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( २८ ) मरथां पातक हरे, आतम शक्ति अनुहार ॥ १०८ ॥ ॥ कलश ॥ इम तीर्थ नायक, स्तवन लायक, संथुग्यो श्री, सिद्धगिरि ॥ श्रोत्तरसय, गाह स्तवनें, प्रेमनक्तें, मन धरी ॥ श्री कल्याणसागर, सूरि शिष्यें, शुभ जगीरों, सुख करी ॥ पुण्यमहोदय, सकल मंगल, वेलि सुज, जयसि ॥ १०५ ॥ इति सिद्धगिरिस्तुतिः
॥ अथ श्री आदिनाथ विनतिरूप श्री शत्रुंजय स्तवन ॥
|| पणमविसयल जिणंद पाय, मनोवांचित कामी ॥ सयल तीरथनो राजीयो ए, प्रणमुं शिर नामी ॥ जस दरिसन दुर्गति टले ए, नासे सवि रोग ॥ स्वज न कुटुंब मेला मले, ए मनोवांबित जोग ॥ १ ॥ नाजि कुमर जग जाणीयें, ए मरुरेवीनो नंद ॥ वदनकमल दीपे यति लुं, ए जाणे पूनम चंद ॥ शत्रुंजा केरो राजीयो ए, सोवन मय काया ॥ उंचपणे लय धनुष पंच प्रणमे सुरराया ॥ २ ॥ चोशव इंद्र यादें द ए, सुर सेवा सारे ॥ त्रिभुवनतारण वीतराग, जव
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