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तीर्थ जस रेह ॥ ए६ ॥ यदि त नहिं जेहनी, कोइ कालें न विलाय ॥ ० ॥ शाश्वतगिरि कहेवाय || ७ || जद्र जला जे गिरिवरें, आव्या होय कापार ॥ ते० ॥ नाम सुजद्र संचार ॥ ए८ ॥ वीर्य वधे शुन साधुने. पामी तीरथ नक्ति ॥ ते ॥ नामें जे दृढशक्ति ॥ एए ॥ शिवगति साधे जे गिरे, तेमाटें अनिधान ॥ ते० ॥ मुक्तिनिलय गुणखाण ॥ १०० ॥ चंद सूरज समकित धरी, सेव करे शुज चित्त ॥ ते० ॥ पुष्पदंत विदित्त || ॥ १०१ ॥ जिन्न रहे जब जलथकी, जे गिरि लहे निवास ॥ ० ॥ महापद्म सुविलास ॥ १०२ ॥ नूमि धरीजें गिरिवरें, उदधि न लोपे लीह ॥ ० ॥ पृथिवीपीठ खनीह ॥ १०३ ॥ मंगल सवि मलवा तपुं, पीठ एह अजिराम ॥०॥ द्रपीठ जस नाम ॥ १०४ ॥ मूलजस पाताल में, रत्नमय मनोहार ॥ ते० ॥ पाताल मूल विचार ॥ १०५ ॥ कर्मदय होये जिहां, होय सिद्ध सुखकेल ॥ ते० ॥ - कर्म करे मन मेल ॥ १०६ ॥ कामित सवि पूरण होये, जेहनुं दरिस पाम ॥ ० ॥ सर्वकाम मन वाम ॥ १०७ ॥ इत्यादिक एकवीश जलां, निरुपम नाम उदार ॥ जे स
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