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________________ (२६) सुविहार ॥ ते० ॥ अक्षय सुख दातार ॥ ५ ॥ इत्यादिक महोटा कह्या, शोल कार सफार ॥ ते ॥ लघु असंख्य विचार ॥ ६॥ द्रव्यनाव वैरी तणो, जेदथी थाये अंत ॥ ते ॥ शत्रुजय समरंत ॥ ७ ॥ पुंमरिक गणधर हुआ, प्रथम सिह इणे गम ते ॥ पुमरिक गिरि नाम ॥ ७ ॥ कांकरे कांकरे णे गिरि, सिह हुआ सुपवित्त ॥ ते ॥ सिद्धक्षेत्र समचित्त ॥ नए ॥ मल द्रव्य नाव विशेषथी, जेहथी जाये धर ॥ ते ॥ विमलाचल सुखपूर ॥ एं० ॥ सुरवरा बहु जे गिरें, निवसे निर्मल गण ॥ ते ॥ सुरगिरि नाम प्रमाण ॥५१॥ पर्वत सहुमांहे वमो, महागिरि तेणें कहंत ॥ ते ॥ दर्शन लहे पुण्यवंत ॥ ए२ ॥ पुण्य अनर्गल जेहथी, थाये पाप विनाश ॥ ते ॥ नाम नबुं पुण्यराशि ॥ ए३ ॥ लक्ष्मीदेवी जे नएयो, कुंलें कमल निवास ॥ ते ॥ पद्मनाम सुवास ॥ ॥ ए४ ॥ सवि गिरिमां सुरपति समो, पातक पंक विलात ॥ तेण ॥ पर्वत इंद्र विख्यात ॥ ए५ ॥ त्रिजुवनमा तीरथ सवे, तेमां महोटो एह ॥ ते ॥ महा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005394
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1923
Total Pages106
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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