SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (UT) चैत्री पूनमने दिने, करि असा एक मास | पाँच कोमी मुनि साधुशुं, मुक्तिनिलयमां वास ॥ ७ ॥ तिणे कारण पुंमरिक गिरि, नाम थयुं विख्यात ॥ मन वच कायें वंदीयें, ऊठी नित्य प्रजात ॥ ८ ॥ सि० ३ वीश कोमीशुं पांवा, मोद गया ईणे ठाम ॥ इम अनंत मुक्तें गया, सिद्धक्षेत्र तिणें नाम ॥ ए ॥ सि०॥ ४ मराठ तीरथ न्हावतां अंगरंग घमी एक ॥ तुंबी जलनानें करी, जाग्यो चित्तविवेक ॥ १० ॥ चंद्रशेखर राजा प्रमुख, कर्मकठिन मलधाम ॥ अचल पढ़ें विमला थया, तिथे विमलाचल नाम ॥ ११ ॥ सि० ॥ ५ पर्वतमां सुरगिरी वमो, जिन जिषेक कराय ॥ सिद्ध हुआ स्नातकपदें, सुरगिरि नाम धराय ॥ १२ ॥ अथवा चउदे क्षेत्रमां, ए समो तीर्थ न एक ॥ तिणे सुरगिरिनामें नमुं, जिहां सुरवास अनेक ॥ १३ ॥ सि०॥ ६ यसी योजन पृथुल बे, उंचपणे वीश ॥ महिमाए मोटो गिरि, महागिरि नाम नमीश ॥१४॥ सि० ॥ ७ गणधर गुणवंता मुनि, विश्वमांदे वंदनीय ॥ जेवो तेहवो संयमी, विमलाचल पूजनीय ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005394
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1923
Total Pages106
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy