऊलखा जोल चेलणा तलावमी ए, सिझशिला तिहां रूमी ॥ सिझवा सिझतणुं गम ए, नहिं वातज कूमी ॥१४॥ आदीश्वरनी मूल प्रतिमां, जरतेश्वरें कीधी ॥ पाचशं धनुषनी रत्नमय, करी मुक्तिज लीधी ॥ ते प्रतिमा शत्रुजे अबे, पण कोइ न पेखे ॥ लव त्रीजे मुक्ति लहे, नर तेहीज देखे ॥१५॥ आदीश्वरने मूल देहरे पावमीयां बत्रीश ॥ नागमोरनां रूप देखी, नवि कीजें रीश ॥ रायण वम पीपल कहं ए, अांबलीय जगीश ॥ त्रण कोटमांहे महोटा ए, काम डे एकवीश ॥ १६ ॥ कोट देहरानां कांगरां ए, बारशें बाशठ ॥ थंन अग्यारशे में गएया ए, उपर पांश: ॥ श्सर कुंम ने नीमकुंभ, जुजकुंम वखाणुं ॥ खोमीयारकुंभ शिलार कुंम, तेहनो पार न जाणुं ॥१७॥ सोवन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) सिद्धरस कूपिका ए, चोखा फिटकनी खाण ॥ चार पाज शत्रुजे चढी ए, कीजें कर्मनी हाण ॥ नीली धोली पर्व बेहु, होवे तेहिज नाम ॥ संघ यात्र, करी तिहां मले ए, वीशामा ठगम ॥१७॥ आदिपुरं रलियाम', दीगं पापज नासे ॥ शत्रुजी लली नदी वहे, शत्रुजेगिरि पासें ॥ इंद्रपुरी समोवडे ए, पालीताणुं नयर ॥ उत्तंग प्रासाद जिहां जिनो तणां, दीठे नासे वयर ॥१॥ मानसरोवर समवमें ए, ललितासर सोहे ॥ वनवाडी आराम गमा इंद्रादिक मोहे ॥ शत्रुजो शिवपुर समोवमें ए, ज्ञानी श्म बोले ॥ त्रिजुवनमांहे तीरथ नहिं ए, शजा गिरि तोले ॥२०॥ ए तीरथ संख्या में कही ए, शत्रुजय गिरि केरी ॥ जे नर नारी नणे गुणे ए, तस टाले नव फेरी ॥ संकट विकट सवि टले ए, शत्रुजय गिरिनामें ॥ सकल कर्मनो क्ष्य करी ए, ते शिवपुर पामे ॥ १ ॥ तपगबनायक गुणनि सो ए, गुरु हीरजी राया ॥ मनमोहन विजयसेन सूरि, तेहना प्रणमुं पाया ॥ विमलहरख शिष्यः प्रेम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) विजय, कहे निसुणो देव ॥ जव जव शत्रुंजा गिरितणी ए, मुऊ देजो सेव ॥ २२ ॥ ॥ कलश ॥ इम मुल्यो स्वामी, मुक्तिगामी, आदिजिन जगदेव ए ॥ नित्य नमे सुर नर, असुर व्यंतर, करे - होनिश, सेव ए॥ जे नणे जगतें, जली युक्त, तस घर जयजय, कार ए ॥ कहे कवियण, सुणो जवियण, जिम पामो, जर पार ए ॥ २३ ॥ इति श्री शत्रुंजय स्तवनं ॥ ॥ अथ ॥ ॥ श्री अमृत विजयजीकृत श्री शत्रुंजय तीर्थमालाप्रारंभ; ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ गरबानी देशीमां ॥ जगजीवन जालम यादवा रे, तुमें शाने रोको बो रानमां ॥ तुमें सघले कहेवार्ड बो माधवा रे ॥ तुमें० ॥ ए देशी बे ॥ || विमलाचल विमला बारू रे, जलें जवियण नेटो जावमां ॥ तुमें सेवो ए तीरथ तारु रे, जिम न पमो जवना दावमां || जलें० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ जग सघला तीरथनो नायक, हारे तुमें सेवो शिवसुख दायक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) रे॥ जलें ॥२॥ए गिरिराजने नपणे निहाली, हारे तुमे सेवो अवधि दोष टाली रे ॥ चलें ॥३॥ मुक्ता सोवन फूलें वधावो, हारे नमी पूजीने नावना नावो रे ॥जलें॥॥ कांकरे कांकरे सिद्ध अनंता, हारे संजारो पाजें चढंता रे ॥जलें॥५॥ आदि अजित शांति गौतम केरा, पहेलां पगलां पूजो जलेरा रे ॥ चलें ॥६॥ आगे धोली परव टुंके चढियें, तिहां जरतचक्री पद नमीये रे ॥ नलें ॥७॥ निली परव अंतराने आवे, हारे नेमी वरदत्त पगलां सोहारे रें॥ नलें ॥ ॥ आदिथुन नमिकुंम कुमारा, हिंगलाजहडे चढो प्यारा रे ॥ जलें ॥ ए ॥ तिहों कलिकुंम नवि श्रीपास, हारे चढो मान मोमी उदास रे ॥ जलें॥१॥ गुणवंत गिरिना गुण गाई,बगला कुंमें विशमो लारे ॥जलें। ॥ ११ ॥ तिहांथी मकागालीपंथें धसीये, प्रजुगढ दे खीने उबसी रे ॥ जलें ॥ १२ ॥ नमीयें नारद अश्मत्तानी मूरति, वली माविम वारिखिल्स सुरति रे ॥ जलें ॥ १३ ॥ तीरथमि देखी सुख जागे, निरखो हेमकुंमने आगे रे ॥नले॥१४॥ राम जरत शुक सेल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) ग स्वामी, हारे थावच्चा नमुं शिर नामी रे॥नले॥१५॥ जूषणकुंढ वामी जोश वंदो सुकोशल मुनि पद सुख कंदो रे ॥ नले ॥१६॥ आगल हनुमंत वीर कहाये, हारे तिहांयी बेवाटें जवायें ॥नले ॥ १७ ॥ माबी दिश रामपो हुं रंजी, साहामी दीसे नदी शत्रुजी रे ॥ जले ॥ १७ ॥ जातां जमणी दिसे वंदो नाली, मुनि जाली मयाली उवयाली रे ॥ जले ॥ १ए ।। तिहांथी माबी दिशें साहामा सोहावे, नमो देवकी षट्सुत नावे रे ॥ नले० ॥ २० ॥श्म शुजनाव थकी उत्कर्षे, रामपोलमा पेसीये हरखे रे ॥ नले ॥ ॥१॥ कुंतासर पाले नवघण जालो, जेह कीधी शा ह सुगालो रे ॥ नले० ॥ २२ ॥ धाश् सोपान चढी अति हरखो, जश् वाघणपोले निरखो रे ॥ जले ॥ ॥३३॥ थिरताये शुभ योग जगावो, कहे अमृत नावया जावो रे ॥नले ॥ २४ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ सीता हरखीजी,उबायो यनुमं तको लश्कर, घटा ज्युं उमटी श्रावनकी॥सीता _हरखी जी हरखी जी॥ ए देशी ॥ ॥ निरखी जी निरखी जी,हुंतोहररे निरखी जी॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) हरख। जी हरखी जी, हुँतो प्रणमुं रे हरखी जी ॥ ए आंकणी ॥ अति हरखें संचरतां, जोतां जिनघर 5ला चैलें जी ॥ जीव जगामी शीश नमामी, आवी हाथीपोलें ॥ हुं तो प्रणमुं रे हरखी जी॥ह॥१॥आगल पुंमरिक पोलें चढतां. प्रणमुंबे कर जोमी जी ॥ तीरथपतिनुं जुवन निहाली, कर्मजंजीर मे तोमी ॥ हुँतो ॥२॥ मूलगंजारे जातां मार्नु, सुकृत सघलां तेमी जी ॥ उत्तण कुकृत पूर पलायां, नाखी कुगति उखेमी ॥ हूं ॥३॥ दीगे लामण मरुदेवीनो, बेगे तीरथ थापी जी पूरव नवाणुं वार आव्याश्री, जगमां कीर्ति व्यापी ॥ हुं० ॥४॥ श्रीआदीश्वर विधिशु वांदी, बीजा सर्व जुहारं जी ॥ नेमि विनेमि काउस्सग्गिया पासें, जोश जोश आतम तारूं ॥ हुं० ॥५॥ साहामा गजवर खंधे बेठां, जरत चक्रीनी मामी जी॥ तिम सुनंदा सुमंगला पासें, पणमुं धन ते लामी ॥ हुं०॥६॥ मूल गंजारामां जिनमुद्रा, एके ऊपी पचास जी ॥ रंगमंम्पमा पमिमा एंशी, वंदो नाव उबालें ॥हुं० ॥७॥ चैत्य उपर चोमुख थाप्यो बे, फिरती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) प्रतिमा बाणुं जी ॥ वली गौतम गणधरनी उवणा, शी तारिफ वखाणुं ॥ ९ ॥ देहरा बाहेर फरती देहरी, चोपन रूमी दीसे जी ॥ तेहमां प्रतिमा एकशो व्याणुं, देखी हियॐ हींसे ॥ हुं ॥ ए॥ नीलडी रायण तरुवर हेठल, पीलमा प्रजुजीना पाय जी ॥ पूजी प्रणमी जावना लावी, ऊलट अंग न माय ॥ हुं० ॥ १० ॥ तस पद हेगल नागमोरनी, मूरति बेहु सोहावे जी ॥ तस सुरपदवी सिझाचलना, माहात्म्य मांहे कनावे ॥ ९० ॥ ११॥ साहमा पुमरिक स्वामी बिराजे, प्रतिमा, बत्रीश गेजी ॥ तेहमां एक बौद्धनी प्रतिमा, टाली नमिये रंगे ॥ ९ ॥ १५ ॥ तिहांयी बाहिर उत्तर पासें, प्रतिमा तेर देदारु जी ॥ एक रूपानी अवर धातुनी, पच तीरथ ने वारू ॥ ९ ॥ ॥१३॥ उत्तर सन्मुख गखधर पगलां, चन्दसया बावननां जी ॥तेहमां शांति जिणंद जुहारी, पूग्या कोम ते मनना ॥हुं० ॥ १४॥ दक्षिण पास सहस कूटने, देखी पाप पलाय जी ॥ एक सहस्स चोवीश जिनेश्वर, संख्याये कहेवाय ॥ हुं ॥ १५ ॥ दश दे मली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) त्रीश चोवीशी, वली विहरमान विदेहें जी॥ एकशो सीतेर उत्कृष्ट काले, संप्रति वीश स्नेहें ॥ ९ ॥ ॥२६॥ पागंतर ॥ दश क्षेत्र मल त्रीश चोवीशी, एकशो शाठ विदेहें जी ॥ उत्कृष्टा विहरमान विजुजी, संप्रति वीश स्नेहें ॥ हुं०॥ चोवीश जिननां पंच कल्याणिक, एकशो वीश संजारी जी ॥ शाश्वता चार प्रनु शरवाले, सहसकूट निरधारी ॥ हुं ॥१७॥ गोमुख यद चक्केसरी देवी, तीरथनी रखवाली जी ॥ ते प्रजुनां पदपंकज सेवे, कहे अमृत निहाली हुं० १७॥ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ मुनिसुव्रत जिन अरज हमारी॥ ए देशी ॥ ॥ एक दिशाथी जिनघर संख्या, जिनवरनी संन लावू रे ॥ तमथी उलखाण करीने, ते अहि गण बता रे ॥ त्रिजुवन तारण तीरथ वंदो ॥१॥ ए आंकणी॥रायणथी दझिणने पासे, देहरी एक जलेरी रे ॥ तेहमा चौमुख दोय जुहारु, टावू नवनी फेरी रे ॥ त्रिनु० ॥२॥ चोमुख सर्व मलीने लूटा, वीश संख्याये जाणो रे ॥ बुटी प्रतिमा आठ जुहारी, करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) ये जन्म प्रमाणो रे ॥ त्रिजु० ॥३॥ संघवी मोती चंद पटणीनु, सुंदर जिनघर सोहे रे ॥ तिहां प्रतिमा जंगणीश कुहारी, हियॉ हरखित होये रे ॥ त्रिजु० ॥ ॥ ४ ॥ श्रीसमेत शिखरनी रचना, कीधी ने नली नाते रे ॥वीश जिनेसर पगलां वंदू, बावीश जिन संघाते ॥ रे त्रिनु० ॥ ५॥ कुशलबाश्नां चोमुखममांहे, सत्तर जिन सोहावे रे ॥ अचलगबना देहरामांहे बत्रीश जिनजी देखावे रे ॥ त्रिजु ॥६॥शाह मूलाना मंझपमांहे, डेनालीश जिनंदो रे ॥ चोवीशवट्टो एक तिहां डे,प्रणम्ये परमानंदो रे ॥ त्रिजु ॥७॥ अष्टा पद मंदिरमा जश्ने, अवधि दोष तजीशरे॥चार आठ दश दोय नमीने, बीजा जिन चालीश रे ॥ त्रिनु० ॥ ॥ ॥ शेठजी सूरचंदनी देहरीमां, नव जिन पमिमा गजे रे ॥ घीया कुंअरजीनी देहरीमां, प्रतिमा त्रएय बिराजे रे ॥ त्रिजु० ॥ ए॥ वस्तुपालना देहरामांहे थाप्या रुषन जिणंद रे ॥ काजस्सग्गिया बे एकत्रीश जिनवर, शंघवी ताराचंद रे ॥ त्रनु० ॥ १० ॥ मेरु शिखरनी उमणामध्ये, प्रतिमा बार जलेरी रे ॥ ना. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) णा लोंबडीयानी देहरीमा, दश प्रतिमा जो हेरी रे ॥ त्रिजु० ॥११॥ संघवी ताराचंद देवल पासे, देहरी त्रय डे अनेरी रे ॥ तेहमां दश जिनप्रतिमा निरखी, थिर परिणीत यश् मेरी रे ॥ त्रिजु० ॥१२॥ पांच जाश् याना देहरामांहे, प्रतिमा पांच बे महोटी रे ॥ बीजी तेत्रीश जिन पमिमा बे, एह वात नहिं खोटी रे ॥ त्रिजु० ॥ १३ ॥ अमदावादीनुं देहरु कहियें, तेहमां प्रतिमा तेर रे ॥ ते पळवाडे देहरीमांहे, प्रणमुं आठ सवेर रे ॥ त्रिजु० ॥ १४ ॥ शेठ जगन्नाथ जीयें कराव्युं, जिनमंदिर जले जावें रे॥तेहमां नव जिनपमिमा वंदी, कवि अमृत गुण गावे रे॥त्रिजु०॥१५॥ ॥ ढाल चोथी ॥ तुमें पीला पीतांबर पहेस्यां जी, मुखने मरकलडे ॥ ए देशी ॥ ॥रायणथी उत्तर पासें जी, तीरथना रसीया ॥ जिनवर जिनघर नबासें जी ॥ मुज हियडे वसीया ॥ ए आंकणी ॥ सहु नाखुं जो शिर नामी जी॥ती॥ मुझ मनना अंतरजामी जी ॥मु ॥१॥ जिनमुखायें रूषन जिणंदो जी ॥ ती० ॥ तिम नरत बाहुबलि वं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) दो जी॥ मु॥नमि विनमी काउस्सग्गिया सामा जी॥ ती॥ब्राह्मी सुंदरी एक देहरीमा जी॥ मु॥२॥पद कृष्ण शुकल ब्रह्मचारी जी॥ती॥शेष विजय ने विजया नारी जी ॥ मु०॥ एहवा कोइ न हया अवता री जी॥ ती ॥ जालं तेहनी हूं बलिहारी जी॥मु॥ ३॥ गड अंचल चैत्य कहावे जी ॥ तो ॥ वीशपमिमा वंडू जावें जी ॥ मु०॥ तस मंगप थला मांहिजी ॥ती० ॥ चौद पमिमा वंदू त्यांहि जी॥मु॥॥ नूषण दासनां देहरामांहे जी॥ती।। तेर पमिमा थापी जसाहें जी ॥मु॥ वारमा मंगल खंनाती जी ॥ती॥ तस चैत्यमांत्रण्य सोहाती जी ॥ मु० ॥५॥ शाकर बाश्नी देहरीयें वंदो जी ॥ती॥ सात प्रतिमा निरखी आणंदो जी॥ मु० ॥ तिहांयी वली यागल चालो जी ॥ ती० ॥ माता विसोतनुं देहरुं नालो जी।मु०॥ ॥६॥ पण ते वस्तुपाले कराव्युं जी ॥ ती॥ आठ प्रतिमाये सोहाव्युं जी ॥ मु० ॥ ते उपर चोमुख राजे जी ॥ ती० ॥ चार शाश्वता जिन बिराजे जी॥मु॥ ॥७॥ जगमणी बेले देहरी जी॥ती॥ जितपमिमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) अग्यार जलेरी जी॥मु०॥शा हेमचंदनी दखणातीजो ॥ती० ॥ देहरीमा जोमी सोहाती जी।मु० ॥॥शारामजी गंधारी कीधो जी ॥ ती० ॥ प्रासाद उत्तंग प्रसिद्धो जी ॥ मु॥तिहां चौमुख देखी आणंडुजी॥ ती० ॥ सात प्रतिमा साथे वंॐ जी ॥ मु० ॥ए॥ खट देहरी डे तस संगें जी ॥ती॥ जिन नमीयें तालीश रंगें जी ॥ मु० ॥ तिहां चोवीश जिननी मामी जी ती॥ जिनसंगें लेश्ने गहामी जी ॥ मु० ॥ १० ॥ मूलकोटनी जमतीमांहे जी ।। ती० ॥ फिरती जे चार दिशायें जी ॥मुण॥ पांचशे समश: सुखकंदो जी ॥ ती० ॥ फिरता सघले जिन वंदो जी ॥ मु० ॥ ११ ॥ मूलकोटनां चैत्य निहाले जी ॥ती० ॥ एकशो पां. शठ सरवाले जी ॥ मु०॥ तिहां प्रजु सगवीससे वंदो जी ॥ती॥ कहे अत ते चिर नंदो जी ॥ मु॥१॥ ॥ ढाल पांचमी । वात करो वेगला रही ॥ विशरामी रे ॥ए देशी ॥ ॥ हवे हाथीपोलनी बाहेरे ॥ विशरामी रे ॥ बे गोंखे जिनराज ॥ नभुं शिर नामी रे ॥ तेहथी द Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) क्षिण श्रेणीयें ॥ वि० ॥ कहूं जिनघर जिननो साज ॥ न ॥१॥ कुमर नरिंदें करावीयो ॥ वि०॥ धन खरची सार विहार ॥ न० ॥ बावन शिखरें बंदियें ॥ वि० ॥ तिहोंत्तर जिन परिवार ॥ न ॥२॥ वली धनराजने देहरे ॥ वि० ॥ प्रतिमा व सात ॥ न० ॥ देहरे वर्ड मान शेग्ने ॥ वि० ॥ प्रतिमा सात विख्यात ॥ न० ॥ ॥३॥ शाह रवजी राधणपुरी ॥ वि० ॥ तेहनुं जिन घर जोय ॥ न ॥ तिहां पन्नर जिन दीपता ॥ वि० ॥ प्रणमी पातक धोय ॥ न ॥ ४ ॥ तेहनी पासें राजता ॥ वि० ॥ मंदिरमा जिन चार ॥ न० ॥ तिहाथी आगल जोश्य ॥ वि० ॥ अषत रचना सार ॥ न० ॥५॥ जगतशेठजीये कीयो ॥ वि०॥ त्रएय शिखरो प्रासाद ॥ न० ॥ तिहां पन्नर जिन पेखतां ॥ वि० ॥ मुफ परिणति हर आव्हाद ॥ न० ॥६॥ पासें जुवन जिनराजनुं ॥ वि० ॥ तिहां खट्र प्रतिमा धार ॥ न ॥ मूर्जा ऊतारी कीयो ॥ वि० ते हीर बाईयें सार ॥न ॥७॥ कुंअरजी लाधा तणुं ॥ वि० ॥ दीपे देवल खास ॥ न ॥ तेवीश जिनशं था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) पीया ॥ वि० ॥ सहस्स फणा श्रीपास ॥ न० ॥ ८ ॥ विमलवसहियें चैत्य बे ॥ वि० ॥ जू जूलवणीमां चार ॥ न० ॥ वली जमतो चोमुख बे मल । ॥वि० ॥ तिहां एक्याशी जिनद्वार || न० || || नेमीश्वर चोरी जिहां ॥ वि० ॥ तिहां एकसो सीतेर देव || न० ॥ मूल नायकशुं वंदीयें ॥ वि० ॥ वली लोकनाल ततखेव ॥ न० ॥ १० ॥ विमलवसही पायें अडे || वि० ॥ देहरा दोय निहाल || न० ॥ प्रतिमा व जुहारीयें ॥ वि० ॥ त्तम करी उजमाल ॥ २० ॥ ११ ॥ पुण्य पापनुं पारखं || वि० ॥ करवाने गुणवंत ॥ न० ॥ मोक्षवारी नामें अबे || वि० ॥ तिहां पेसी निकलो संत ॥ न० ||१|| तीरथनी चोकी करे | वि० ॥४॥ वली संघतणी रखवाल ॥ न० ॥ करमशाहें थापीया ॥ वि० ॥ सहु विघ्न हरे विसराल ॥ न० ॥ १३ ॥ सघले अंगें शोजता ॥ वि ॥ भूषण काकजमाल ॥ न० ॥ चर या चोली पेरणे ॥ वि० ॥ शोहे घाटमी लाल गुलाल ॥ न० ॥ १४ ॥ चतुर्भुजा चक्केंसरी ॥ वि० ॥ तेहना प्रणमी पाय | न० ॥ संघ सकल लग करे ॥ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only · Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) वि० ॥ बुध अमृत नर गुण गाय ॥ न ॥ १५ ॥ ॥ ढाल ही ॥ नवि तुमें वंदो रे, शंखेश्वर जिनराया ॥ ए देशो ॥ ॥ नवि तुमें सेवो रे, जिनवर उपगारी॥ को नहिं एहवो रे, तीरथमां अधिकारी ॥ ए आंकणी ॥ हाथी पोलथी उत्तरश्रेणें, जिनघर जिनजी बाजे ॥ समव सरण सुंदर ने तेहमां, प्रतिमा चार विराजे ॥ नवि० ॥१॥ समवसरण पळवाडे देहरी, थाह अनोपम सोहे ॥ वीश जिनेसर तेहमां बेठ, नवियणनां मन मोहे ॥ नवि० ॥२॥ रत्नसिंह मारी जेणे, कीधुं देवल खास ॥ तिहां जिन चार संघातें थाप्या, विजय चिंतामणि पास ॥ नविण ॥३॥ तेहनी पालें चार ले देहरी, तिहां जिनपमिमा वीश ॥ प्रेमजी वेलजी शा हने देहरे, प्रणमुं पांच जगीश ॥ नवि० ॥४॥ नथ मल आणंदजीयें कीधं, जिनमंदिर सुविशाल ॥ तिहां जश् पांच जिनेसर नेटे, मेटे नवजंजाल ॥ नविण ॥ ५॥ वधुशा पटणीने देहरे, अष्टादश जिनराया ॥ पासें देहरी चिना बिंबनी, देश बंगाल कहाया ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) जवि ॥ ६॥ अति अञ्जत जिनमंदिर रूहुँ, लाधा वहोरा केरुं ॥ तेहमां जे षट् प्रतिमा वंदे, तेहy नाग्य नलेलं ॥ नविण ॥७॥शा मीठाचंद लाधा जा [, पाटण शहेरना वासी ॥ जिनमंदिर सुंदर करि पमिमा, पांच बी डे खासी ॥ नविण ॥॥ मुणोत जयमबजीने देहरे, चोमुख जश्ने जुहारं ॥ प्रतिमा दोय दिगंबर जुवनें, निरखी नांवू साऊं ॥ नवि० ॥ ॥ ए ॥ षन मोदीयें प्रासाद कराव्यो, तिहां दश पमिमा वंदो ॥ राजसी शाहनां देहरामांहे, नेव्या शांति जिणंदो ॥ नविः ॥१॥ तिरथ संघ तणो रख बालो, यद कपर्दी कहियें ॥ बीजी मात चक्केसरी वंदी, सुख संपत्ति सहु लहियें ॥ नविण ॥ ११ ॥ न्हानां महोटां जुवन मलीने, बहेंतालीश अवधारो ॥ संख्यायें जिनजीनी पमिमा, पांचशे शोल जुहारो॥ जरिव ॥ १५ ॥णीपरें सघलां चैत्य नमीने, नाही सूरजकुंम ॥ जयणायें शुचि अंग करीने, पहेरो वस्त्र अखंम् ॥ नवि० ॥ १३ ॥ विधिपूर्वक सामग्री मेली, बहु उपचार संघातें ॥ नाजिनंदन पूजी सहु पूजो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) जिनगुण अमृत गाते ॥ नवि० ॥ १४ ॥ ति प्रथम टुंक प्रतिमासंख्या ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ लरतनृप नावशु ए ॥ ए देशी ॥ ॥बीजी टुंक जुहारीयें ए, पावमीयं चढी जोय ॥ नमो गिरिराजने ए ॥ आंकणी ॥ पहेलां ते अद बुद देखीने ए, मुझ मन अचरिज होय ॥ नमो ॥ ॥१॥ तिहाथी बागल चालतां ए, देहरी एक निहाल ॥ नमो० ॥ तेह गमें जश् वंदीय ए, पासजी शांति कृपाल ॥ नमो ॥२॥ खोमीयार कुंमन। उपरे ए, कीधो प्रासाद उत्तंग ॥ नमो० ॥ संघवी प्रेमचंद लवजीयें ए, निजधन खरची उमंग ॥नणा३॥ गोंख सटावट कोरणी ए, उन्नत रचना जास ॥न ॥ ध्वज कलशें करी शोहतो ए, दीपे जेम कैलात ॥ न ॥४॥ तपगड नायक दिनमणि ए, विजयजिनें सूरिंद ॥ न० ॥ अहाणुं जिन परिवारशुं ए, थाप्या झपन जिणंद ॥ ॥ नमो० ॥५॥ संघवी प्रेमचंदें करयो ए, जिन मंदिर सुखकार ॥ नमो ॥ सर्वतोनद्र प्रासादां ए, नवाणुं सार ॥ नमो० ॥६॥ शा हेमचंद लवजीयें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) करथो ए, देहरो तिहां शुजनाव ॥ नमो ॥ बिंब पचवीश तिहां वंदीयें ए, नवोदधि तारण नाव ॥ नमो॥ ॥॥ पाठांतर ॥ संघवी हेमचंदने देहरे ए, तेत्रीश जिनवर छार ॥ न ॥ वंदी परमानंदयी ए, सफल करयो अवतार ॥ न ॥ पागल पांमव वंदीयें ए, पांच रह्या काउस्लग ॥ नमो ॥ कुंता माता द्रोपदी ए, गुणम णिनां ते वग्ग ॥ नमो ए ॥ खरतरवसहीनी बारीयें ए, पहेलुं शांतिनवन्न ॥ नमो० ॥ बहुतेर जिनशु वंदीये ए, चोवीश वहा त्रन ॥ नमो० ॥१०॥ पासें पास जिनेसरु ए, बेठा नुवन मकार ॥ नमो ॥ चो वीशवट्टो एक तेहमां ए, साधुमुद्रा दोय धार ॥ नमो० ॥११॥ तेहमां नंदीश्वर थापना ए, बावन जिन परी वार ॥ नमो ॥ अवधि आशातना टालीने ए, बिंब जंगण्यासी जुहार ॥ नमो० ॥ १२ ॥ एके जिन घरमां थापीया ए, सीमंधर जिनराय ॥ नमो ॥ प्रतिमा चारशुं वंदीयें ए, परिणति शुफ ठहराय ॥ नमो ॥ ॥ १६ ॥ त्रण |जनरायशुं जुवनमा ए, बेग श्रीअजित जिणंद ॥ नमो ॥ पासें मात चकेसरी ए, अष्टलुजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४ए) ते अमंद ॥ नमो० ॥ १५ ॥ चौमुख त्रण जे तेहनी ए, प्रतिमा वंदो बार ॥ नमो ॥ रायणतले चनपादिका ए, तिहां एक पमीमा सार ॥ नमो० ॥ १५ ॥ गण धर पाका वंदीयें ए, चउदसयां बावन्न ॥ नमो० ॥ पासें बे देहरी दीपती ए, कीधी धन्य ते जन्न ॥ नमो ॥ १६ ॥ शा हेमचंद शिखरें कीयो ए, जिनमंदिर सुविलास ॥ नमो ॥ तिहां त्रण पमिमा नमुं ए, श्री मनमोहन पास ॥ नमो० ॥ १७॥ आमन साहामा ने देहरां ए, श्रीशांतिनाथना दोय ॥ नमो ॥ एकमां प्रतिमा त्रएय नमें ए, बीजे पचाश तुं जोय ॥ नमो ॥ १७ ॥ मूलकोटमांहे दक्षिण दिशें ए, देहरी त्रय ने जोम ॥ नमो ॥ तिहा प्रतिमा खटू वंदीयें ए, कहे अमृत मद मोम ॥ नमो ॥ १७ ॥ ॥ ढाल आठमी। तपशुं रंग लागो । ए देशी ॥ ॥ उत्तर पूरव वचले नागें, देहरी त्रय सोहावे रे ॥ हरखीने ते थानक फरसे, वरसी समता जावं ॥ एहने सेवोने, हारे तुमें सेवो सहु नर नार॥एहने ॥ एतो मेवो इण संसार ॥ एहण ॥ एतो नवजलतारण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) हार ॥एहने॥ ए आंकणी ॥१॥ तेहमां थावच्चा सुत सेलग, सूरि प्रमुख सुखदायी रे ॥ इणगिरि सीधा तेहनां पगलां, बंई सस्स अढाइ ॥ एहने ॥२॥ पासें विहार उत्तंग विराजे, रंगमंमप दिशि चार रे ॥ शेठ शिवासोमजीयें कराव्यो, खरची वित्त उदार ॥ एहने ॥३॥ अनंत चतुष्टय गुण निपज्याथी, सर खां चारे रूप रे ॥ परमेश्वर शुज समय थाप्या, चारे दिशायें अनूप ॥ एहने ॥ ४ ॥ ते श्री कृषन जिने श्वर चौमुख, बीजा जिन त्रेताल रे ॥ शुनिमित्त का रण लही एहवां, हुं प्रणमुं त्रएय काल ॥ एहने ॥ ॥ ५ ॥ उपर चोमुख बवीश जिनशु, देखी सुरित नि कंडे रे ॥ चोवीश वट्टो एक मलीने, चोपन प्रतिमा वंडं ॥ एहने ॥ ६ ॥ साहमा मुमरिक स्वामी बेग, पुमरिकवर्णा राजे रे ॥ तस पद वंदी जोडे देहरी, तेहमां थून विराजे ॥ एहने ॥॥ षन प्रनु ने पुत्र नवाणुं, आप नरत सुत संगे रे ॥ एकशो साठ सम य एक सीधा, प्रणमुं तस पद रंग ॥ एहने ॥ ७ ॥ फिरती जमतीमांहे प्रतिमा, एकशो ने त्रीश रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) तेहमा चोवीश वटा साथें, एकशो साठ जगीश ॥ ॥ एहने ॥ ए ॥ पोल बाहेर मरुदेवी टुंके, चोमुख एक प्रसिझो रे ॥ धनवेलबाश्ये निज धन खरची, नरजव सफलो कीधो ॥ एहने ॥ १० ॥ पश्चिमने मुखसाहमा शोहे, देवलमां मनोहारी रे ॥ गजवर खंधे बेगं श्राइ, तीरथनां अधिकारी ॥ एहने ॥११॥ संप्रतिरायें नुवन कराव्युं, उत्तर सन्मुख सोहेरे ॥ तेह मा चिरानंदन निरखी, कहे अमृत मन मोहे ॥१२॥ ॥ ढाल नवमी ॥ आठ कूवा नव वावमी, हुं शे मिदे खण जाऊं महाराज, दधिनो दाणी कानूमो॥ ए देशी॥ ॥हवे बीपावसहीमां वहाला, हारे तुमे चालो चेतन लाला राज ॥ आज सफल दिन ए रूमो ॥ ए आंकणी ॥ जिनमंदिर जिन मूरति बेटो, नव नवनां पातक मेटो राज ॥ आज ॥१॥ तिहां पांच गंजारे जर अटकलिया, मानुं पांच परमेष्ठी मलिया राज ॥ आ० ॥ रायणतले पगलां सुखदायी, तिहां षन प्रजुने गाई राज ॥ आ॥२॥ नेमि जिनेश्वर शिष्य प्रवीणा, मुनि नंदिषेण नगीना राज ॥ आ॥ श्रीश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) चुंजय नेटण आया, तिहां अजित शांति गुण गाया राज ॥ आ॥३॥ तेह तवन महिमाथी जोडे, बिहुं जिनवर वंद्या कोमें राज ॥ आप ॥ तेह मंदिर बे जोमें निरखी, में नेट्या बेहु जिन हरखी राज ॥ ७ ॥४॥ नयर मनोश् तणो जे वासी, मनुं पारेख धर्म अज्यासी राज ॥ आ० ॥ तेणे जिनमंदिर कीधुं साकं, तिहां त्रय प्रतिमाने जुहार राज ॥ आ ॥५॥ एक जुवनमां त्रय जिन राजे, बीजामां नेम विराजे राज ॥ आप ॥ देवल एक देखी पुरित निकंडं, तिहां पास प्रजुने वंषु राज ॥ आण ॥६॥ बावन देहरी पाउल फरती, जिननंदिर शोला करती राज ॥ श्रा० ॥ तेहमां अजित जिनेश्वर राया, में प्रणमीन गुण गाया राज ॥ आ० ॥७॥ न्हाना महोटां जुवन निहाली, सगतीस गण्यां संजाली राज ॥ आ ॥ संख्यायें जिनप्रतिमा नणीयें, पांचशें नेव्याशी गणी राज ॥ आप ॥ ॥ ए तीरथमाला सुविचारी, तुमें यात्रा करो हितकारी राज ॥ ॥ दर्शन पूजा सफली थाये, शुन अमृत नावें गाये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) राज ॥ आग ॥ए॥ ॥ ढाल दशमी ॥ मुने संनवजिनशुं प्रीत, अवि हम लागी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ तुमें सिकगिरिनां बेहु टूक, जोर जूहारो रे ॥ तुमें जुल आदिनी मूक, ए लव थारो रे ॥ तुमें धर्मी जीव संघात, परिणति रंगें रे ॥ तुमें करजो तीरथ यात्र, सुविहित संगे रे ॥१॥ वावरजो एक वार, सचित्त सहु टालो रे ॥ करी पमिकमणां दोश् वार, पाप पखालो रे ॥ तुमें धरजो शील श्रृंगार, नूमि संथारो रे ॥ अणवाणे पाय संचार, व्हरि पालो रे ॥ ॥२॥ श्म सुणी आगम रीत, हियडे धरजो रे ॥ करी सद्दहणा प्रतीत, तीरथ करजो रे ॥ ा झूषम कालें जोय, विघन घणेरां रे ॥ कीधुं ते सीधुं सोय, शुं सवेरां रे ॥३॥ ए हितशीदा जाण, सुगुणा हरखो रे ॥ वली तीरथनां अहिठाण, यागें निरखो रे॥ देवकीना खट नंद, नमी अनुसरियें रे॥बातम शक्ते अमंद, प्रदक्षिणा करिये रे ॥४: पहेली उल खाजोल, नरी ते जलशुं रे ॥ जाणे केशरना ऊब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) कोल, नमणना रसगुं रे ॥ पूजे इंद्र अमोल, रयण पमिमाने रे ॥ ते जल आँख कपोल, वो शिर गमें रे ॥५॥ आगल देहरी दोय, समीपे जा रे ॥ तिहां प्रतिमा पगलां दोय, नमि गुण गा रे ॥ वली चिक्षणातलावकी देख, मनमां धारूं रे ॥ तिहां सिइशिला संपेखि, गुण संना रे ॥६॥ नामवे जवि यणवंद, आपण जाशुं रे ॥ जे थानकें अतीत जिणंद, रह्या चोमासु रे ॥ जिहां सांब प्रद्युम्न मुनिरंग, थया अविनाशी रे ॥ ते धन्य कृतारथ पुण्य, थुणे गुण राशि रे ॥ ७ ॥ हूं तो सिझवस पगला साथ, नमुं हित काजें रे॥ इहां शिवसुख की, हाथ, बहु मुनिरा जे रे ॥ श्म चढतां चारे पाज, चगति वारे रे ॥ ए तीरथ जग जहाज, नवजल तारे रे ॥७॥ जे जग तीरथ संत, ते सहु करिये रे ॥ पण ए गिरि नेटे अनंत, गणुं फल वरिये रे ॥ पुंमरिकादिक नाम, एकवीश लीजें रे ॥ जिम मनोवांबित काम, सघलां सीके रे ॥॥ करिये पंच स्नात्र, रायण आदें रे ॥ तिम रूमी रथयात्र, प्रनु प्रसादें रे ॥ वली नवाणुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) वार,प्रदक्षिणा फरिये रे ॥ स्वास्तिक दीपक सार, त्यां करीये रे ॥१॥ पूजा विविध प्रकार, नृत्य बनावो रे ॥ श्म सफल करी अवतार, गुणी गुण गावो रे ॥ निज अनुसारे शक्ति, तीरथ संगे रे ॥ तुमें साधु साहामी जक्ति, करजो रंगे रे ॥ ११ ॥ पालीताणुं धन्य धन्य ते प्राणी रे ॥ जिहां तीरथवासी जन्न, पुण्य कमाणी रे ॥ प्रह उगमते सूर, ऋषनजी नेटो रे ॥ करि दक त्रिक आणंद पूर, पाप समेटो रे ॥ १२॥ जिहां ललितासर पाल, नमी प्रनु पगला रे॥ सुगरत्नणं। उजमाल, जरिये डगला रे ॥ वचमां नूखण वाव्य, जोश्ने चा खो रे ॥ तुमे गुण गातां शुन जाव, साथे माहलो रे ॥ १३ ॥ तुमे धूपघटी करमांहि, जूला देतां रे ॥ व मनी बायामांहि, ताली लेता रे ॥ श्रावी तलेटी ग ण, तनु शुचि करिये रे ॥ पूरव रीत प्रमाण, पढी परवरिये रे ॥ १४ ॥ण परे तीरथमाला, नावे नण शे रे ॥ जिणे दी नयण निहाल, विशेषे सुणशे रे ॥ पेशे मंगलमाल, कंठे जे धरशे रे ॥ वली सुख संपत्ति सुविशाल, महोदय वरशे रे ॥ १५ ॥ तपगड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) गयण दिणंद, रूपेंबाजे रे ॥ श्रीविजयदेव सूरिंद, अधिक दिवाजे रे ॥ रत्न विजय तस शिष्य, पंमित राया रे ॥ गुरुराज विवेक जगीश, तास पसाया रे ॥ १६ ॥ कीधो ऐह अन्योस, अढार चालीशे रे ॥ उज्ज्वल फागुण मास; तेरश दिवसे रे ॥ श्रीविमला चल चित्त, धरी गुण गाया रे ॥ कहे अभृत नवियण नित्य, नमो (गरिराया रे ॥ १७ ॥ कलश ॥ श्म तीर्थ माला, गुण विशाला, विमल गिरिवर, राजनी ॥ कही स्वपरहेते, पुण्य संकेते, एह जिनघर, साजनी ॥ तप गह गयण, दिणंद गणधर, विजय जिणंद, सूरीश्वरू॥ रचि तास राजे, पुण्यसाजे, अमृत रंग, सुहंकरू ॥१॥ इति श्री विमलाचलतीर्थमाला संपूर्णा ॥ ____ए तीर्थमाला करया पली प्रेमचंद मोदीनी टुंक, हेमावसही, मोतीशा शेग्नी अंजनशिला का सहित तेमनी टुंक, बालाजाश्नी टुंक,केशवजी नायकना अं जन शिलाका सहित देरासरादिक, जे कांइ ए तीर्थमा लानी रचना थया पली नवा जिनालय थया ले ते स वनी यात्रालु सजनोये यात्रा करवी, ए विनति बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ॥अथ ॥ ॥ पंमित श्रीवीरविजयजी कृत ॥ श्रीशत्रुजय तीर्थना एकवीश नाम संबंधी एक वीश गुण आश्रयी एकवीश खमासमण आपवान दोहा प्रारंज ॥ . १ सिझाचल समरो सदो, सोरठ देश मकार ॥ मणुय जनम पामी करी, वंदो वार हजार ॥ १॥ अंग वसन मन नूमिका, पूजोयगरण सार ॥ न्याय व्य विधि शुद्धता, शुधि सात प्रकार ॥२॥ कार्तिकशुदि पूनम दिने, दशकोटी परिवार ॥ प्राविमवारी खिलजी, सिक थया निर्धार ॥३॥ तिण कारण कार्तिकी दिने, संघ सकल परिवार ॥ आदिजिन सन्मुख रही, खमा समण बहु वार ॥ ४ ॥ एकवीश नामें वर्णव्युं, तिहां पहेढुं अनिधान ॥ शत्रुजय शुकरायश्री, जनक वचन बहु मान ॥५॥ अहींयां “सिकाचल समरो सदा" ए हो प्रत्येक खमामण दीठ कहेवो ॥ १ ॥ २ समोससरया सिझाचलें, पुंमरीक गणधार ॥ ला ख सवा माहातम करयु, सुर नर सना मकार ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (UT) चैत्री पूनमने दिने, करि असा एक मास | पाँच कोमी मुनि साधुशुं, मुक्तिनिलयमां वास ॥ ७ ॥ तिणे कारण पुंमरिक गिरि, नाम थयुं विख्यात ॥ मन वच कायें वंदीयें, ऊठी नित्य प्रजात ॥ ८ ॥ सि० ३ वीश कोमीशुं पांवा, मोद गया ईणे ठाम ॥ इम अनंत मुक्तें गया, सिद्धक्षेत्र तिणें नाम ॥ ए ॥ सि०॥ ४ मराठ तीरथ न्हावतां अंगरंग घमी एक ॥ तुंबी जलनानें करी, जाग्यो चित्तविवेक ॥ १० ॥ चंद्रशेखर राजा प्रमुख, कर्मकठिन मलधाम ॥ अचल पढ़ें विमला थया, तिथे विमलाचल नाम ॥ ११ ॥ सि० ॥ ५ पर्वतमां सुरगिरी वमो, जिन जिषेक कराय ॥ सिद्ध हुआ स्नातकपदें, सुरगिरि नाम धराय ॥ १२ ॥ अथवा चउदे क्षेत्रमां, ए समो तीर्थ न एक ॥ तिणे सुरगिरिनामें नमुं, जिहां सुरवास अनेक ॥ १३ ॥ सि०॥ ६ यसी योजन पृथुल बे, उंचपणे वीश ॥ महिमाए मोटो गिरि, महागिरि नाम नमीश ॥१४॥ सि० ॥ ७ गणधर गुणवंता मुनि, विश्वमांदे वंदनीय ॥ जेवो तेहवो संयमी, विमलाचल पूजनीय ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (UN) विप्र लोक विषधर समा, दुःखीया नूतल मान ॥ द्रव्य लिंगी कण क्षेत्र सम, मुनिवर बीप समान ॥ १६ ॥ श्रावक मेघ समा कह्या, करता पुण्यनुं काम ॥ पुण्य नो राशि वधे घणो, तेणें पुण्यराशि नाम ॥ १७ ॥ सि०॥ ८ संयमधर मुनिवर घणा, तप तपता एक ध्यान ॥ कर्म वियोगें पामीया, केवल लक्ष्मी निधान ॥ १८॥ लख एकाएं शिव वरया, नारदशुं अणगार ॥ नाम नमो तेणें आठमुं, श्रीपद गिरि निर्धार ॥ १९ ॥ सि० ॥ श्रीसीमंधर स्वामीयें, ए गिरि महिमाविलास ॥ इंद्रनी या वर्णव्यो, तेणें ए इंद्रप्रकाश ॥ २० ॥ सि० ॥ १० दश कोटि अणुव्रत धरा, जक्ते जिमाडे सार || जैनतीर्थ यात्रा करी, लाज तो नहिं पार ॥ २१ ॥ तेहथकी सिद्धाचलें, एक मुनिने दान || देतां लाज घणो हुवे, महातीरथ का निधान ॥ २२ ॥ सि० ॥ ११ प्रायें ए गिरि शाश्वतो, रहेशे काल अनंत ॥ शत्रुं जय महातम सुणी, नमो शाश्वतगिरि संत ॥ २३ ॥ सि०॥ १२ गो नारी बालक मुनि चउद हत्या करनार ॥ यात्र करतां कार्तिकी, न रहे पाप लगार ॥ २४ ॥ जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) परदारा लंपटी, चोरीना करनार ॥ देवद्रव्य गुरु द्रव्य ना, जे वली चोरणदार ॥२५॥ चैत्री कार्तिक पूनमें, करे यात्रा इण गम ॥ तप तपतां पातक गले, तिणे दृढशक्ति नाम ॥२६॥ सिझा ॥१२॥ १३ नवनय पामी नीकल्या, थावच्चासुत जेह ॥ सहस्स मुनिशुं शिव वरया, मुक्ति निलयगिरि तेह ॥ ॥२७॥ सिझा ॥ १३॥ १४ चंदा रज बिहुँ जणा उन्ना इणे गिरिशृंग ॥ करी वर्णवने वधावियो, पुष्पदंत गिरिरंग ॥श्णा सि॥ १५ कर्मकलण नवजल तजी, श्हां पाम्या शिवस द्म ॥प्राणी पद्मनिरंजनी, वंदोगिरि महापद्माणासि॥ १६ शिववहू विवाह उत्सवें, मंझप रचियो सार ॥ मुनिवर वर बेठक जणी, पृथ्वीपीठ मनोहार ॥३॥सि १७ श्रीसुन गिरि नमो, नऊ ते मंगलरूप ॥ जल तरु रज गिरिवर तणी, शीश चढावे नूप॥ ३१ ॥सि॥ १७ विद्याधर सुर अप्सरा, नदी शत्रुजी विलास ॥ करता हता पापने, नजीये नवि कैलास ॥३॥ सि॥ १ए बीजा निर्वाणी प्रजु, गश् चोवीशी मकार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) तस गणधर मुनिमा वमा, नामे कदंब अणगार ॥२३॥ प्रनु वचनें अणसण करी, मुक्ति पुरीमा वास ॥ नामें कंदगिरि नमो, तो होय लील विलास ॥३४ ॥ सि॥ २० पाताले जस मूल डे, उज्ज्वल गिरिनुं सार ॥ त्रिकरण योगें वंदतां, अल्प होय संसार ॥३५॥ सि०॥ २१ तन मन धन सुत ववना, स्वर्गादिक सुख जोग॥ जे वंडे ते संपजे, शिवरमणी संयोग ॥ ३६ ॥ विमलाचल परमेष्ठीजें, ध्यान धरे खट मास ॥ तेज अपूरव विस्तरे, पूगे सघली आश ॥ ३६ ॥ त्रीजे नव सिफिलहे, ए पण प्रायिक वाच ॥ उत्कृष्टा परिणा मयी, अंतर मुहरत साच ॥३७॥ सर्व कामदायक नमो, नाम करी उलखाण ॥ श्रीशुनवीरविज प्रन, नमतां कोमि कल्याण ॥ ३५ ॥ सिझा ॥१॥ इति श्रीसिहाचलनां एकवीश नाम आश्रयी एकवीश गुणना खमासमण संबंधी दोहा समाप्त ॥ ॥अथ सिझाचल चैत्यवंदनं ॥ ॥ विमल केवल, ज्ञान कमला, कलित त्रिभुवन हितकरं ॥ सुरराज संस्तुत, चरण पंकज, नमोबा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) दिजिनेश्वरं ॥१॥ विमल गिरिवर, श्रृंग मंगन, प्रवर गुणगण, नूधरं ॥ सुर असुर किन्नर, कोमि सेवित ॥ नमो ॥२॥ करति नाटिक, किन्नरीगण, गाय जिन गुण, मनहरं ॥ निर्जरावलि नमे अहनिश ॥ नमो ॥३॥ पुंमरिक गणपति, सिद्धि साधी, कोमी पण मुनि, मनहरं ॥ श्री विमल गिरिवर,श्रृंगसिद्धा ॥ न मो० ॥ ४॥ निज साध्य साधन, सुर मुनिवर, कोमी नंत ए, गिरिमरं ॥ मुक्ति रमणी, वरया रंगे॥नमो॥ ॥५॥ दाताल नर सुर, लोकमांहे, विमल गिरिवर तो परं ॥ नहिं अधिक तीरथ, तीर्थपति कहे ॥नमो० ॥६॥ एम विमल गिरिवर, शिखर मंगण, मुःखविहं मण, ध्याश्ये ॥ निजशुद्ध सत्ता, साधनार्थ, परम ज्यो तिने, पाश्ये ॥ ७॥ जित मोह कोह, विडोह निखा, परमपदस्थित, जयकरं ॥ गिगराज सेवा, करण तत्पर, पद्मविजय, सुहितकरं ॥ ७ ॥ इति ॥ १॥ ॥अथ द्वितीय चैत्यवंदनं ॥ ॥ सिकाचल शिखरे चढो, ध्यान धरो जगदीश मन वच काय एकाग्रशुं, नाम जपो एकवीश ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६३ ) १ शत्रुंजय गिरि वंदीयें, २ बाहुबली गुणधाम ॥ ३मरुदेव ने ४ पुंमरिक गिरि, ५ रेवतगिरि बिशराम ॥२॥ ६ विमलाचल ७ सिद्धाराजजी, नाम जगीरथ सार ॥ ए ॥ सिद्धक्षेत्र ने १० सहस्रकमल, ११ मुक्तिनिलय जयकार ॥ ३ ॥ १२ सिद्धाचल १३ शतकूट गिरि, १४ ढंक ने १५ कोडी निवास १६ कदंब गिरि १७ लोहित नमो, १० तालध्वज १५ पुण्यराशि ॥ ४ ॥ २० महावल २१ दृढशक्ति सही, ए एकवीशह नाम ॥ साते शुद्धि समाचरी, करीये नित्य प्रणाम ॥ ५ ॥ दग्ध शून्य ने विधि दोष, अतिप्रवृति जेह ॥ चार दोष बंकी जजो, जक्तिनाव गुणगेह ॥ ६ ॥ मा जन्म पामी करी ए, सद्गुरु तीरथ योग ॥ श्रीशुजवीरने शासने, शिवरमणी संयोग ॥ ७ ॥ इति चैत्यवंदनं ॥ ॥ अथ पुंकर गिरिस्तवन प्रारंभः ॥ ॥ वीरजी आया रे (वमलाचलके मेदान, सुरपति जाया रे, समवसरण मंमाण ॥ ए आंकणी बे ॥ देशना देवे वीरजी स्वामि, शत्रुंजय महिमा वर्णवे ताम ॥ जांखे या ऊपर सो नाम, तेहमां जांख्युं रे पुंकर गिरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) अनिधान ॥ सोहम इंदोरे, तव पूढे बहु मान ॥ किम थयुं स्वामी रे, नांखो तास निदान ॥ वीर ॥१॥ प्रजुजी नाखे सांजल इंद, प्रथम जे हुआ रुषन जिणं द ॥ तेहना पुत्र ते नरत नरिंद, जरतना हुआ रे ष नसेन पुंमरिक ॥षनजी पासें रे, देशना सुणी तहकोक ॥ दीदा लीधी रे, त्रिपदी ज्ञान अधिक ॥वी॥ ॥॥ गणधर पदवी पाम्या जाम, छांदशांगी गुंथी अन्तिराम ॥ विशरे महियलमां गुण धाम, अनुक्रमें आव्यो रे, श्रीसिझाचल सार ॥ मुनिवर कोमी रे, पंच तणे परिवार॥अनशन काधु रे; निज आतमने उपगार ॥ वीर ॥३॥ चैत्री पूनम दिवसें एह; पाम्या केव ल ज्ञान अलेह ॥ शिव सुख वरिया अमल अदेह, पूर्णानंदी रे, अगुरु लघु अवगाह ॥ अज अविनासी रे, निजगुण जोगी अबाह ॥ निज पुण करता रे, पर पुल नहिं चाह ॥ वीर ॥ ४ ॥ तेणे प्रगट्यो पुंग रिकगिरि नाम, सांबलो सोहम देवलोक स्वाम ॥ एहनो महिमा अतिहि उदाम, इणे दिन कीजेंरे, तप जप पूजा ने दान ॥ व्रत वली पोसो रे, जेह करे नि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) दान ॥ फल तस पामे रे, पंच कोमी गुण मान ॥वीर ॥५॥ नक्तं जव्य जीव जे होय, पंच नवें मुक्ति लहे सोय ॥ तेहबां बाधक डे नहिं कोय, व्यव हार केरी रे, मध्यम फलनी ए वात ॥ उत्कृष्टं नोगें रे, अंतरमुहूर्त विख्यात, शिव सुख साधे रे, निज आतम ने अवदात ॥वीर॥६॥चैत्री पूनम महिमा देख, पूजा पंच प्रकार विशेष ॥ कीजें नहिं ऊणमी कांश रेख, णीपरें नांखे रे, जिनवर उत्तम वाण ॥ सांजली व ऊया रे, केश्क नविक सुजाण ॥ इणीपरें गाया रे पद्म विजय सुप्रमाण ॥ वीर ॥ ७ ॥ इति स्तवनं ॥ ॥ अथ श्री शत्रुजयस्तुतिः॥ ॥ श्री शत्रुजय मंगण, शषन जिणंद दयाल ॥ मरुदेवा नंदन, वंदन करूं त्रएय काल ॥ ए तीरथ जाणी, पूर्व नवाणुं वार ॥ आदीश्वर आव्या, जा णी लान अपार ॥ १॥ त्रेवीश तीर्थकर, चमिमा ३ णे गिरि जावें ॥ ए तीरथना गुण, सुर असुरादिक गावे ॥ ए पावन तीरथ, त्रिथुवन नहिं तस तोलें ॥ ए तीरथना गुण, सीमंधर मुख बोले ॥२॥ पुंमरिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिरि महिमा, आगममां परसिक ॥ विलाचल नेटी, लहियें अविचस इङि॥ पंचमी गति पहोता, मुनि वर कोमाकोमि ॥ इण तीरथ आवी, कर्मविपाक वि बोमा ॥३॥ श्रीशजयगिरि, अहोनिश रक्षा कारी॥ श्रीयादिजिनेश्वर, आण हृदयमां धारी ॥ श्रीसंघवघ्नहरः कविम्यद नरपूर ॥ श्रीसंघनां संकट, रवि बुध सागर चूर ॥४॥ इति ॥ ॥अथ श्रीशजयस्तुतिः॥ ॥ श्रीशत्रुजय गिरि तीरथ सार, गिरिवरमांदे जेम मेरु उदार, गकुर राम अपार ॥ मंत्रमांहे नव कारज जाणुं, तारामांहे जेम चंद्र वखाएं, जलधर मांहे जल जाणुं ॥ पंखीमांहे जेम उत्तम हंस, कुल माहे जेम झषननो वंश, नानि तणो जे अंश ।। द मावंतमाहे जेम अरिहंता, तपःशूरा मुनिवर महंता, शत्रुजय मिार गुणवंता ॥ १॥षन (जत संन व अनिनंदा, सुमति नाथ मुख पूनमचंदा, पद्मप्रन सुखकंदा ॥ श्रीसुपार्श्व चंद्रप्रन सुविधि, शीतल श्रेयांस सेवो बहुबुद्धि, वासुपूज्य मति शुद्धि ॥ वि. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६७ ) मल अनंत जिन धर्म ए शांति, कुंथु र मल्लि नमुं एकांति, मुनिसुव्रत शुद्ध पंथी ॥ नमि पास ने वीर चोवीश, नेम विना ए जिन त्रेवीश, सिद्धगिरि श्राव्या ईस ॥२॥ जरतराय | जन साधें बोले, स्वामी शत्रुंजय गिरि कुण तोले, जिननुं वचन अमोले ॥ षन कहे सुणो जरतराय बहरी पलतां जे नर जाय, पातक नूको थाय ॥ पशु पंखी जे इमगिरि यावे, जव त्रीजे ते सिद्ध थावे, अजरामर पद पावे ॥ जिनमत में शेत्रुंजो वखाण्यो, ते में आगम दिलमांहे आयो, सुतां सुख र आयो ॥ ३ ॥ संघपति नरत न रेश्वर आवे, सोवन तणां प्रासाद करावे, मणिमय मूरति ठावे ॥ नाजिराया मरुदेवी माता, ब्राम्ही सुं दरी बहेन विख्याता, मूर्ति नवाएं जाता ॥ गोमुखने चक्केसरी देवी, शत्रुंजय सार करे नित्यमेवी, तप ग उपर देवी ॥ श्रीविजयसेन सूरीश्वरराया, श्रीविजयदेवसुरि प्रणमी पाया, रुषनदास गुण गाया ॥ ४ ॥ ॥ श्रीशत्रुंजयनां एकवीश नाम कहीयें ढैयें || विमल गिरि मुत्तिनिलर्ड, शत्रुंजो सिद्ध खित्त पुंमरि ; " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ (६७) ॥ सिरी सिझसेहर, सिझपव सिझरा अ॥१॥ बाहुबली मरुदेवो, नगीरहो सहसपत्त सयवत्तो ॥ कूम सयहत्तर, नगाहिरा सहस्सकमलो ॥२॥ ढंको कमिनिवासो, लोहिच्चो ताबुल कयंबुत्ति ॥ सुरलर मुणिकय नामो, सो विमल गिरि जयउ तिहं ॥३॥ अर्थः-१ प्रथम जेने वांदवाथी, फरसवाथी, प्रजवाथी तथा गुणस्तुति करवायी, जीव कर्ममल रहित थाय विमल थाय तेथी ए तीर्थy नाम विमल गिरि जाणवू. श्रीनरतचक्रवर्तीथी उ पाट आरीशा जुवनमां के वल झान पामी मोक्ष पद पामशे माटे मुक्तिनिलय नाम ३ जितारि राजा, ए तीर्थ सेवी ॥मास आयंबिल तप करी शत्रुने जीतशे माटें शत्रुजय नाम जाणवू. ४ ए तीर्थ उपरे कांकरे कांकरे अनंता जीव सिकि वरया ,माटे (सिखित्त के) सिहदेव नाम जाणवू. ___५ हे पुंमरिकगधर ॥ तमे चैत्रशुदि पूनमने दिवसें. पांच कोमी मुनियो सहित सिछि पामशो अथवा सर्व तीर्थरूप कमलमां घुमरिक कमल समान सर्वोत्तम ए तीर्थ डे माटे एनुं मुमरिकगिरी नाम जाणवू. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) ६ बीजां सर्व तीर्थ तथा अढी द्वीपने विषे जेटला जीव सिद्धिने पाम्या, तेथी पण घणा जीवो य तीर्थने विषे सिद्धिने पाम्या, बे, माटें श्री सिद्धशेखर नाम बे. ७ सर्व तीर्थोकी तथा सर्व पर्वतोथकी ए पर्वत प्रसिद्ध बे माटे एनुं सिद्धपर्वत एवं नाम जाणवुं. ए ८ घणा राजा केवलज्ञान पामी ए तीर्थने विषे सिद्धि पाम्या माटे एनुं सिद्धराज एवं नाम जापकुं श्री बाहुबल रुषीश्वरे काउस्सग्ग करयो माटे एनुं ( बाहूबल के० ) बाहुबलि एवं नाम जाणवुं १० श्री रुषजदेवनी माता मरुदेवाजीनी टुंक ए तीर्थ उपर बे माटे एनुं (मरुदेवो के० ) मरुदेव नाम बे. ११ ए तीरथनी रक्षा करवा सारु इंद्रना कहेवा थकी सगरचक्रवर्ती, समुद्रनी खाइ लाव्या, तेथी एनुं ( जगीर हो के० ) नगीरथ एवं नाम जाणवुं. १२ ए पर्वतनी पढवाडे सहस्रकूट बे माटे एनुं ( सहस्तपत्त के० ) सहस्रपत्र एवं नाम जाणवुं. १३ ए पर्वतनी पढवाडे सेवंधानी टुंक बे, माटें एनुं ( सयवत्तो के०) सयवत्तो एवं नाम जाणवुं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 30 ) १४ ए पर्वतनी पुंठे एकशो आठ कूट अथवा शि खर बे, माटे एनुं अष्टोत्तरशतकूट एवं नाम जाणवुं. १५ बीजा सर्व पर्वतोमां ए पर्वत राजा समान बे माटे तेनुं (नगाहिरा के० ) नगाधिराज नाम जाणवुं. १६ ए पर्वनी पुंठे कमलनी पेरें सेहस्र टुक बे माटे ( सहस्सकमलो के० ) सहस्रकमल नाम जाणवुं. १७ ढंग नामे टूक बे माटे ढंकगिरि नाम जाणवुं १० कवकनामा यनुं देरासर बे, माटे एनुं (कउ(निवास के० ) कमिनिवास एवं नाम जाएं. १० लोहितध्वज नामें पर्वत बे माटे एनुं ( लोहिच्चो के० ) लौहित्य गिरि एवं नाम जाणवुं. २० तालध्वज नामें पर्वत बे माटे एनुं ( तालनो के० ) तालध्वज एवं नाम जाणवुं २१ अतीत चोवीशीमां निर्वाणीनामा तीर्थकर ना कदंब नामें गणधर कोमी मुनि सायें या तीर्थनी टुकें सिद्धि वरया, माटें कदंबगिरि एवं नाम जावं. ए एकवीश नाम ते (सुरनरमुणिकय के० ) देवता, मनुष्य तथा मुनियोना करया थका थया करशे, माटे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) ए तीर्थ रुजकूटादिकनी परें प्रायःशाश्वतो जे. कालं करी घट वध थाय परंतु सर्वथा नाश न थाय (सो के०) ते विमल गिरि तीर्थ (जयन के ) जयवंतो वों. ॥अथ ॥ ॥श्री सिहाचलजीनो रास प्रारंनः॥ ॥दोहा॥ ॥श्री रिसदेसर पाय नमी, आणी मन आनंद ॥ रास जणुं रलियामणो, शत्रुजय सुखकंद ॥ ॥१॥ संवत् चार सत्त्योतरें, हुवा धनेसर सूरि ॥ तिमें शत्रुजय महातम का, शीलादित्य हजूर ॥२॥ वीरजिणंद समोसरया, शत्रुजय उपर जेम ॥ इंद्रादिक बागल कह्यु, शत्रुजय महातम एम ॥ ३ ॥ शत्रुजय तीरथ सारिखं, नही तीरथ कोय ॥ स्वर्ग मृत्यु पातालमें, तीरथ सघलां जोय ॥४॥ नामें नव निधि संपजे, दीठे पुरित पलाय ॥ नेटतां जवजय टले, सेवंतां सुख थाय ॥५॥ जंबूनामें द्वीप ए, दक्षिण जरत मकार ॥ सोरठ देश सोहामणो, तिहां के तीरथ सार ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) ॥ ढाल पहेली ॥ नयरी द्वारामती ॥ ए देशी ॥ ॥राग रामग्री॥ ॥शत्रुजय ने श्रीपुमरिक, सिझदेत्र कहुं तहकीक ॥ विमलाचलने करुं प्रणाम, ए शत्रुजानां एकवीश नाम ॥१॥ए आंकणी॥सुरगिरि महागिरि ने पुण्यराशि,श्री पद पर्वतेंद्र प्रकाश ॥ महातीरथ पूरवें सुखकाक, ए शत्रुजानां एकवीश नाम ॥२॥ शाश्वतपर्वत ने दृढश क्ति, मुक्तिनिलो तेणें कीजें जक्ति ॥ पुष्पदंत महापद्म सुगम ॥ ए० ॥ ३ ॥ पृथ्वीपीठ सुनद्र कैलास, पातालमूल अकर्मक तास ॥ सर्वकाम कीजें गुणग्राम ॥ ए० ॥४॥ शत्रुजयनां एकवीश नाम, जपेजे बेग अपणे गम ॥ शत्रुज यात्रानुं फल लहे, महावीर नगवंत एम कहे ॥ ए० ॥५॥ इति ॥ ॥दोहा॥ ॥ शत्रुजो पहेले अरे, असी जोयण परिमाण ॥ पहोलो मूलें जंचपणे, बबीश जोयण जाण ॥१॥ सीत्तेर जोयण जाणवो, बीजे आरे विशाल ॥ वीश जो यण उंचो कह्यो, मुऊ वंदन त्रण काल ॥२॥ शाठ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) जोयण त्रीजे खरे, पहोलो तीरथराय ॥ शोल योजन ऊंचो सही, ध्यान धरूं चित्त लाय ॥ ३ ॥ पच्चास जोयण पहोलपणे, चोथे अरे मकार ॥ जंचो दश जोयण अचल, नित्य प्रणमे जोयणाचल, नरनार ॥ ४ ॥ बार योजन पंचम अरे, मूल तो विस्तार ॥ दोय जोयण उंचो कह्यो, शत्रुंज तीरथ सार ॥ ५ ॥ सात हाथ अरे, पहोलो पर्वत एह || उंचो होशे सो धनुष, शाश्वतुं तीरथ एह ॥ ६॥ ॥ ढाल बीजी ॥ जिनवरशुं मेरो मन लीनो ॥ ॥ ए देशी ॥ राग आशावरी ॥ ॥ केवलज्ञानी प्रथम तीर्थकर, अनंत सिद्धा इ वाम रे ॥ अनंत वली सिद्धसे इण वामें, तिणें करूं नित्य प्रणाम रे ॥ १ ॥ शत्रुंजे साधु अनंता सिद्धा, सिकशे वलीयी अनंत रे || जेणें शत्रुंज तीरथ नहिं नेट्यो, ते गर्जावास लहंत रे ॥ श० ॥ २ ॥ फागुण शुदि श्रामने दिवसें, षनदेव सुखकार रे ॥ रायण रूख समोसरचा स्वामी, पूरत नवाणुं वार रे ॥ श० ॥ ३ ॥ जरत पुत्र चैत्री पूनम दिन, इस शत्रुंजे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) गिरि आय रे ॥ पांच कोमिशुं पुंमरीक सिका, तेणें पुंगरीक कहाय रे ॥श ॥४॥ नमी विनमि राजा विद्याधर, बे बे कोमी संघात रे ॥ फागुण शुदि दशमी दिन सिहा, तेणें प्रणमुं प्रजात रे ॥ श० ॥५॥ चैतर मास वदि चौदशने दिन, नमी पुत्री चोसह रे ॥ अणसण करी शत्रुज गिरि उपर, ए सहु सिझा एकल रे ॥ श० ॥६॥ पोतरा प्रथम तीर्थकर केरा, द्राविम ने वारिखिर रे ॥ कार्तिक शुदि पुनम दिन सिका, दश कोमी मुनि निःशस्य रे ॥ श॥७॥ पांचे पांगवण गिरि सिझा, नव नारद ऋषिराय रे ॥ सांब प्रद्युम्न गया तिहां मुक्तं, आठे कर्म खपाय रे ॥ श० ॥ ७ ॥ नेम विना त्रेवीश तिर्थकर, समोसरया गिरिश्रृंग रे॥ अजित शांति तीर्थकर बेहु, रह्या चोमासुं रंग रे॥शा ॥ ए ॥ सहस्स साधु परिवार संघातें, थावच्चा सुत साधरे ॥ पांचशे साधुशुं शैलंग मुनिवर, शत्रुजे शिवसुख लाध रे ॥ श० ॥१०॥ असंख्यांता मुनि शत्रुजे सिझा, जरतेसरने पाट रे ॥ राम अने जरतादिक सका, मुक्ति तणी ए वाट रे ॥ श० ॥१॥ जालीम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) याली ने उवयाली, प्रमुख साधुनी कोमी रे ॥ साधुनंता शत्रुजे सिझा, प्रणमुंबे कर जोमी रे ॥श॥१ ॥ढाल त्रीजी ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥ शत्रुजाना कहुं शोल उझार, ते सुणजो सहुको सुविचार ॥ सुणतां आनंद अंग न माय, जन्म जन्मनां पातक जाय ॥१॥ ऋषनदेव अयोध्या पुरी, समोसरथा सामी हित करी ॥ नरत गयो वंदनने काज, ए उपदेश दीयो जिनराज ॥२॥ जगमा महोटो अरिहंत देव, चोशठ इंच करे जसु सेव ॥ तेहथी महोटो संघ कहाय, जेहने प्रणमे जिनवर राय ॥३॥ तेहथी महोटो संघवी कह्यो, जरत सुणीने मन गहगह्यो ॥ नरत कहे ते किम पामीयें, प्रनु कहे शत्रुज याना किये ॥४॥ नरत कहे संघवी पद मुऊ, ते आपो हूं अंगज तुऊ ॥ इंद्रे आण्या अक्षत वास, प्रनु आपे संघवी पद तास ॥५॥ इंद्रे तेणी वेला तत्काल, नरत सुनद्रा बेहुने माल ॥ पहेरावी घर संप्रेमीया, सखर सोनाना रथ आपिया ॥६॥ शेषनदेवनी प्रतिमा वली, रत्न तणी कीधी मन रली॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) जरतें गणधर घर तेमीया, शांतिक पुष्टिक सहु तिहां किया ॥ ७ ॥ कंकोतरी मूकी सहु देश, जरतें तेड्यो संघ शेष ॥ आव्यो संघ अयोध्या, पुरी, प्रथम तीर्थ कर यात्रा करी ॥ ८ ॥ संघनति कीधी अति घणी, संघ चलायो शत्रुंजय जणी || गणधर बाहुबली केवली मुनिवर कोमी साधें लिया वली ॥ ए ॥ चक्रवर्तीनी सघली रुद्धि, जरतें साथै लीधी सिद्धि ॥ हय गय रम पायक परिवार, ते तो कहेतां नावे पार ॥ १० ॥ नर तेश्वर संघवी कहेवाय, मार्गे चैत्य उद्धरतो जाय ॥ संघ व्यो शत्रुंजय पास, सहूनी पूगी मननी आश ॥ ११ ॥ नय निरख्यो शत्रुंजो राय, मणी माणिक मोतीशुं वधाय ॥ तिलें में रही महोत्सव कीयो, जरतें आणंदपुर वासीयो ॥ १२ ॥ संघ शत्रुंजय उपर चड्यो, फरसंतां पातक उमपड्यो ॥ केवलज्ञानी पगलां तिहां, प्रणम्यां रायण रूख बे जिहां ॥ १३ ॥ केवलज्ञानी स्नात्र निमित्त, ईशानेंद्रे आणी सुपवित्त ॥ नदी शत्रुंजी सोहामणी, जरतें दीठी कौतुक जणी ॥ १४ ॥ गणधर देव तणे उपदेश, इंद्रे वल ! Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (39) दीधो आदेश ॥ आदिनाथ तणो देहरो, जरतें कराव्यो गिरि सेहो ॥१५॥ सोनाना प्रासाद उत्तंग, रत्नतणी प्रतिमा मनरंग ॥ जरतें श्रीआदीश्वर तणी, प्रतिमा स्थापी सोहामणी ॥ १६ ॥ मरुदेवीनी प्रतिमा वली, माही पूनम थापी रली ॥ ब्राह्मी सुंदरी प्रमुख प्रासाद, बरतें थाप्या नवले नाद ॥१७॥ एम अनेक प्रतिमा प्रासाद, जरतें कराव्या गुरु प्रसाद ॥एह जएयो पहेलो उझार, सघलोही जाणे संसार ॥ १७ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ राग आशावरी ॥ .. ॥ जरत तणे पाट आठमे, दंमवीर्य थयो रायो जी जरत तणी परें संघ कीयो, शत्रुजय संघवी कहायो जी ॥१॥ शत्रुज उछार सांजलो, शोल महोटा श्रीकारो जी ॥ असंख्याता बीजा वली, ते न कहुं अधिकारो जी ॥श ॥२॥ चैत्य कराव्युं रूपा तणु, सोनानां बिंब सारो जी ॥ मूलगां बिंब मारीयां, पश्चिम दिशि तेणी वारो जी॥श ॥३॥ शत्रं जनी यात्रा करी, सफल कियो अवतारो जी ॥ दमवीर्य राजा तणो, ए बोजो उझारो जो॥शा शो सागरोपमव्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ) तिक्रम्या, दमवीरजथी जे वारो जी ॥ ईशाने करावीयो, ए त्रीजो उझारो जी ॥श ॥५॥ चोथा देव लोकनो धणी, माहेंद्र नाम उदारो जी ॥ तिणे शत्रुजयनो करावीयो, ए चोथो उछारो जी॥श०॥६॥पांचमा देवलोकनो धणी, ब्रह्मेद्र समकित धारो जी ॥ तिणे शत्रुजयनो करावीयो, ए पांचमो उकारोजी श० ॥ ७॥ जवनपति छ तणो कीयो. ए हो उहारोजी ॥ चक्रवर्ति सगर तणो कियो, ए सातमो उहारोजी ॥श ॥७॥ अभिनंदन पासें सुएयो, शत्रुजयनो अधिकारो जी ॥ व्यंतरेंद्रे करावीयो, ए आरमो उझारोजी ॥ श० ॥ ए ॥ चंद्रप्रन खामीनो पोतरो, चंद्रशेखरनाम महारो जी ॥ चंद्रयशरायें करावियो, ए नवमो नकारों जी ॥ श० ॥ १० ॥ शांतिनाथनी सुणो देशना, शांतिनाथ सुत विचारोजी ॥ चक्रधर राय करावीयो, ए दशमो उधारो जी ॥ श० ॥११॥ दशरथ सुत जग दीपतो, मुनिसुव्रत सुवारो जी ॥ श्रीरामचंद्रे करावीयो, ए ग्यारमो उकारोजी ॥ श० ॥१शापांमव कहे अमें पापीया, किम बुटुं मोरी मायो जी ॥ कहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) कुंती शत्रुजा तणी, जात्रा कियां पाप जायो जी ॥ शम् ॥ १३ ॥ पांचे पांमव संघ करी, शत्रुजय नेट्यो अपारो जी ॥ काष्ठ चैत्य बिंब लेपनो, ए बारमो उझारो जी श० ॥ १४ ॥ मम्माणी पाषाणनी, प्रतिमा सुंदर सरूपो जी ॥ श्रीशत्रुजनो संघ करी, थापी सकल सरूपो जी ॥ श० ॥ १५ ॥ अहोतर शो वरसां गयां, विक्रम नृपथी जिवारोजी ॥ पोरवाम जावम करावियो, ए तेरमो उझारो जी ॥श ॥ १६ ॥ संवत बार तेरो त्तरें, श्रीमाली सुविचारो जी ॥ बाहमदे मुहूर्त करावीयो, ए चौदमो उकारो जी ॥श ॥१७॥ संवत तेर एकोत्तरें, देश लहेर अधिकारो जी॥ समरेशाहें करावीयो, ए पंदरमो उधारो जी ॥श ॥ १७ ॥ संवत पन्नर सत्याशी थे, वैशाकशुदि शुन्न वारो जी ॥ करमे दीशी करावियो, ए शोलमो उछारो जी ॥ श० ॥१५॥ सांप्रतकाले शोलमो, ए वरते ने उझारो जी॥ (नत्य नित्य कीजें वंदनाने, पामीजें नवपारो जी॥श ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥ वली शत्रुज महातम कहुं, सांजलो जिम ते जेम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () ॥ सूरि धनेसर श्म कहे, महावीरे कडं एम ॥१॥ जेहवो तेहवो दर्शनी, शत्रुजे पूजनीक ॥ जगवंतनो नेख मानतां, लाल होवे तहकीक ॥२॥ श्री शत्रुजा उपरे, चैत्य करावे जेह ॥ दल परिमाण समुं लहे, पट्योपम सुख तेह ॥ ३ ॥ शत्रुजा उपर देहरुं, नवूनी पावे कोय ॥ जीर्णोधार करावतां, गणुं फल होय ॥४॥ शिर उपर गागर धरी, स्नात्र करावे नार ॥ चक्रवर्तीनी स्त्री थक्ष, शिवसुख पामे सार ॥५॥ काती पूनेम शत्रुजें, चमीने करे उपवास ॥ नारकी शोसागर तणो, करे कर्मनो नाश ॥ ६॥ काती परव महोटुं का, जिहां सिद्धा दश कोमि ॥ ब्रम्ह स्त्री बालकहत्या, पापथी नाखे डोम ॥ ७॥ सहस्र लाख श्रावक जणी, जोजन पुण्य विशेष ॥ शत्रुज साधु पमिलानतां, अधिको तेहथी देख ॥ ॥ इति ॥ ॥ ढाल पांचमी॥धन्य धन्य गज सुकुमारने॥ ए देशी॥ ॥शत्रु0 गयां पाप बूटीयें, लीजें बालोयण एमो जी ॥ तप जप कीजें तिहां रही, तीर्थकर का तेमो जी ॥श ॥ १॥ जिण सोनानी योरी करी, ए आलो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) यण तासो जी॥ चैत्रीदिन शत्रुजय चमी, एक करे - पवासो जी ॥श ॥२॥ रत्नतणी चोरी करी, सात आंबिल शुद्ध थाय जी ॥ काती सात दिन तप कीयां रत्नहरण पाप जाय जी ॥ ॥३॥ कांसा पीतल त्रांबां रजतनी, चोरी कीधी जेण जी ॥ सात दिवस पुरिम करे, तो लूटे गिरि एण जी ॥श ॥४॥ मोती प्रवालां मुगीया, जेणें चोरयां नर नारो जी॥याबिल करी पुजा करे, त्रण टंक शुद्ध आचारो जी ॥ ॥श० ॥५॥ धान्य पाणी रस चोरीयां, जे नेटे सिक खेत्रो जी ॥ शत्रुज तलहटी साधुने, पमिलाने शुज चित्तो जी ॥श ॥६॥ वस्त्राचरण जेणें हरयां, ते बूटे इणे मेलो जी॥ आदिनाथनी पूजा करे, प्रह उठी बहु वहेलो जी ॥ श० ॥७॥ देवगुरु- धन जे हरे ते शुद्ध थाये एमो जी ॥ अधिकुं द्रव्य खरचे तिहां; पाले पोषे बहु प्रेमो जी ॥ श० ॥॥ गाय नेश गोधा मही, गज ग्रह चोरणहारो जी ॥ बूटे ते तप तीरथें, अरिहंत ध्यान प्रकारो जी ॥ शण ॥ ए॥ पुस्तक देहरा पारकां, तिहां लखे आपणां नामो जी बूटे ॥ बमासी तप कीयां, जामायिक तिण गमो जी ॥श ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २) ॥ १० ॥ कुंवारी परिव्राजिका, सधव विधव गुरु नारो जी ॥ व्रत जांजे तेहने का, उमासी तप सारो जी ॥श ॥११॥ गो विप्र बालक ऋषि, एहनो घातक जेहो जी ॥प्रतिमा आगे आलोचतां, बूटे तप करी एहो जी ॥श ॥१५॥इति ॥ ॥ ढाल बही ॥ ऋषन प्रजुजीयें ॥ ए देशी ॥ ॥ संप्रतिकाले शोलमो ए, ए वरते जे उकार ॥शत्रुजय यात्रा करूं ए सफल करूं अवतार ॥श ॥ १ ॥ बहरि पालतां चालीयें ए, शत्रुज केरी वाट ॥ पाली तात्त पहोंचीयें ए, संघ मल्या बहु थाट ॥श ॥२॥ ललित सरोवर देखीयें एवली सत्तानी वाव ॥ तिहां विशामो लीजियें ए. वमने चोतरे आव ॥ श० ॥३॥ पालीताणे पावमी ए, चढीयें उठीप्रजात॥शेजूंजीनदी सोहामणी ए, थकी देखात ॥श ॥४॥ चढियें हिंगलाजने हडे ए, कलिकुंम नमीयें पास ॥ बारीमा हे पेशीयें ए, आणी अंग उल्हास ॥ श० ॥ ५॥ मरुदे वी टुक मनोहरु ए, गजचढी मरुदेवी माय ॥ शांतिना थजिन शोलमो ए, प्रणमीजें तसु पाय ॥ श० ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) वंश पोरवामें परगमो ए, सोमजी शाह मलार ॥ रूप जी शंघवी करावीयो ए, चोमुख मूल उझार ॥ श० ॥ ॥७॥श्रीजिनराज सूरीश्वरू ए, खरतर गड गणधार ॥ वहाथे जेणें प्रतिष्ठा करी ए, शुज दिवस शुज वार ॥ शाजाचोमुख प्रतिमा चरचीयें ए, जमतीमांहे जला बिंब ॥ पांचे पांमव पूजीयें ए, अदबुद आदि प्रलंब ॥श० ॥ ए॥खरतर वसही खातशु ए, बिब जुहारु अनेक ॥ नेमनाथ चोरी नम ए, टावं अलग नहेग ॥ श० ॥ १० ॥ धर्मधारमाहे नीसहं ए, कुगति करूं अति दूर ॥ आईं आदिनाथ देहरे ए, कर्मकरुं चक चूर ॥ श० ॥ ११ ॥ मूलनायक प्रणमुं मुदा ए, आदि नाथ नगवंत ॥ देव जुहारं देहरे ए, नमतीमांहे जगवं त ॥ श० ॥ १५ ॥ शेर्बुजा उपर कीजीयें ए, पांचे गमें स्नाात्र ॥ कलश अहोत्तरशो करी ए, निर्मल नीरशुंगा त्र॥श ॥ १३ ॥ प्रथम आदीश्वर आगलें ए, पुंमरीक गणधार ॥ रायण तल पगलां वलीए, शांतिनाथ सुख कार ॥ श० ॥ १४ ॥ रायणतले पगलां नर्मू ए, चोमु ख प्रतिमा चार ॥ वीजी में बिंब वली ए, पुंगरीक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४) गणधार ॥ श० ॥ १५ ॥ सूरजकुंग निहालीयें ए, अति जली उलखाजोल ॥ चेलण तलाइ सिफशिला ए, अंगे करीशुं उबोल ॥ श० ॥ १६ ॥ आदिपुर पाजें उतरुंए, सीवर लहुं विश्राम ॥ चैत्य प्रवामी श्णी परें करी ए, सीधां वांडित काम ॥ श ॥ १७ ॥जात्रा करी शत्रुजा तणी ए, सफल कीयो अवतार ॥ कु शल देमशु आवया ए, संघ सह परिवार ॥ श० ॥ ॥ १७ ॥ शत्रुजय महातम सांजली ए, रास रच्यो अ नुसार ॥ जो नवि गावे नावणुं ए, आनंद होय अपा र ॥श ॥ १५ ॥ शत्रुजय रास सोहामणो ए, सांज लजो सहु कोय ॥ घर बेगं जणे नाव ए, तसु जात्रा फल होय ॥ श ॥ २० ॥ जणशाली थिरु अतिजलो ए, दयावंत दातार ॥ शत्रुजय संघ करावीयो ए, जेस लमेर मजार ॥ श० ॥ २१॥ शत्रुजय माहात्म्य ग्रंथ थी ए, रास रच्यो अनुसार ॥ नाव जक्ते जपतां थका ए, पामीजें जवपार ॥ श० ॥ ॥ संवत शोल ब्या शीयें ए, श्रावणशुद्धि सूखकार ॥ रास नएयो शजा तणो ए, नगर नागोर मकार ॥ श० ॥ २३ ॥ गिरुड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) गब खरतर तणो ए, श्रीजिनचंद सूरीश ॥ प्रथम शिष्य श्रीपूज्यना ए, सकलचंद सुजगोश ॥२॥४॥ तास शिष्य जग जाणीयें ए, समयसुंदर उवधाय ॥ रास रच्यो तेणें रूअमो ए, सूणतां आनंद थाय ॥ ॥ श० ॥ १५ ॥ इति श्री शत्रुजयरासः संपूर्णः ॥ ॥अथ श्री सिकाचलजीनुं स्तवन ॥ ॥शेव॒जो जोवानुं हो जोर जे जी॥राज जोर जे जी राज ॥ नानीनो किशोर ॥ महाराजा ॥ शेजूंजो० ॥ ॥१॥ सोरठ नेशनो साहेबोजी राज, शेजानो शण गार ॥ महाराजा ॥ कलिमल करिकुल केशरीजी राज, मरुदेवी माता मबार ॥ महाराजा ॥शेजे ॥शातीरथ तीरथ शुं करोजी राज, अवर डे आल पंपाल ॥ म. हाराजा ॥ त्रिजुवन तीरथ एक डे जी राज, श्रीसिका चल सुविशाल ॥ महाराजा शे० ॥३॥ नाग्य होय तो नेटीये जो राज, विमलाचल वारोवार ॥ म हाराजा ॥ जेणे एक वार दीगे नहीं जी राज, अफल तेहनो अवतार ॥ महाराजा शेव्रु० ॥४॥ सत्तर नेव्याशीया समेज) राज, जोर बनी उत्तंग ॥ महारा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) जा ॥ प्रतिष्ठानपुरें पूज्या तणी जी राज, अधिक आंगीनो उमंग ॥ महाराजा ॥ शेत्रु० ॥५॥ चैतर शुदि बारस दिनें जी राज, उदयरतन उवद्याय ॥ म हाराजा ॥ परिकरशु प्रनु पेखीने जी राज, गेलेशं गुण गाय ॥ महाराजा ॥ शेठे ॥ ६ ॥ इति ॥ Hills ॥ अथ जे जे स्थानकें शाश्वत जिनालय ले ते ते स्थानकोनां नाम तथा त्यां जिनमंदिरनी संख्या अने प्रत्येक मंदिरमा प्रतिमाजीनी संख्या तथा एकत्र प्रति मांजीनी संख्या. प्रतीमाजीना शरीरनं प्रमाण. मंति रनी लंबाइ तथा चोमा, अने उंचपणाना प्रमणानुं यंत्र लखीये. बैये जेथी। वंदना करवाने अनुकूल थाय. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानकन | जिनमंदिर | प्रत्येक | सर्व प्रतिमाजीना नी संख्या प्रतिमा शरवालानी संख्या. नाम.. जी सं० अनुत्तरमें. ग्रैवेयक में. सोधमें. माहेंद्र में. ब्रह्मलोके. लांतकमे. ३२ लाख ईशानदेव० २७ लाख सनत्कुमारे. १२ लाख ८ लाख ४ लाख शुक्रदेव० सहस्रारमे. खानतमे. ( 69 ) ա ३१८ Jain Educationa International ५० हजार ४० हजार ६ हजार २०० २०० प्राणतमे. आरणमे. १५० अच्युतमे. १५० असुरकुमारे. ६४ लाख नागकुमारे. ८४ लाख सुवर्णकुमारे ७२ लाख १२० १२० १० 200 १८० १० Go १०० १०० १०० १८० 200 200 Go १८० (00 १८० ६०० ३८१६० 49&000000 ५०४०००००० २१६०००००० १४४०००००० 92000000 V000000 २००००० १०८०००० ३६००० ३६००० १७००० १७००० ??42000000 १५१२०००००० (20000000 For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ज) प्रतिमांजीनां मंदिरनी । मंदिरनी मंदिरनां जं शरीरप्रमाण लंबानु चोमानुं चपणानुं प्रमाण. प्रमाण. प्रमाण. धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन १२ धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन १२ धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन धनुष १॥ योजन १०० योजन ५॥ योजन ७२ धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन १२ धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन १२ धनुष १॥ योजन १०० | योजन ५० योजन ७२ धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन ७२ धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन १२ धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन २ धनुष १॥ | योजन १०० योजन ५० | योजन १२ धनुष १॥ योजन १०० योजन ५० योजन ७२ योजन १०० योजन ५० योजन ७२ धनुष २॥ योजन १०० योजन ५० योजन पर धनुष १॥ योजन ५० योजन २५ योजन ३६ धनुष १॥ योजन २५ योजन १॥ योजन । धनुष १॥ योजन २५ योजन १॥ योजन १७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (नए) स्थानकनां जिनमंदिर प्रत्येक | सर्व प्रतिमाजीनां नाम.नी संख्या. प्रतिमा शरवालानी संख्या. जी सं० विद्युत्कुमारे. ७६ लाख १० १३६7000000 अग्निकुमारे. | ७६ लाख १७० १३६000000 छोपकुमारे. ७६ लाख १७० १३६7000000 उदधिकुमारे. ७६ लाख १० १३६000000 दिशिकुमारे. | ७६ लाख २७० १३६000000 वायुकुमारे. ए६ लाख १० १७२000000 स्त नितकुमारे ४६ लाख | १० १३६000000 जंबुवृदे. १९७० १२० १४०४०० कंचनगिरिये. १००० १२० १२०००० कुंडे. १२० ४५६०० दीर्घवैताढये. १७० २०४०० महानदीये. १२० ४०० गजदंते. २४०० नंदीश्वरहीपे. १२४ ६४४ जद्रशालवने. १२० २४०० नंदनवने. १२० २४०० सौमनस्यवने. २४०० ३७० १२० १२० - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए० ) प्रतिमांजनां मंदिरनी शरीरनुं लंबाइनुं प्रमाण. प्रमाण. धनुष १||| |योजन २५ धनुष १ ||| योजन २५ धनुष १ || धनुष १ || योजन २५ योजन २५ धनुष १||| योजन २५ धनुष १ || धनुष १|| योजन २५ योजन २५ धनुष ५०० गाउ १ धनुष ५०० | गाउ १ धनुष ५०० गाउ १ धनुष ५०० गाउ १ गाउ १ योजन ५० योजन १०० धनुष ५०० धनुष ५०० धनुष ५०० धनुष ५०० योजन ५० धनुष ५०० योजन ५० धनुष ५०० योजन ५० Jain Educationa International मंदिरनी चोमाइनुं प्रमाण. योजन १२ ॥ | योजन १२ ॥ | योजन १२ ॥ गाउ० ॥ गाउ० ॥ योजन १२ ॥ योजन १८ योजन १२ || योजन १८ योजन १२ || |योजन १० योजन १२ ॥ | योजन १८ गाउ० ॥ गाज० ॥ गाज० ॥ योजन २५ योजन ५० योजन २५ योजन २५ योजन २५ मंदिरनां उं चपणानुं For Personal and Private Use Only प्रमाण. योजन १८ योजन १८ योजन १० धनुष १४४० धनुष १४४० धनुष १४४० धनुष १४४० धनुष १४४० योजन ३६ योजन 92 योजन ३६ योजन ३६ योजन ३६ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० (ए१) स्थानकनां जिनमंदिर प्रत्येक सर्व प्रतिमाजीनां नाम.नी संख्या. प्रतिमा शरवालानी संख्या. जी सं० पंमगवने. २० १२० । २४०० वक्षस्काराये. ७० १२० ए६०० कुल गिरिये. ३६०० दिग्गजे. ४० द्रहें. ए६०० यमकपर्वते. १२० २४०० वृत्तवैताढये. २४०० राजधानीये. १ए० मेरुचूलिका. ६०० रुचके. १२४ कुंमलद्वीपे. ४ए६ १२० मानुष्योत्तरे. ४ १२० कुरुदसगे. १२० १२०० व्यंतरमां. असंख्यात १७ असंख्याती. ज्योतिष्के. असंख्यात १० असंख्याती. ज्योतिष्करा असंख्यात असंख्याती. १२० १२० १२४ इकुकारे. । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (jug) प्रतिमांजीनां मंदिरनी शरीरनुं लंबाइनुं प्रमाण. प्रमाण. Jain Educationa International मंदिरनी चोमाइनुं योजन १०० योजन १०० योजन ५० योजन ५० योजन ५० योजन १२ ॥ | योजन ५० धनुष ५०० धनुष ५०० योजन ५० धनुष ५०० योजन ५० धनुष ५०० गाउ १ धनुष ५०० गाउ १ धनुष ५०० गाउ १ धनुष ५०० गाउ १ धनुष ५०० गाउ १ धनुष ५०० | गाउ १ धनुष ५०० धनुष ५०० धनुष ५०० धनुष ५०० धनुष ५०० धनुष ५०० धनुष ५०० 0 0 धनुष ५०० योजन १२ ॥ | योजन ६ । प्रमाण. योजन २५ योजन २५ योजन २५ गाउ० ॥ गाउ० ॥ गाउ० ॥ गाउ० ॥ गाज० ॥ गाउ० ॥ योजन ५० योजन ५० योजन २५ योजन २५ योजन २५ योजन ६ | For Personal and Private Use Only मंदिरनां जं चपणानुं प्रमाण. योजन ३६ योजन ३६ योजन ३६ धनुष १४४० धनुष १४४० धनुष १४४० धनुष १४४० धनुष १४४० धनुष १४४० योजन ७२ योजन 92 योजन ३६ योजन ३६ योजन ३६ योजन ‍ 0 योजन ए Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए३) ॥ श्रीचोवीश जिननां एकशो ने वीश __ कल्याणिकनी तिथि प्रारंनः॥ ॥ तिहां प्रत्येक तीर्थकरनां पांच कल्याणिक बे, ते एकेका कल्याणिकने दिवसे गणणुं गणाय ने. ते आवी रीते के, दिवसे श्रीतीर्थकर परगतिथी च्य वीने माताना उदरने विषे आवे वे ते दिवसे च्यवन कल्याणिक कहेवाय बे. तेवारे “परमेष्ठिने नमः” एवो जाप जपाय . तथा जे दिवसे श्रीतीर्थकरनुं जन्म थाय , ते दिवसे जन्मकल्याणिक कहेयाय बे, ते वारे " अईते नमः " एवो जाप जपाय . तथा जे दिवसे तीर्थकर दीक्षा लश् मुनिपणुं धारण करे ले ते दिवसे दीदा कल्याणिक कहेवाय बे तेवारे " ना थाय नमः" ए जाप जपाय बे. तथा जे दिवसे श्रीती र्थकर नगवानने केवलझान उत्पन्न थाय बे, ते दिव से संपूर्ण ज्ञानकल्याणिक कहेवाय . तेवारे "सर्व शाय नमः” ए जाप जपाय . तथा जे दिवसे श्रीती र्थकर नगवानने मोदनी प्राप्ति थाय डे, ते दिवासेनि र्वाणकट्याणिक कहेवाय जे तेवारे "पारंगताय नम;" ए जाप जपाय जे. ए रीते पांच कल्याणिक एके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए४) कातीर्थकरनां गणतां चोवीश जिननां एकशो ने वोश कक्ष्याणिक पाय ले. तेनां दिवसोनुं यंत्र नीचे गप्यु डे. तेनी समज आप्रमाणे डे के प्रथमनों कोगमा जे त्रण, बावीश, इत्यादिक जे आंकडा जरया ने ते जिहां त्रणनो यांक होय तिहां त्रीजा तीर्थकर श्रीसंनव नाथ समजवा. अने जिहां बावीशनो आंक होय तिहां बावीशमा तीर्थकर श्रीनेमिनाथ समजवा. ए रीते जिहां जे आंक होय तिहां तेटलामा तीर्थकरनुं नाम समजी से, तेवार पछी प्रत्येक महीनाना शुक्ल अथवा कृष्णपदमाहेला जे जे पक्षमा श्रीतीर्थकरप रमात्माना जन्मादि कल्याणिक थयां , ते पद जणा व्या . तेवार पठी पांच, बार, इत्यादिक जे आंकलखे लो ले ते वदि पांचम तथा बोरस इत्यादिक तिथि सम जवी. तेवार पछी केवलज्ञान तथा च्यवन इत्यादिकजे लखेला ते सर्व प्रजुना कल्याणिक समजवां तथा उपर जे कार्तिकवदि शुदि पक्ष एम करीने तेनी पासे जे सातमानो आंक लखेलो . ते कार्तिक महीनामां सर्व मली सात कल्याणिक थयां डे ए रीते बारे म हीनानी आगल जे आंक लख्या . ते सर्व आंक ते ते महीनाना कल्याणिकनी संख्याना समजवा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) 19 || ३ शुदि १४ जनम्या. ३ शुदि १५ दीकालीधी. ॥ पौषव शुदिप ॥ १० ॥ २३ वदि १० जनम्यो. २३ वदि ११ दीकालीधी. २४ वदि ३० मोक्षपाम्या ८ वदि १२ जनम्या. ॥ कार्त्तिकव दिशुदिप ३ व दि ५ केवलज्ञान ॥० २२ वदि १२ च्यवन० ॥ ६ वदि १२ जनम्या ६ वदि १३ दीक्षालीघी ए शुदि ३ केवलज्ञान० ० वदि १३ दीक्षालीघी. १० शुदि १२ केवलज्ञान० १० वदि १४ केवलज्ञान० || माग शिरवदि शुदि । १३ । १३ शुदि ६ केवलज्ञान० वदि ५ जनम्या १६ शुदि ९ केवलज्ञान० ए वदि ६ दीकालीधी. २ शुदि १ केवलज्ञान० २४ वदि १० दीकालीधी ४ शुदि १ केवलज्ञान० ६ वदि ११ मोक्षपाम्या. १५ शुदि १५ केवलज्ञान० १० शुदि १० जनम्या. || महावदिशुदिपक ॥१४॥ १० शुदि १० मोक्षपाम्या. ६ वदि ६ च्यवन० ॥ १० शुदि ११ दीकालीधी. १० वदि १२ जनम्मा. १७ शुदि ११ जनम्या. १० वदि १२ दीकालीधी. १५ शुदि ११ दीकालीधी १ दि १३ मोक्षपाम्मा. १० शुदि ११ केवलज्ञान० ११ वदि ३० केवलज्ञान० २१ शुदि ११ केवलज्ञान० ४ शुदि १ जनम्या. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ शुदि ५ केवलज्ञान १५ शुदि ४ च्यबन ॥ १५ शुदि ३ जनम्या. ३ शुदि ७ च्यवन ॥ १३ शुदि ३ जनम्या. २० शुदि १२ दीदालीधी १३ शुदि ४ दीदालीधी. १ए शुदि १२ मोक्षपाम्या. २ शुदि जनम्या. ॥चैत्रवदिशुदिपद ॥१३॥ २ शुदि ए दीवालीधी. २३ वदि ४ च्यवन ॥ ४ शुदि १५ दीदालीधी. २३ वदि ४ केवलज्ञान १५ शुदि १३ दीवालीधी. वाद ५ च्यवन ॥ फागुणवदिशुदिपद ॥१५॥ १ वदि ७ जनम्या. ७ वदि ६ केवलज्ञान १ वदि ७ दीवालीधी. वदि ७ मोदपाम्मा. १७ शुदि ३ केवलज्ञान ७ वदि ७ केवलझान १४ शुदि ५ मोद पाम्या. ए वाद ए च्यवन॥ २ शुदि ५ मोद पाम्या. १ वदि ११ केवलज्ञान । ३ शुदि ५ मोद पाम्या. २० वदि १२ केवलझान ५ शुदि ए मोद पाम्या. ११ वदि १२ जनम्या. ५ शुदि ११ केवलज्ञान ११ वदि १३ दीदालीधी. २४ शुदि १३ जनम्या. १२ वदि १४ जनम्या. ६ शुदि १५ केवलझान १२ वदि ३० दीवालीधी. वैशाखवदिशुदिपद ॥१७॥ १७ शुदि २ च्यवनः ॥ १७ वदि १ मोद पाम्या. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) १० वदि ५ मोक्षपाम्या. १६ वदि १३ जनम्या. १७ वदि ५ दीवालीधी. १६ वदि १३ मोदपाम्या. १० वदि ६ च्यवन ॥ १६ वदि १४ दीवालीधी. १ वदि १० मोदपाम्या १५ शूदि ५ मोद पाम्या १४ वदि १३ जनम्या. १५ शूदि ए च्यवन ॥ १४ वदि १४ दीदलीधी. ७ शूदि १२ जनम्या. १४ वदि १४ केवलझान ७ शुदि १३ दीदालीधी १७ वदि १४ जनम्या. आषाढ वदिशुदिपद ॥६॥ ४ शुदि ४ च्यवनः॥ १ वदि ४ च्यवन० ॥ १५ शुदि । च्यवन ॥ १३ वदि ७ मोद पाम्या. ४ शुदि उ मोदपाम्या. १ वदि ए दीवालीधी. ५ शुदि ज जनम्या. २४ शुदि६ च्यवन० ॥ ५ शुदि ए दीदालीध. २२ शुदि - मोद पाम्या. २४ शुदि १० केवलज्ञान. १२ शुदि १४ मोक्षपाम्या १३ शुदि १२ च्यवन ॥ ॥श्रावणवदिशुदिपदाणा २ शूदि १३ च्यवन ॥ ११ वदि ३ मोद पाम्या ॥ज्येष्ठव दिशुदिपद ॥१०॥ १४ वदि ७ च्यवन । २१ वदि ६ च्यवन ॥ १ वदि जनम्या. २० वदि जनम्या. १७ वदि ए च्यवन ॥ २० वदिए मोक्षपाम्या. ५ शूदि २ च्यवनम् ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49399999XESKEEN, (एG) २२ शूदि ५ जनम्या. वदि ७ मोक्षपाम्या. २२ शुदि ६ दीदालीधी. ७ वदि च्यवन ॥ २३ शूदि - मोदपाम्या. ए शूदि ए मोदापाम्या, २० शूदि १५ च्यवन ॥ ॥याशोव दिशूदिपदा ॥॥ ॥नादवाव दिशूदिपदा॥ २२ वदि ७ केवलझान १६ वदि ७ च्यवन ॥ १ शुदि १५ च्यवन ॥ ॥ अथ श्रीशत्रुजयपद ॥ ॥ दादा मोरा सासरीये वलाव्य, सासरीयां जाय डे रे शेजेजो नेटवा ॥ जाशे जाशे जेगणीनी जोम, देरा णीयो जाशे रे पुरितने मेटवा ॥१॥ धियमी मारी शेजो पूर, सासरवासो रे नथी सज्यो वली ॥ कठण ले आ जनालानो काल, लूनी लहेरे रे शरीर रहे बली ॥२॥ दादा मोरा पापी ने पूर, सासरवासो रे मुने पहोतो सवे ॥ नले लह्यो उनालो ए वाट, न वमा नमतां रे जाणुं बुं बहु नवे ॥ ३ ॥ घेली बेटी घेलमीयां श्यां बोल, देशावर जातां रे फुःख बहु देख बुं ॥ दादामोरा नजरे देखुं ए देश, तो उःख संघलां रे सुख करी बेखवु ॥४॥ उर्गतिना पासु हो दांत, सुगति वसावू रे सहेजे हाथमां ॥ जाशुं जाशु शे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) जानी हो जात्र, समकितधारी रे मामीनी साथमा ॥ ५॥ दादा मोरा सहज वलावे लोक, मामीनो जायो रे साथे मोकलौ ॥ अगाउ चलवो हो आज, ख. बर देवाने पंड्यो खोखलो ॥६॥ पुरुं मारा मनमा ना कोम, हल हल करीने होंशे हाल\॥ लेवा लेवा मुगतिनी मोज, चोप करीने रे पंथे चालझुं॥॥ एवो एवो करे ने आलोच, स्वमी, तेहुँ रे आव्युं ते स मे ॥ वोलावी दीधी ले तेने वेग, शेजे जश्ने ष जने ते नमे ॥ ७॥ नांगी नांगी जवनी हो नूख, गिरिवरियो देखीने मनहुं गहगह्यं ॥ युग युग धडे हो मेह, हर्षने पुरे रे हैयहुं हसी रह्यं ॥ए॥ जममा तणुं तिहां नहीं हो जोर, जेणे प्रजु पुज्या रे फूले फुटरे ॥ शुं करे तेहने हो रोग, अमीरस पीधो रेंजे नरे घु टडे ॥ १० ॥ देशमाहे ने शोरठ देश, तीरथमांहे रे शेजूंजो तेम लहो ॥ हारमाहे हो होरमां नगीनो जेम उदयरत्न कहे साचुं सदहो ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ अथ पद ॥ ॥ नाजिरायावंशे वारु तदयो दिणंद, देवनो मे देव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) दीगे आदिजिणंद ॥ आदि जिणंद हांजी मरु देवीनो नंद ॥ ना ॥१॥ मीठो लागे महाराज रूप तोदरो आज, मुजरो जीयो माहारो सारोने काज ॥ दिवस घणे दोगे तुने नाथ मुने नेह, उपनो आनंद तेहनो कोण लहे बेह मी० ॥२॥ ताथेश ताथेश् तोन वाजे श्रीनगीन दों, मृदंग देव इंदुनि ते वाजे दोदों॥ शंख वाजे तालकंसाल, धप मप मादल धमके रसाल ॥ मी० ॥ ३ ॥ दंकिटि दंकिटि थेश थेश थाप, पधनी धपमधप थर अति व्याप ॥ घणणण घुघरा घमके रे पाय, नणणण लणकारा नेरीना थाय ॥ मी ॥ ॥४॥ नाची कूदी पाय दंदी नविजन नावे, जगतिशु जगवंतने शीश नमावे ॥ मुगतिनी मोज आपो मागु बे कर जोड, शयरतन कहे नवपुःख बोम ॥ मी० ॥५॥ इति श्री शत्रुजयस्तवनं समाप्तम् ॥ इतिश्रीशत्रुजय महातीर्थनारासनहा । रादिग्रंथोना संग्रहनंपुस्तक समाप्त.॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) श्री यादी जिन विनंती. सुण जीनवर सेजा धणीजी, दास तणीअर दास ॥ तुज आगल बालक परेजी, हुं तो करुं वेयासरे ॥ जीनजी मुख पापीने तार || तुं तो करुणा रस भर्यो जी, तुं सहुनो हितकाररे जीनजी ॥ ज० ||१|| हुं अवगुणनो ओरडोजी, गुण तो नही लवलेश || परगुण पेखी नवी सकुंजी, केम संसार तरेसरे जीनजी ॥ मुज० ॥ २ ॥ जीवतणा वधमें कर्या जी, बोल्या मववाद || कपट करी परधन हर्यां जी, सेव्या विषय संवादरे जीनजी || मुज० || ३ || हुं लंपट हुं लालचुजी, कर्म कीधां केई क्रोड || त्रण भुवनमां को नहीजी, जे आवे मुज जोडरे जीनजी ॥ मुज० ॥ ४ ॥ छीद्र परायां अहनीसे जी, जो तो रहुं जगनाथ || कुगति तणी करणी करीजो, जोड्यो तेहसु साथरे जीजी || मुज० ॥ ५ ॥ कुमती कुटील कदामही जी, वांकीगति मति मुज || वांकी करणी माहरीजी, शी संभलावं तुजरे जीनजी ॥ मुज० ॥ ६ ॥ पुन्यविना मुज प्राणीओजी, जाणे मेलुंरे आय ॥ उचां तरुवर मोरीयाजी, त्यांही पसारे हाथरे जीनजी || मुज० ||७|| वीण खाधावीण भोगव्याजी, फोगट कर्म बंधाय || आर्तध्यान मीटे नहींजी, कीजे कवण उपायरे जीनजी || मुज || ८ || काजलथी पण सामलांजी, मारा मन परणाम | सोणा मांही ताहरूंजो, संभारुं नही नामरे जीजी || मुज० ॥ ९ ॥ मुग्ध लोक उगवा भणीजी, करूं अनेक प्रपंच ॥ कुड कपट हुं केळवीजी, पाप तणो करूं संचरे जीनजी || मुज• ॥ १० ॥ मन चंचल न रहे कीमेजी, राचे रमणी रे रुप ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) काम विटंबण शीकहुंजी, पडीस हुं दुरगति कुपरे जीनजी || मुज ॥ ११ ॥ किश्या कहुं गुण माहराजी, किश्या कहुं अपवाद ॥ जेम संभारु हैये जी, तेम तेम वाधे विखवादरे जीनजी ॥ मुज० ॥ १२ ॥ गिरुआ ते नवी लेखवे जी, निगुण सेवकनी वात || निचतणे पण मंदिरे जी, चंद्र न टाले ज्योतरे जीनजी || मुज० ॥ १३ ॥ निगुणो तोपण ताहरोजी, नाम धराव्यं दास ।। कृपा करी संभारजोजी, पुरजो मुज मन आसरे जीनजी || मुज० ॥ १४ ॥ पापी जांणी मुज भणीजी मतमुको वीसार । विख हलाहल आदर्यो जी, ईश्वर न तजे तासरे जीनजी || मुज० ॥। १५ उत्तम गुणकारी हुए जी, स्वार्थ वीना सुजाण || करण सिंचे सरभरेजी, मेह न मागे दाणरे जीनजी || मुज० ॥ १६ ॥ तुं उपगारी गुण नीलोजी, तुं सेवक प्रतीपाल || तुं समर्थ सुख पुरवाजी, कर महारी संभालरे जीनजी || मुज० ॥ तुजने शुं क ही घणुं जी, तुं सौ वाते जाण || मुजने थाजो तुं साहीबाजी, भव भव ताहरी आणरे जीनजी || मुज० ॥ १८ ॥ नाभीराया कुलचंद लोजी, मारुदेवीना नंद ॥ कहे जीन हरख निवाजज्योजी, देजो परमानंदरे जीनजी || मुज० ॥ १९ ॥ · உள்வெர்.ை Printed by Manakji Bhanji Dharamsey at The New Laxmi Printing Press, and Published by Heerji Ghellabhai Padamsi J. P. for Bhimsi Manek Trust 18-20 Kazi sayad street Mandvi Bombay 3. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gooooooo0.0 // पद्यबंध चरित्रो॥ 9AVORD6:08/6ORG 4-0-0 SARODAADO600, श्री समरादित्य केवलीनो रास 5-0-0 श्री श्रीपाल राजानो रास अर्थ चित्रयुक्त सदर गुजराती 3-8-0 श्रीचंद केवलीनो रास (अति रसिक ग्रंथ) 3-0-0 श्री वीशस्थानकनो रास (तप महात्य रूप) धर्म परिक्षानो रास हित शिक्षानो रास महाबल राजा अने मल्या सुदरी राणनिो रास १-८नर्मदा सुंदरीनो रास महा प्रमाविक वीमल मंत्रीनो रास मानतुग राजा अने मानवती राणीनो रास 1-0-0 वस्तुपाल तेजपालनो रास 0-8-0 अभय कुमार 0-8-0 उपर सिव Eथो, नकशाओ वगेरे मले छे. विगत 098193 सह नाणेक. जैन पुस्तक चेचनार तथा प्रसिद्ध करनार शाकगली मांडवी मुंबई. | 00000 0000000000000 | | Serving JinShasan OPE gyanmandir@kobatirth.org Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary